सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (CMIE) के मैनेजिंग डायरेक्टर महेश व्यास का कहना है कि कोरोना लॉकडाउन के असर के चलते नौकरियां गंवाने वाले वेतनभोगी लोगों के लिए वापस नौकरी पाना बहुत मुश्किल होगा.
इंडिया स्पेंड के मुताबिक, व्यास ने कहा, ''भारत में ज्यादातर रोजगार अनौपचारिक नौकरियों में है - इनमें दिहाड़ी कामगार, खेतिहर मजदूर, छोटे दुकानदार, छोटे व्यवसायी और किसान शामिल हैं. इन लोगों के लिए चीजें तेजी से बदलती हैं: जब कोई झटका होता है, तो ये तुरंत अपनी नौकरी गंवा देते हैं.'' व्यास ने कहा कि जैसे ही देश में कोराना लॉकडाउन लागू हुआ था, ऐसे लोगों का रोजगार तुरंत चला गया था. मगर लॉकडाउन हटते ही जैसे ही गतिविधियां शुरू हुईं, इन लोगों को फिर से रोजगार मिलना शुरू हो गया.
वहीं वेतनभोगी लोगों को लेकर व्यास का कहना है, ''ऐसे लोग तुरंत नौकरी नहीं गंवाते. जो स्थापित कंपनियों के लिए काम कर रहे हैं, भले ही ऐसी कंपनी मुश्किल में हो, उनकी नौकरी कुछ समय के लिए बरकरार रखी जाती है.''
उन्होंने कहा, ‘’वेतनभोगी लोगों पर एक अंतराल के बाद झटके का असर होता है. कंपनियां धीरे-धीरे बंद हो रही हैं, क्योंकि वे धीरे-धीरे लॉकडाउन के असर को देख रही हैं, जो उससे भी बुरा है, जिसका उन्होंने अनुमान लगाया था.’’
कॉरपोरेट सेक्टर को लेकर व्यास ने कहा, ''मुझे लगता है कि कॉरपोरेट सेक्टर में दो तरह की प्रतिक्रियाएं होने वाली हैं. पहली बात यह है कि छोटी और मझोली कंपनियों के लिए खुद को बरकरार रखना मुश्किल होगा, वे बंद हो जाएंगी. और जैसे ही वे बंद होती हैं, वे बड़ी कंपनियों को जगह दे देंगी और बड़ी कंपनियों के मार्केट शेयर में बढ़ोतरी हो जाएगी. दूसरी बात यह है कि बड़े कॉरपोरेट सेक्टर, जो मार्केट शेयर हासिल करने जा रहे हैं, जरूरी नहीं कि वे श्रम को अपनाएं. वे ज्यादा ऑटोमेशन में चले जाएंगे क्योंकि वे ऐसा करने में सक्षम हैं.''
इंडिया स्पेंड ने CMIE के हवाले से बताया है कि COVID-19 महामारी के बीच नौकरी गंवाने वाले वेतनभोगी लोगों की संख्या बढ़कर 1.89 करोड़ हो गई है, अकेले जुलाई में लगभग 50 लाख नौकरियां गई हैं. हालांकि नॉन-सैलरीड, अनौपचारिक नौकरियों की संख्या में सुधार आ रहा है.
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