आने वाले दिनों में आपको म्यूचुअल फंड में निवेश के ज्यादा विकल्प मिल सकते हैं. कई कंपनियों ने म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री में आने के लिए SEBI में आवेदन दिया है. इन कंपनियों में दिग्गज निवेशक राकेश झुनझुनवाला और इस इंडस्ट्री के पुराने नाम समीर अरोड़ा की कंपनी भी शामिल हैं. आइए देखते हैं किन कंपनियों ने किया है लाइसेंस के लिए आवेदन और क्या है रूचि की वजह?
किन कंपनियों ने दिखाई है रूचि?
बीते 4 महीनों में वित्त जगत की कम से कम 4 कंपनियों ने म्यूचुअल फंड हाउस शुरू करने के लिए आवेदन किया है. यह कंपनियां समीर अरोड़ा की हेलिओस कैपिटल मैनेजमेंट, राकेश झुंझुनवाला की अलकेमी कैपिटल, यूनिफाइ कैपिटल प्राइवेट लिमिटेड और कैपिटलमाइंड वेल्थ हैं. इसके अलावा ब्रोकरेज सेवा प्रदाता जेरोधा ब्रोकिंग, जानी मानी NBFC बजाज फिनसर्व और फ्रंटलाइन कैपिटल सर्विसेज ने भी लाइसेंस के लिए आवेदन दिया है. इन सारी कंपनियों को SEBI से अनुमति का इंतजार है.
हाल में NJ इंडिया इन्वेस्ट और सैमको सिक्योरिटीज को SEBI से इस बारे में स्वीकृति मिल गई है.
म्यूचुअल फंड कंपनी शुरू करने की होड़ क्यों?
दिसंबर, 2020 में SEBI द्वारा म्यूचुअल फंड बिजनेस में आने को इच्छुक कंपनियों के लिए नियमों को आसान बनाया गया था. पहले इस क्षेत्र में आने के लिए कंपनी का वित्तीय क्षेत्र में 5 वर्ष काम करना जरूरी था. साथ ही किसी म्यूचुअल फंड की शुरुआत के लिए बीते तीन वर्षों में प्रॉफिटेबल होना और 50 करोड़ का नेटवर्थ मेंटेन करना होता था. इन नियमों के अलावा कुछ अन्य शर्तों में भी ढील से अनेकों कंपनियों ने अब इस तरफ रुचि दिखाई हैं.
समीर अरोड़ा की हेलिओस कैपिटल मैनेजमेंट ने 25 फरवरी, 2021 को जबकि राकेश झुनझुनवाला की अलकेमी कैपिटल ने 1 जनवरी, 2021 को लाइसेंस के लिए आवेदन किया था.
कंपनियों और निवेशकों को इससे क्या फायदा?
भारत में म्यूचुअल फंड का बाजार तेजी से बढ़ रहा है. नई कंपनियों के आने से निवेशकों के लिए निवेश के नए आयाम खुल जाएंगे. ICICI सिक्योरिटीज की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में म्यूचुअल फंड्स का एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) GDP का केवल 12% है. वैश्विक एवरेज इससे कई गुणा ज्यादा रहते हुए करीब 55% है. निश्चित तौर पर ऐसे में म्यूचुअल फंड कंपनियां इसका आने वाले दिनों में फायदा उठाना चाहेगी. छोटे निवेशकों के साथ काम करने पर ऐसी कंपनियों को काफी रेगुलेशन का भी सामना करना पड़ता है. इसका बड़े बाजार के बावजूद इन कंपनियों की प्रॉफिटेबिलिटी पर असर दिखता है.
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