आरबीआई ने ब्याज दरों में कोई कटौती नहीं की है. मौद्रिक नीति समीक्षा के ऐलान के दौरान रेपो रेट 5.15 फीसदी पर ही बरकरार रखने का ऐलान किया है. इससे लोन सस्ता होने की उम्मीदों को झटका लगा है. महंगाई बढ़ने की आशंका को देखते हुए ब्याज दरों में कटौती न करने का फैसला किया गया है. रिवर्स रेपो रेट 4.90 फीसदी पर बरकरार है. पिछले साल (2019) में पांच बार रेपो रेट में कटौती की गई थी. कुल मिला कर रेपो रेट में 1.35 फीसदी कटौती की गई.
रिजर्व बैंक ने इकनॉमी में डिमांड पैदा करने के लिए 2019 में लगातार ब्याज दरों में कटौती की थी. हालांकि पिछली समीक्षा में उसने कोई परिवर्तन नहीं किया था. कहा गया कि महंगाई बढ़ने की वजह से आरबीआई ने कदम रोक लिए थे. अक्टूबर में आरबीआई ने रेपो रेट में चौथाई फीसदी की कटौती की थी जिससे यह घट कर 5.15 पर पहुंच गया था. मार्च 2010 के बाद का यह सबसे कम रेट है.
महंगाई का दबाव
दरअसल आरबीआई पर महंगाई का काफी दबाव है. दिसंबर में प्याज और दूसरी सब्जियों के दाम बढ़ने की वजह से खुदरा महंगाई दर 7.35 फीसदी पर पहुंच गई. यह केंद्रीय बैंक के चार फीसदी के टारगेट (+2 या -2) से काफी ज्यादा है. हालांकि नई फसल आने के बाद खुदरा महंगाई दर में कमी आ सकती है. मौजूदा वित्त वर्ष की पहली छमाही में खुदरा महंगाई दर 5.1 से लेकर 4.7 फीसदी रहन का अनुमान है.
खुदरा महंगाई दर (2019) % में
- दिसंबर - 7.3
- नवंबर - 5.54
- अक्टूबर - 4.62
- सितंबर - 3.99
- अगस्त - 3.30
- जुलाई - 3.15
- जून - 3.18
- मई - 3.05
इकनॉमी खस्ता हाल
आरबीआई ने वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान विकास दर पांच फीसदी का अनुमान लगाया है. यह 11 साल का न्यूनतम ग्रोथ रेट है. एक साल पहले ग्रोथ रेट 6.8 फीसदी था. इकनॉमी में डिमांड और कंजप्शन बढ़ाने के लिए सरकार पर भारी दबाव है. बजट में जिन उपायों का ऐलान किया है, उन्हें नाकाफी माना जा रहा है. बजट के बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि इसमें इकनॉमी को मजबूत बनाने के ठोस कदमों का अभाव है.
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