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मोदी सरकार में आर्थिक माहौल सुधरा, लेकिन नोटबंदी-GST का दर्द मौजूद

इकनॉमी को जिस मजबूती की जरूरत थी वह नदारद है 

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नरेंद्र मोदी की सरकार को चार साल पूरे हो गए हैं. इन चार साल के दौरान देश का आर्थिक माहौल अच्छा रहा है. कुछ समझदारी भरी आर्थिक नीतियां आईं और कुछ ऐसे फैसले किए गए, जिनसे इकोनॉमी और देश की जनता को दर्द झेलना पड़ा. आइए देखते हैं इकनॉमी के स्कोर बोर्ड पर मोदी सरकार का प्रदर्शन कैसा है.

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इकोनॉमी पर लादी गई सजा

पिछले चार साल के दौरान एक बार जीडीपी ग्रोथ 9 फीसदी तक भी पहुंची. चार साल के दौरान औसत विकास दर 5.7 फीसदी रही. ग्रोथ को निजी उपभोग और भारी सरकारी खर्च से रफ्तार मिला लेकिन प्राइवेट इनवेस्टमेंट कमजोर रहा. इनवेस्टमेंट रेशियो जीडीपी के 30 फीसदी से भी कम रही. मेक इन इंडिया का कोई खास नतीजा नहीं आया है. पिछले डेढ़ साल से इकनॉमी नोटबंदी और जीएसटी के झटकों से उबरने में लगी है. नोटबंदी से कैश की किल्लत पैदा हो गई और इससे ट्रांजेक्शन को झटका लगा. जबकि जीएसटी से भी ग्रोथ में उथल-पुथल का आलम रहा.

इकनॉमी को जिस मजबूती की जरूरत थी वह नदारद है 
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महंगाई के मोर्चे पर राहत

पिछले चार साल में महंगाई में गिरावट आई है और यह स्थिर हो गई है. इसकी एक बड़ी वजह कच्चे तेल के दाम में गिरावट थी. हालांकि एमएसपी पर सरकार के समझदारी भरे फैसले ने भी इसे कंट्रोल में रखा है. सरकार ने महंगाई को नियंत्रण करने वाली नीति अपनाई है और मोनिटरी पॉलिसी कमेटी के फ्रेमवर्क की ओर बढ़ी है. इससे विदेशी निवेशकों की नजर में हमारी इकनॉमी की साख बढ़ी है. हालांकि इस साल तेल के दाम बढ़ने से महंगाई को टारगेट करने का सरकार के पहले फ्रेमवर्क को चुनौती मिल रही है.

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बेहतर राजकोषीय प्रबंधन

राजकोषीय प्रबंधन के मोर्चे पर सरकार का प्रदर्शन अब तक अच्छा रहा है. इकनॉमी की रफ्तार धीमी होने पर सरकार ने रफ्तार बढ़ाने के लिए खजाना नहीं खोला. राजकोषीय घाटे को को यह घटा कर जीडीपी के 4 फीसदी से नीचे ले आई और वित्त वर्ष 2018 में इसने इसका लक्ष्य 3.2 निर्धारित किया है. हालांकि तेल के दाम बढ़ने से इस टारगेट पर दबाव बढ़ा है. वैसे सरकार ने 2020-21 तक राजकोषीय घाटा जीडीपी के तीन फीसदी तक लाने का लक्ष्य रखा है.

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निर्यात के मोर्चे पर निराशा

ग्रोथ को रफ्तार देने में मददगार निर्यात सेक्टर को चार साल के दौरान मजबूती नहीं मिली है. निर्यात में हल्की बढ़त रही है और आयात में तेल के दाम में उतार-चढ़ाव की वजह से उथलपुथल रही. व्यापार घाटे की स्थिति भी अच्छी नहीं है. निर्यात ग्रोथ दहाई के आंकड़े तक नहीं पहुंच पाई है. सरकार के आखिरी साल में चालू खाते का घाटा बढ़ता जा रहा है. बाहर से आ रही पूंजी से इसकी भरपाई नहीं हो पा रही है. इससे रुपये की गिरावट रिकार्ड स्तर पर पहुंच गई है.

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मैन्यूफैक्चरिंग और जॉब ग्रोथ लचर

मोदी सरकार का एक बड़ा वादा था कि वह हर साल 1 करोड़ रोजगार पैदा करने में मदद करेगी. नौकरियां पैदा करने के लए मैन्यूफैक्चरिंग पर फोकस होगा. उम्मीद जताई गई थी कि मैन्यूफैक्चरिंग जीडीपी के 25 फीसदी तक पहुंच जाएगी. रोजगार सृजन पर कोई ऐसा आंकड़ा नहीं है जिस पर सहमिति हो. सरकार ने प्रॉविडेंट फंड के आंक़ड़े के जरिरये साबित करना चाहता कि सितंबर 2017 और फरवरी 2018 के बीच ही 31 लाख नई नौकरियां पैदा की गई हैं. लेकिन सरकार के इस दलील लोगों को सहमत नहीं कर पाई. यह भी साफ है कि इकनॉमी में मैन्यूफैक्चरिंग की हिस्सेदारी बढ़ाने की सरकार की कोशिश नाकाम रही है.

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