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AGR पर टेलीकॉम कंपनियों को राहत,बकाया चुकाने के लिए 10 साल का वक्त

कोर्ट ने सरकार से कहा था कि वो बैंकरप्ट कंपनियों से इंसॉल्वेंसी के तहत ड्यूज की रिकवरी करने के योजना बताए.

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सुप्रीम कोर्ट ने टेलीकॉम कंपनियों एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) बकाया मामले में आज फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने टेलिकॉम कंपनियों को अपने बकाया एजीआर को जमा करने के लिए 10 साल का वक्त दिया है.

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोरोना के हालात को देखते हुए दस प्रतिशत का भुगतान 31 मार्च 2021 तक करना होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि हर साल 7 फरवरी तक किस्तों का भुगतान किया जाएगा, कोई भी चूक ब्याज पर अंकुश लगाएगी और भुगतान न करने पर अदालती कार्यवाही की अवमानना मानी जाएगी.

सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले सुनवाई करते हुए कहा था कि सरकार बैंकरप्ट कंपनियों से इंसॉल्वेंसी के तहत ड्यूज की रिकवरी करने के योजना बताए.

वोडाफोन आइडिया को करीब 50,399 करोड़ और एयरटेल को 25,976 करोड़ के AGR बकाए का भुगतान करना है. इससे पहले सुनावाई में दोनों कंपनियों ने अपनी 20 साल तक भुगतान करने की मांग को कम करके 15 साल कर लिया था.

क्या है AGR?

AGR यानी Adjusted gross revenue दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा टेलीकॉम कंपनियों से लिया जाने वाला यूसेज और लाइसेंसिग फीस है. इसके दो हिस्से हैं- स्पेक्ट्रम यूसेज चार्ज और लाइसेंसिंग फीस.

DOT का कहना है कि AGR की गणना किसी टेलीकॉम कंपनी को होने वाले संपूर्ण आय या रेवेन्यू के आधार पर होनी चाहिए, जिसमें डिपोजिट इंटरेस्ट और एसेट बिक्री जैसे गैर टेलीकॉम स्रोत से हुई आय भी शामिल है. दूसरी तरफ, टेलीकॉम कंपनियों का कहना है कि AGR की गणना सिर्फ टेलीकॉम सेवाओं से होने वाली आय के आधार पर होनी चाहिए.

AGR पर विवाद क्या था?

AGR के कैलकुलेशन को लेकर टेलीकॉम विभाग और टेलीकॉम कंपनियों के बीच विवाद था. टेलीकॉम विभाग का कहना था कि AGR कंपनी की कुल आय पर लगना चाहिए. मतलब ब्याज से कमाई, एसेट बिक्री से कमाई जैसे नॉन टेलीकॉम आय पर भी टैक्स लगना चाहिए. वहीं टेलीकॉम कंपनियों का कहना था कि AGR का कैलकुलेशन सिर्फ टेलीकॉम सर्विसेज से होने वाली आय के आधार पर होना चाहिए न कि पूरी आय पर. कंपनियों और टेलीकॉम विभाग के बीच ये विवाद 2005 से चला आ रहा है तब टेलीकॉम कंपनियों के संगठन ने टेलीकॉम विभाग के दावे को चुनौती दी थी. इसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था.

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