वनडे क्रिकेट में डकवर्थ लुईस के बारे में सब जानते हैं, लेकिन अगर किसी ने उनके नियम के बारे में पूछ लिया तो सालों से क्रिकेट देखने और खेलने वाले सभी लोग तक कैलकुलेशन नहीं कर पाते. जीएसटी के मौजूदा ढांचे को देखकर भी कुछ ऐसा ही लग रहा है कि वादा किया गया एक देश एक टैक्स का और मिल गया 6 टैक्स और 9 सरचार्ज यानी 15 रेट. वादा था बिजनेस और फाइलिंग आसान होगी, लेकिन अब 13 के बजाए करनी होगी 37 फाइलिंग. जटिलता की ये तो सिर्फ बानगी है.. अब तो कारोबारी और उद्योगपति के अलावा चार्टर्ड अकाउंटेंट भी ये कह रहे हैं... हमसे का भूल हुई....
एक देश अनेक टैक्स
बड़े जोर-शोर से वादा किया गया कि पूरे देश में एक जैसा टैक्स लगेगा. लेकिन हकीकत देखिए टैक्स दरें 6 हो गई हैं. जीरो परसेंट जीएसटी वाले आइटम हटा लें तो भी रफ डायमंड के लिए 0.25 परसेंट, फिर सोने के लिए तीन परसेंट, फिर पांच परसेंट, 12 परसेंट, 18 परसेंट और 28 परसेंट.
अब बताइए मैन्युफैक्चरर और सरकारी टैक्स सिस्टम ही नहीं, एक उपभोक्ता के तौर पर आपके लिए ये सिस्टम कितना जटिल हो गया. यानी किस आइटम या सर्विस पर कितना टैक्स लगेगा अगर आपको यह जानना है तो पूरी लिस्ट खंगालनी होगी. जबकि सिंगापुर में ज्यादातर आइटम और सर्विस पर करीब करीब एक ही रेट है सिर्फ 7 परसेंट. कनाडा में तो स्टैंडर्ड दर सिर्फ 5 परसेंट है.
अरे रुकिए टैक्स की बात तो अभी शुरु हुई है... अब सरचार्ज पर आते हैं..
9 तरह के सरचार्ज हैं. 12 परसेंट से 290 परसेंट तक. यानी लग्जरी कार पर सेस अलग है. सिगरेट 204 परसेंट. पान मसाला में अलग है. यानी 1200 से ज्यादा आइटम और सभी पर टैक्स की दरें अलग-अलग. सर्विस में टैक्स की दरें भी दो से ज्यादा हैं.
मतलब बूझो तो जाने वाला हिसाब हमेशा बना रहेगा.
केंद्र जीएसटी और राज्य जीएसटी भी है
भारत में अक्सर हम शुरुआत अच्छी करते हैं लेकिन फाइनल प्राॅडक्ट बनाते-बनाते जटिल कर देते हैं. यानी आसान तरीके हमें पसंद नहीं. देश में दोहरा जीएसटी सिस्टम होगा. सेंट्रल जीएसटी और स्टेट जीएसटी यानी ज्यादातर आइटम और सर्विस ऐसी हैं कि जीएसटी केंद्र वसूलेगा, लेकिन कई चीजों पर जीएसटी वसूली का अधिकार राज्यों के पास भी होगा. ऐसे आइटम या सर्विस जिनकी सप्लाई अंतरराज्यीय होगी उन पर जो जीएसटी लगेगी वो केंद्र लगाएगा और उसे CGST कहा जाएगा. इसी तरह जो जीएसटी राज्य वसूलेंगे उसे SGST कहा जाएगा.
सीबीईसी यानी सेंट्रल बोर्ड ऑफ एक्साइज एंड कस्टम्स के मुताबिक सेंट्रल जीएसटी और स्टेट जीएसटी छूट वाली सर्विस और आइटम को छोड़कर सभी में लगेगा.
GST समझ पाना बच्चों का खेल नहीं
जीएसटी समझना कुछ जटिल है. मान लीजिए मध्यप्रदेश में कोई होलसेल डीलर 100 रुपए के काजू राज्य के अंदर ही सप्लाई करता है तो उसे 5 रुपए सेंट्रल जीएसटी और 5 रुपए स्टेट जीएसटी भरना होगा. दोनों के अलग-अलग खाते में जीएसटी भरी जाएगी. हालांकि ये जरूरी नहीं कि उसे पूरे 10 रुपए जमा करने पड़ें, क्योंकि उसने खरीद के वक्त जो जीएसटी भरा है उसके एवज में छूट हासिल करेगा. लेकिन उसे ये पूरी प्रक्रिया पूरी करनी होगी.
मतलब खरीदार या विक्रेता को अगर पिछले टैक्स भुगतान के एवज में छूट चाहिए तो उसे हर इनवॉयस की एंट्री जीएसटी नेटवर्क में करनी होगी.
आसान!! भइया ये तो जटिल से ज्यादा जटिल
पहले 13 के मुकाबले अब 37 रिटर्न
वादा था टैक्स सिस्टम और उसपर अमल करने के तरीका आसान बना देंगे. लेकिन हकीकत जान लीजिए एक मैन्युफैक्चरिंग कंपनी को अभी 13 रिटर्न फाइल करने पड़ते थे, उसे एक जुलाई से जीएसटी सिस्टम में 37 रिटर्न फाइल करने होंगे. यानी हर महीने तीन रिटर्न के अलावा एक सालाना रिटर्न . अगर कारोबार एक से ज्यादा राज्यों में फैला है तो रिटर्न की संख्या उतनी ही अधिक हो जाएगी. मिसाल के तौर पर अगर किसी का कारोबार तीन राज्यों में है तो उसे 111 रिटर्न भरने होंगे. यानी इंडस्ट्री का काम बढ़ेगा, अकाउंटेंट का काम बढ़ेगा और बैंकों का सिरदर्द बढ़ेगा.
ज्यादातर चार्टर्ड अकाउंटेंट का मानना है कि हर जीएसटी काउंसिल की बैठक में कुछ नए बदलाव हो जाते हैं, इसलिए पूरे सिस्टम को समझने के लिए और वक्त चाहिए.
बैंकों ने भी अभी तक खुलकर यह गारंटी नहीं ली है कि वो जीएसटी के लिए पूरी तरह तैयार हैं. खर्च बढ़ेगा ज्यादा अकाउंटेंट रखने होंगे.
मामला यहीं नहीं थमेगा, हर कारोबारी को अब अपना हिसाब-किताब दुरुस्त रखने के लिए अकाउंटेंट की सेवाएं लेनी होगी. अभी छोटे कारोबारी पार्टटाइम अकाउंटेंट रखते हैं जो महीने में दो-तीन बार आकर उनके खाते अपटुडेट करते हैं, लेकिन सिस्टम ऑनलाइन होने से उन्होंने रेगुलर अकाउंटेंट की जरूरत होगी. हां, इसका फायदा यह जरूर होगा कि देशभर में अकाउंटेंट की नौकरियों की भरमार होगी.
एक ही कैटेगरी में रेट अलग-अलग. इसके ढेरों उदाहरण हैं जहां एक सेक्टर में जीएसटी की दरें अलग-अलग कर दी गई हैं.
ऑटो सेक्टर- भूल जाओगे कहां कितना टैक्स
मिसाल के तौर पर ऑटो सेक्टर देखिए यहां गाड़ियों के वैरिएंट की तरह जीएसटी दरों में बहुत वैराइटी है. ऑटो सेक्टर में ही कारों पर इतने तरह की जीएसटी रेट हैं कि आप भूल ही जाओगे कि किसमें कितना टैक्स लगेगा.
- टू व्हीलर पर 28 परसेंट जीएसटी लगेगा लेकिन 350 सीसी से ऊपर की बाइक पर 3 परसेंट सेस भी लगेगा.
- चार मीटर से कम और 1200 सीसी तक की पेट्रोल कार में 28 परसेंट टैक्स और एक परसेंट सेस लगेगा. लेकिन अगर कार डीजल की है तो 28 परसेंट जीएसटी के साथ सेस तीन परसेंट हो जाएगा.
- इसी तरह 1500 सीसी से कम की है तो अलग रेट, उससे ज्यादा की है तो अलग रेट.
कैटेगरी वही, कच्चा माल वही, लेकिन अलग रेट
- कॉटन, जूट या सिल्क के लिए एक ही रेट पांच परसेंट है. 1000 रुपए तक के रेडीमेड कपड़ों के लिए 5 परसेंट जीएसटी है, लेकिन उससे ऊपर के लिए 12 परसेंट. इसी तरह के मैटेरियल से बने स्कूल बैग के लिए जीएसटी 18 परसेंट हो जाती है.
- सोने पर रेट 3 परसेंट है, लेकिन जेम्स एंड ज्वैलरी बनाने वाली सर्विस पर रेट 5 परसेंट.
- स्टेशनरी में भी जबरन कैटेगरी बना डाली गई हैं. जैसे कलरिंग बुक में जीएसटी नहीं लगेगा, पर एक्सरसाइज बुक में 12 परसेंट जीएसटी ठोक दिया गया है. बच्चों से जुड़े ही स्कूल बैग में तो जीएसटी 18 परसेंट करने का तुक समझ नहीं आया.
- इंसुलिन में 5 परसेंट जीएसटी है, लेकिन कई दवाओं में यह 12 परसेंट लगेगा.
- एक ही रेस्त्रां में आप गए लेकिन अगर एसी केबिन में बैठ गए तो 18 परसेंट जीएसटी और गैर एसी केबिन में बैठ गए तो 12 परसेंट.
- होटल के कमरों में तो जीएसटी दरों में और लोचा है, 1000 रुपए के लिए अलग, 2500 रुपए के लिए अलग और 5000 के लिए अलग.
- बूंदी का लड्डू सस्ता तो नमकीन बूंदी महंगी क्यों? बूंदी के लड्डू में जीएसटी 5 परसेंट लगेगी, लेकिन नमकीन बूंदी में 18 परसेंट जबकि दोनों में सिर्फ नमक और चीनी का फर्क है.
- हवाई यात्रा बिजनेस क्लास महंगा हो जाएगा क्योंकि उसमें 12 परसेंट टैक्स लगेगा, जबकि इकोनॉमी क्लास के लिए 5 परसेंट.
क्या इंडस्ट्री तैयार है?
असली चुनौती है कि क्या इंडस्ट्री इस बड़े बदलाव के लिए तैयार है? बैंकिंग सिस्टम ने तो साफ कर दिया है कि उन्हें थोड़ा और वक्त लगेगा. इंडस्ट्री ने भी जीएसटी को गहरे उतरकर नहीं देखा है. इंडस्ट्री संगठन फिक्की, सीआईआई और एसोचैम इसके लिए ट्रेनिंग का इंतजाम कर रहे हैं, लेकिन वो मानते हैं कि इंडस्ट्री को इस पूरे बदलाव को अपनाने में थोड़ा वक्त लगेगा.
सर्विस सेक्टर तो अभी भी कई मामलों में सफाई का इंतजार कर रहा है. उन्हें लगता है कि कई सर्विस पर अभी और स्पष्टता जरूरी है. कौन सी सर्विस किस रेट के तहत आएगी इसे लेकर थोड़ा कंफ्यूजन है.
जीएसटी की डेडलाइन एक जुलाई है लेकिन अभी ना तो अकाउंटेट इसके लिए पूरी तरह तैयार हैं, ना ही बैंक और इंडस्ट्री. अभी तो सब के सब कंफ्यूजन दूर करने में ही जुटे हैं. हालांकि इंडस्ट्री और सरकार को भरोसा है कि जैसे-जैसे सिस्टम लागू होगा वैसे-वैसे जटिलताएं कम होती जाएंगी.
लेकिन ये सवाल तो उठता है कि जिस टैक्स सिस्टम को बनाने में हमने 13 साल ले लिए उसे जलेबी की तरह ऐसा जटिल बना दिया है कि कोई सिरा पकड़ में नहीं आ रहा है.
(अरुण पांडेय वरिष्ठ पत्रकार हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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