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GST यानी गुड और सिंपल टैक्स? लेकिन कुछ टैक्स तो फिर भी लगते रहेंगे

तमिलनाडु के सिनेमाहॉल मालिक 28 पर्सेंट एंटरटेनमेंट टैक्स के अलावा 30 पर्सेंट टैक्स थोपे जाने से नाराज हैं

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तमिलनाडु के सिनेमाहॉल क्यों बंद हैं? क्या एंटरटेनमेंट टैक्स नए इनडायरेक्ट टैक्स (अप्रत्यक्ष कर) सिस्टम गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST) का हिस्सा नहीं है और क्या इसी वजह से इसके रेट तय नहीं हो पाए हैं? क्यों राज्य के सिनेमाहॉल मालिक डबल टैक्सेशन यानी दो बार टैक्स लगाए जाने की शिकायत कर रहे हैं?

इनमें से कुछ सवालों के जवाब GST काउंसिल के फैसलों में ढूंढे जा सकते हैं. एंटरटेनमेंट टैक्स को GST का हिस्सा बनाया गया है और इसके लिए 18 पर्सेंट और 28 पर्सेंट के दो रेट तय किए गए हैं. पीडब्ल्यूसी के पार्टनर और लीडर प्रतीक जैन ने बताया कि स्थानीय निकायों को इसमें अपनी तरफ से अतिरिक्त टैक्स लगाने की छूट दी गई है और उसकी कोई सीमा भी तय नहीं की गई है.

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BloombergQuint की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1 जुलाई से पहले देशभर में सिनेमा टिकट पर औसतन 20 पर्सेंट का टैक्स लगता था. मध्य प्रदेश में जहां यह 20 पर्सेंट था, वहीं उत्तर प्रदेश में 60 पर्सेंट.

GST काउंसिल ने 100 रुपये से कम के टिकट पर 18 पर्सेंट और इससे अधिक की टिकट पर 28 पर्सेंट का रेट तय किया है. शुरू में इन रेट को लेकर खुशी जताई गई थी. इससे टिकटों के दाम में कमी आने की उम्मीद की जा रही थी. हालांकि, स्थानीय निकायों को अतिरिक्त टैक्स का अधिकार दिए जाने से यह खुशी गम में बदल गई है.

तमिलनाडु के सिनेमाहॉल मालिक इससे इतने नाराज हैं कि उन्होंने बेमियादी हड़ताल शुरू कर दी है. वे राज्य में 28 पर्सेंट एंटरटेनमेंट टैक्स के अलावा अगल से 30 पर्सेंट टैक्स थोपे जाने से नाराज हैं.

सिर्फ मूवी टिकट ही नहीं, यहां टीवी देखना भी महंगा हो सकता है. खबरों में बताया गया है कि केबल और डायरेक्ट टू होम (DTH) सर्विस पर भी अतिरिक्त टैक्स लगाया जा सकता है.

GST से पहले DTH और केबल सर्विसेज पर 25 से 45 पर्सेंट का टैक्स लगता था. GST में इन पर 18 पर्सेंट का टैक्स लगाया गया है, जो पहले से काफी कम है.
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इसलिए GST लागू होने पर टीवी देखने के खर्च में कमी आने की उम्मीद की जा रही थी. हालांकि, लोकल एडमिनिस्ट्रेशन अगर इसके ऊपर टैक्स लगाता है, तो ऐसा नहीं होगा. कुछ इसी तरह के संकेत भी मिल रहे हैं.

महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने पहले ही स्थानीय निकायों (पंचायत, जिला परिषद और नगर निगम) की तरफ से अतिरिक्त टैक्स लगाने के संकेत दिए हैं, वहीं दूसरे राज्य भी उनके नक्श-ए-कदम पर चल सकते हैं.

जानकारों का कहना है कि राज्यों को नए टैक्स सिस्टम में आमदनी घटने का डर है, इसलिए वे स्थानीय निकायों के जरिये अतिरिक्त रेवेन्यू जुटाने की कोशिश करेंगे.
निकायों के कई टैक्स को GST के दायरे से बाहर रखा गया है. इसलिए राज्य दूसरी सेवाओं पर भी इस टैक्स को थोप सकते हैं. इससे बही-खाते संबंधी दिक्कत भी होगी. आपको GST के तहत एंटरटेनमेंट टैक्स देना होगा और दूसरा टैक्स स्थानीय निकायों को चुकाना होगा.
मनीष मिश्रा, पार्टनर (इनडायरेक्ट टैक्स), BDO इंडिया LLP
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उन्होंने यह भी कहा कि इससे इंडस्ट्री में भ्रम बढ़ेगा. GST का प्रचार ‘एक देश, एक टैक्स’ के तौर पर किया गया था. लेकिन इसे लागू किए जाने के बाद भी कई इनडायरेक्ट टैक्स को बनाए रखा गया है. जहां अंडर-कंस्ट्रक्शन प्रॉपर्टी को GST के तहत लाया गया है, वहीं रेडी टू मूव इन घरों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है.

इसकी वजह यह है कि स्टैंप ड्यूटी GST का हिस्सा नहीं है. इसी तरह, राज्य इलेक्ट्रिसिटी सेस और प्रॉपर्टी टैक्स भी वसूलना जारी रखेंगे.

दिलचस्प बात यह है कि GST लागू होने के बाद व्यावसायिक वाहनों यानी सामान की ढुलाई करने वाले ट्रकों को राज्य की सीमा पर चुंगी नहीं देना है, लेकिन अगर वही गाड़ी किसी नगर निगम की सीमा में प्रवेश करती है, तो उसे एंट्री टैक्स चुकाना पड़ेगा.

मान लीजिए कि अगर आप दिल्ली से नोएडा के लिए उबर या ओला की सर्विस लेते हैं, तो आपको 100 रुपये का अतिरिक्त भुगतान करना पड़ेगा, क्योंकि आप एक नगर निगम से दूसरे नगर निगम में जा रहे हैं. GST के लागू होने के बाद भी रोड टैक्स, टोल टैक्स और तंबाकू प्रॉडक्ट्स पर अतिरिक्त एक्साइज ड्यूटी का भुगतान करना पड़ सकता है.

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