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कोरोनिल, मौसम, शाकाहार...10 गलतफहमियां जिनपर आज आएगा गुस्सा

अवैज्ञानिक सोच, फेक न्यूज पर भरोसा, नेताओं की डींगों और लापरवाहियों ने हमें इस गर्त में पहुंचाया

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कोरोना की दूसरी लहर ने लोगों को महामारी की वीभत्सता का पूरी तरह अहसास तो कराया ही है, एक साल से भारत को वायरस से दुनिया के मुकाबले ज्यादा सुरक्षित देश मानकर खुद की पीठ थपथपा रहे ‘सिस्टम’ की तैयारियों की भी पोल खोलकर रख दी है.

देश में कोरोना महामारी से हुई मौतों का आंकड़ा 2 लाख के पार पहुंच गया है. आज आलम ये है कि हमारे पास कोरोना मरीजों की जान बचाने के लिए दी जाने वाली मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. कई बेतुकी दलीलों के आधार पर हम खुद को दुनिया से ज्यादा सुरक्षित मानते रहे. ऑक्सीजन, वेंटिलेटर और दवाइयों की कमी से रोजाना हो रही मौतों के आंकड़े हमें डरा रहे हैं.

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1.भारत के गर्म मौसम में कोरोना नहीं ज्यादा फैलेगा

कोरोना को लेकर हमारी निश्चिंतता के पीछे बड़ा योगदान वायरस को लेकर फैले झूठे भ्रम का था. इन्हीं में से एक ये था कि भारत के क्लाइमेट में कोरोना संक्रमण ज्यादा नहीं फैलेगा, जितना संक्रमण है वह भी गर्मी का मौसम आते ही खत्म हो जाएगा. इस निश्चिंतता से पनपी लापरवाही का आलम ये था कि गर्मियां आते-आते देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या डेढ़ लाख के पार पहुंच गई.

2.कोरोना एक वायरस नहीं फ्लू है, हिंदुस्तानियों को इसकी आदत है

कोरोना के शुरुआती दौर में लोगों ने तब तक इसे एक खतरनाक वायरस नहीं माना जब तक संक्रमण के आंकड़े लाख में नहीं आने लगे. माना जाता रहा है कि ये एक सामान्य फ्लू है, जिसकी हिंदुस्तानियों को आदत है. 14 दिन सर्दी-जुखाम के बाद इंसान ठीक हो जाता है. जब तक लोग इसे एक जानलेवा वायरस मानते तब तक देश कम्युनिटी ट्रांसमिशन की दहलीज पर पहुंच चुका था.

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3.देश की आबादी का बड़ा हिस्सा शाकाहारी है,  हमारा खानपान हमें बचाएगा

जब ये खबर आई कि चीन से एक जानलेवा वायरस फैला है, तो भारत में हर दूसरे शख्स की जुबान पर ये जुमला सुनाई देता था कि ‘जब चमगादड़ खाएंगे तो ऐसी ही बीमारियां होंगी’. हम अपने खानपान को लेकर काफी आश्वस्त थे कि हमें इस तरह की कोई बीमारी नहीं होगी. जबकि वायरस के संक्रमण का खान-पान से कोई लेना देना था ही नहीं. कोविड-19 एक इंसान से दूसरे इंसान में फैलने वाला वायरस है, फिर चाहे कोई शाकाहारी हो या मासाहारी.

4.वेस्टर्न लाइफस्टाइल वाले देशों पर ही रहेगा कोरोना का कहर

क्योंकि, भारत का अधिकतर हिस्सा तो ग्रामीण परिवेश में है. जहां लोग पहले से ही एक तय दूरी बनाकर रखते हैं. वेस्टर्न कल्चर वाले देशों में लोग ज्यादा नजदीक हैं इसलिए वहां बीमारी ज्यादा फैल रही है. भारत में इसका ऐसा रूप कभी नहीं दिखाई देगा.

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5.भारतीयों की इम्युनिटी पहले से ही बेहतर, कोरोना जैसा वायरस कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा

शुरुआत में कोरोना के कम मामले आने का अर्थ ये निकाला गया कि भारतीयों की इम्युनिटी सबसे ज्यादा है, इसलिए कोरोना जैसा वायरस भारतीयों का कुछ नहीं बिगाड़ सकता. पिछले साल आई कुछ स्टडीज में भी बताया गया था कि कम हाइजीन वाले देशों में शुमार होने की वजह से ही कोरोना जैसे वायरस से भारत में कम मौतें हो रही हैं. माना जाता रहा कि भारत के लोगों में पहले से ही काफी इम्युनिटी है. इतनी इम्युनिटी कि कोरोना हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा. हमारी इम्युनिटी कोरोना से लड़ने में कितनी सक्षम है, ये आज हमारे सामने है जब कोरोना से होने वाली मौतों की संख्या 2 लाख के पार पहुंच गई है.

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6. 21 दिन का लॉकडाउन और कोरोना खत्म

भारत उन देशों में शामिल था, जहां कोरोना की पहली लहर में सबसे पहले स्ट्रिक्ट लॉकडाउन लगाया गया. एक हफ्ते की भी मोहलत दिए बिना लगाए गए लॉकडाउन का नतीजा ये हुआ कि बड़े शहरों में काम कर रहे मजदूरों को पैदल ही अपने घर लौटना पड़ा. कितने मजदूरों ने रास्ते में ही अपनी जान गंवा दी, इसका कोई आंकड़ा नहीं.

पहले लॉकडाउन की घोषणा करते वक्त खुद पीएम मोदी ने कहा कि 21 दिन वायरस पर काबू पाने के लिए काफी हैं. सरकार के समर्थन में बोलते रहने वाले सेलिब्रिटीज ने भी लोगों को ये विश्वास दिलाने की कोशिश में कोई कसर नहीं छोड़ी कि 21 दिन का लॉकडाउन ही कोरोना संक्रमण पर काबू पाने के लिए काफी है.

कुछ ने तो जनता कर्फ्यू के एक दिन पहले प्रधानमंत्री की तारीफ में ये कह दिया था कि कोरोना वायरस 12 घंटे में निष्क्रिय हो जाता है और जनता कर्फ्यू 14 घंटे का है.

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7. कोरोनिल जैसी दवा पर हमारा अंधाधुंध भरोसा

पिछले साल योगगुरू बाबा रामदेव ने पतंजलि की कोरोनिल दवा लॉन्च की. दावा किया कि ये कोरोना के इलाज में कारगर है. ये दवा बिना आयुष मंत्रालय की अनुमति के ही लॉन्च कर दी गई थी. आयुष मंत्रालय ने पतंजलि से ट्रायल्स का हिसाब मांगा और अनुमति न लेने पर फटकार भी लगाई. लेकिन, बाद में सरकार ने कोरोनिल को ‘कोविड मैनेजमेंट ड्रग’ के रूप में मान्यता दे दी.

सिलसिला यहीं नहीं रुका 2021 में बाबा रामदेव ने केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन सिंह की उपस्थिति में कोरोनिल की रीलॉन्चिंग की. ये दावा कर दिया कि कोरोनिल को विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) ने सर्टिफाइड कर दिया है. पहले बाबा रामदेव और पतंजलि के ट्विटर हैंडल से ये झूठ फैलाया गया, फिर बाद में पतंजलि के एमडी आचार्य बालकृष्ण ने ही सफाई दे दी कि सर्टिफिकेट WHO नहीं भारत सरकार ने दिया है.

लेकिन सच जब तक जूते पहनता झूठ दुनिया का चक्कर काट चुका था. हजारों लोग कोरोनिल पर भरोसा कर ये मान चुके थे कि अब उन्हें कोरोना के किसी अन्य इलाज की जरूरत नहीं है. आज जब देश में 24 घंटे में कोरोना के 3 लाख से ज्यादा केस रिकॉर्ड किए जा रहे हैं. लोगों को ऑक्सीजन नहीं मिल रहा है, वैक्सीन के स्टॉक खाली होने की खबरें आ रही हैं. तब न तो बाबा रामदेव नजर आ रहे हैं न कोरोनिल. हाल में पतंजलि योग पीठ से ही 83 लोगों के कोरोना संक्रमित होने की खबरें सामने आईं. हालांकि, बाबा रामदेव ने इन खबरों को खारिज करते हुए कहा है कि सिर्फ 14 लोग कोरोना संक्रमित पाए गए हैं, इनमें से कोई भी पतंजलि के मेन कैंपस में नहीं रहता था.

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8. लॉकडाउन खुलने के बाद आ गई हर्ड इम्युनिटी

दो महीने चले देशव्यापी लॉकडाउन के बाद जून 2020 से चरणबद्ध तरीके से अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हुई. सितंबर आते-आते कोरोना के मामलों में कमी देखी गई, हमने समझा ये लॉकडाउन का असर है और हम कोरोना से जीत गए.  ये थ्योरीज भी आईं कि लोगों में हर्ड इम्युनिटी डेवलप हो गई है अब कोरोना संक्रमण का खतरा नहीं है.

इस दौरान हुए बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने घोषणा भी कर दी कि राज्य जल्द ही कोविड मुक्त हो जाएगा. बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता नरेंद्र तनेजा ने पिछले साल अक्टूबर में बीबीसी को दिए इंटरव्यू में कहा कि भारत में परिस्थितियां सामान्य हो चुकी हैं.   लेकिन, सच तो यही था कि परिस्थितियां सामान्य नहीं थीं.

नवंबर में दिल्ली में कोरोना के रोजाना आने वाले मामलों की संख्या 40,000 तक पहुंच गई. 2021 का फरवरी और मार्च आते-आते कोरोना के डराने वाले आंकड़े सामने आने लगे. लेकिन, जैसे जैसे स्थितियां बिगड़ रही थीं सरकारें और राजनीतिक पार्टियां गैर जिम्मेदाराना रवैये की हद पार कर रही थीं. दूसरी लहर के बीच ही पांच राज्यों में चुनाव हुए और सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाकर प्रचार किया गया. नतीजा सामने है.

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9. वैक्सीन निर्यातक से आयातक और फिर याचक

भारत वैक्सीन का सबसे बड़ा मैन्युफेक्चरर है. बस इसी तथ्य के आधार पर हमने ये मान लिया कि जब वैक्सीन आएगी, तो सबसे ज्यादा कोरोना वैक्सीन हमारे ही पास होगी. दुनिया वैक्सीन के लिए भारत के सामने हाथ फैलाएगी. कुल मिलाकर ये भरोसा जीतने में हमारी सरकारें कामयाब रहीं कि वैक्सीन के मामले में भारत को चिंता करने की बिल्कुल जरूरत नहीं है.

आज नौबत ये है कि कई राज्य 18 से ऊपर के लोगों को टीका देने में अक्षम हैं. सरकार ने निर्माताओं को वक्त पर ऑर्डर, आर्थिक मदद नहीं दी. अब उन्हें क्षमता बनाने में वक्त लगेगा. दो ही वैक्सीन पर निर्भरता ने हमारी हालत और पतली कर दी है. कहां तो हम दुनिया के सप्लायर होने का ख्वाब देख रहे थे, हमें टीका आयात करना पड़ रहा है और अमेरिका से कच्चा माल मांगना पड़ रहा है.

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10. सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क की जगह झोलाझाप नुस्खों पर हमारा भरोसा

खांसी, जुखाम, बुखार जैसी समस्याओं का इलाज भारत में घरेलू नुस्खों से किए जाने की परंपरा है. कोरोना के इलाज का दावा करते घरेलू नुस्खों की भी महामारी के दौरान बाढ़ आ गई. सोशल मीडिया पर देखा जा सकता है कि लोगों का मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग से ज्यादा विश्वास उन नुस्खों पर है जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं रहा. लोग इन नुस्खों के आधार पर ही मानते रहे कि भारत में कोरोना का इलाज घरों में ही जाएगा. कोई फिटकिरी से कोरोना को मारता रहा तो कोई 20 सेकंड तक सांस रोककर कोरोना का फर्जी टेस्ट करता रहा.

अवैज्ञानिक सोच, फेक न्यूज पर भरोसा, नेताओं की डींगें और लापरवाहियों के कारण हम कहां ये दुनिया देख रही है और हमारे हिस्से में आया है बेपनाह दर्द. आगे रास्ता यही है कि सीख लें. तर्कपूर्ण बनें, वैज्ञानिक सबूतों के आधार पर बात करें और नेताओं से हांकने के बजाय डिलीवरी की मांग करें.

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