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ग्लोबल टेंडर से राज्यों में कोरोना वैक्सीन की किल्लत दूर होगी?

केंद्र ने राज्यों के पाले में डाली गेंद, वैक्सीन की कमी को पूरा करने के लिए निकाले जा रहे ग्लोबल टेंडर

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देशभर में कोरोना का भयावह रूप देखने को मिला, दूसरी लहर में कोरोना ने पूरे हेल्थ सिस्टम की पोल खोलकर रख दी. कोरोना से रोजाना हजारों लोगों की मौत हो रही है. इस महामारी से निपटने का सबसे बड़ा हथियार फिलहाल वैक्सीनेशन ही है. जिसे लेकर राज्यों और केंद्र सरकार में अब तक कंफ्यूजन बना हुआ है. वैक्सीन के लिए लोग घंटों तक लंबी कतारों में खड़े हैं, वैक्सीनेशन का स्लॉट खोज रहे हैं, लेकिन केंद्र और राज्य सरकारें एक दूसरे पर आरोप लगा रही हैं. इस तमाम विवाद के बीच अब एक नई चीज सामने आई है, जिसे ग्लोबल टेंडर कहा जा रहा है. कई राज्यों ने ग्लोबल टेंडर निकालने का ऐलान किया है.

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अब वैक्सीन की माथापच्ची के बीच ये ग्लोबल टेंडर क्या है? साथ ही सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या ये ग्लोबल टेंडर ऐसी चीज है, जिससे वैक्सीनेशन की किल्लत खत्म हो जाएगी और राज्य कुछ ही महीने में लोगों को वैक्सीनेट कर लेंगे. ऐसा बिल्कुल भी नहीं है.

क्या होता है ग्लोबल टेंडर?

सबसे पहले जान लेते हैं कि ग्लोबल टेंडर आखिर होता क्या है. सरल भाषा में समझाएं तो राज्य और केंद्र सरकार किसी भी काम को करवाने के लिए टेंडर निकालती है. जिसमें कई कंपनियां आवेदन करती हैं और आखिर में सबसे किफायती बोली लगाने वाली कंपनी को टेंडर जारी कर दिया जाता है. ठीक इसी तरह वैक्सीन को लेकर भी टेंडर जारी किए जा रहे हैं. लेकिन ये ग्लोबल टेंडर हैं, यानी विदेशी कंपनियां इसमें हिस्सा ले सकती हैं. वैक्सीन कंपनियां राज्यों के इस ग्लोबल टेंडर में अपना ऑफर देकर कीमत बताएंगी, राज्य को जिस वैक्सीन कंपनी के साथ सौदा मुनाफे वाला लगेगा उसी को करोड़ों या लाखों वैक्सीन का टेंडर मिल जाएगा.

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ग्लोबल टेंडर की जरूरत क्यों पड़ी?

सीधा जवाब है- वैक्सीन की किल्लत... केंद्र सरकार ने हेल्थ वर्कर्स, फ्रंटलाइन वर्कर्स और 45 साल से ज्यादा उम्र के लोगों का खुद वैक्सीन खरीदकर वैक्सीनेशन किया. यानी सीधे केंद्र सरकार ने वैक्सीन कंपनियों से वैक्सीन ली, उसे अपने हिसाब से राज्यों को बांटी और वैक्सीनेशन चला.

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लेकिन अप्रैल के आखिरी हफ्ते में सरकार ने बताया कि अब राज्यों और प्राइवेट अस्पतालों को भी सीधे कंपनी से वैक्सीन खरीदने की छूट है. ये छूट इसलिए दी गई, क्योंकि केंद्र सरकार ने 18+ के वैक्सीनेशन को मंजूरी दी, लेकिन बताया कि इन्हें केंद्र की तरफ से फ्री वैक्सीन नहीं मिलेगी. यानी राज्यों के पाले में गेंद डाल दी गई. अब 1 मई से 18+ का वैक्सीनेशन शुरू होना था, लेकिन इससे पहले ही कई राज्यों ने हाथ खड़े कर दिए. कहा गया कि वैक्सीन उपलब्ध नहीं है, इसीलिए इस कैटेगरी के लिए फिलहाल वैक्सीनेशन नहीं हो पाएगा. जैसे-तैसे वैक्सीनेशन शुरू हुआ, लेकिन कुछ ही दिन बाद वही तस्वीर दिखाई देने लगी है. 18 से 44 साल के लिए कुछ राज्यों के पास वैक्सीन नहीं है.

राज्य सरकारों ने भारत में बन रही दो वैक्सीन कोविशील्ड और कोवैक्सीन के ऑर्डर भी दिए, लेकिन महज दो कंपनियां सभी राज्यों को एक साथ कैसे करोड़ों वैक्सीन दे सकती हैं. इसीलिए सब अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं. क्योंकि केंद्र सरकार की तरफ से पहले ही गेंद राज्यों के पाले में डाल दी गई थी, ऐसे में राज्य अपने लोगों को वैक्सीन देने के लिए अब ग्लोबल टेंडर निकालने की बात कर रहे हैं. यानी राज्य खुद ही विदेशों से वैक्सीन खरीदने पर मजबूर हैं.
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क्या है असली परेशानी?

अब राज्य तो एक के बाद एक ऐलान कर रहे हैं कि वो ग्लोबल टेंडर निकालने जा रहे हैं. लेकिन अब तक आपने जितना समझा मामला उतना आसान है नहीं. अब तक करीब 8 राज्यों ने ग्लोबल टेंडर की बात कही है, अगर 15 से 20 राज्य भी ग्लोबल टेंडर के लिए जाते हैं, तो ऐसे में सवाल ये उठता है कि वैक्सीन किसे और कितनी मिल पाएगी. ये सवाल हम इसलिए उठा रहे हैं, क्योंकि ज्यादा से ज्यादा तीन या चार कंपनियां इस ग्लोबल टेंडर में हिस्सा लेंगीं. जिनमें फाइजर, मॉडर्ना, जॉनसन एंड जॉनसन और रूस की स्पूतनिक है. इनमें से अब तक भारत में सिर्फ स्पूतनिक को ही इस्तेमाल की मंजूरी मिली है.

वैक्सीनेशन प्रोग्राम बनेगा राजनीतिक अखाड़ा

यानी फिलहाल सिर्फ एक कंपनी इतने राज्यों के ग्लोबल टेंडर में हिस्सा ले सकती है. हालांकि बाकी कंपनियों के अप्रूवल का भी प्रोसेस जारी है और जल्द ही हो सकता है कि उन्हें भी इस्तेमाल की मंजूरी मिल जाए. लेकिन कंपनियों के अपने पहले ही भारी ऑर्डर हैं, जिन्हें उन्हें पूरा करना है. साथ ही कई राज्यों के एक साथ ऑर्डर को कोई भी कंपनी पूरा नहीं कर पाएगी. इसमें कई महीने लग सकते हैं.

वैक्सीन के लिए अलग-अलग राज्य अपने तरीके से कंपनियों के साथ उलझेंगे. साथ ही इससे राज्यों में एक तरह की होड़ शुरू हो जाएगी कि कौन कितनी वैक्सीन ऑर्डर कर पाता है. जिससे पूरा वैक्सीनेशन प्रोग्राम एक राजनीतिक अखाड़े में तब्दील हो सकता है.
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राज्य सरकारों ने केंद्र से की टेंडर निकालने की मांग

यानी कुल मिलाकर ग्लोबल टेंडर वाली बात भी फिलहाल वैक्सीनेशन में राहत देती हुई नहीं दिख रही है. अगले दो या तीन महीनों में ही राज्यों को इस रास्ते के जरिए वैक्सीन मिलने के आसार हैं. ऐसे में सवाल ये उठता है कि विदेशी कंपनियों के पास अलग-अलग राज्य क्यों वैक्सीन मांगने जाएं, जबकि केंद्र सरकार ये काम खुद कर सकती है. अगर केंद्र सरकार चाहे तो वैक्सीन खरीदने के लिए एक केंद्रीय पॉलिसी बना सकती है. जिसके तहत तमाम वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों से तय कीमत में वैक्सीन की खरीद हो और उसे राज्यों को भेजा जाए. कुछ राज्य सरकारों ने ये मांग भी की है.

दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार लगातार केंद्र सरकार पर वैक्सीनेशन को लेकर हमला बोल रही है. दिल्ली सरकार का कहना है कि केंद्र ने राज्यों को विदेशी कंपनियों के साथ सौदेबाजी करने के लिए मजबूर कर दिया है. जबकि केंद्र सरकार को खुद ग्लोबल टेंडर निकालकर राज्यों को वैक्सीन मुहैया करानी चाहिए. वैसे भी ढेर सारे खरीदार होने कंपनियों को फायदा है. जबकि एक ही खरीदार हो तो कीमत और शर्तों को लेकर कंपनियों पर दबाव होता.
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दिल्ली के अलावा महाराष्ट्र सरकार ने भी केंद्र सरकार से कहा है कि वो वैक्सीन के लिए ग्लोबल टेंडर निकाले. महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि राज्यों के लिए केंद्र सरकार को ग्लोबल टेंडर निकालना चाहिए, इससे राज्यों में होने वाला बेकार का कॉम्पिटिशन नहीं होगा. कांग्रेस शासित राजस्थान ने भी केंद्र से ग्लोबल टेंडर की मांग की है.

अब तक उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली, ओडिशा, तेलंगाना, राजस्थान, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों ने ग्लोबल टेंडर निकालने की बात कही है.

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