ADVERTISEMENTREMOVE AD

कोविड मौत के आंकड़े छुपाती गुजरात सरकार, बेनकाब करते गुजराती अखबार?

गोदी मीडिया से उलट ‘सिस्टम’ से नहीं, सीधे शासन से सवाल

Updated
भारत
4 min read
छोटा
मध्यम
बड़ा

गुजरात के स्थानीय अखबार सौराष्ट्र समाचार ने 6 मई को अपने भावनगर संस्करण में 16 पन्नों में से 8 पन्नों पर कोरोना से मरे लोगों को श्रद्धांजलि छापी थी. जब देश के गोदी मीडिया ने 'सिस्टम' टर्म का आविष्कार करके सरकार से करोना संकट के कुप्रबंधन पर सीधा सवाल करना अब तक जारी नहीं किया है तब गुजरात के स्थानीय अखबार सीधा नाम लेकर सवाल करने का साहस दिखा रहे हैं. और दिखा रहे हैं 'गुजरात मॉडल' की चकाचौंध के नीचे का घुप अंधेरा है. सिर्फ एक पेज पर एडिटोरियल नहीं छाप रहे, आठ-आठ पन्ने पर 'एडिटोरियल' का जौहर दिखा रहे हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

अखबारों के आधे पन्ने श्रद्धांजलि से भरे

गुजरात के स्थानीय अखबारों में रोज छप रहे कोरोना से मरे लोगों के लिए शोक संदेश कोविड महामारी के कुप्रबंधन और डेथ डेटा पर सवाल खड़ा कर रहे हैं.

सौराष्ट्र समाचार ने 6 मई को सिर्फ अपने भावनगर संस्करण के 16 पन्नों के अखबार में से 8 पन्नों पर 238 लोगों के लिए शोक संदेश छापा था. पहली नजर में देखने से ये असामान्य समय की सामान्य घटना लग सकती है लेकिन संवेदनशील लोगों ने जरूर समझा होगा कि अखबार कोविड से होती मौतों और सरकारी आंकड़े के फर्क को दिखाने एक संपादकीय लिखने के बजाय आठ पन्नों में एडिटोरियल छाप रहा था. इसने 9 मई को अपने भावनगर संस्करण में 195 लोगों के लिए शोक संदेश छापे, जबकि 2 महीने पहले 9 मार्च को यह संख्या मात्र 21 थी.
गोदी मीडिया से उलट ‘सिस्टम’ से नहीं, सीधे शासन से सवाल

सौराष्ट्र समाचार ने 9 मई को अपने भावनगर संस्करण में 195 लोगों के लिए शोक संदेश छापे(साभार:सौराष्ट्र समाचार)

0
8 मई को इसने भावनगर संस्करण में 161 लोगों के शोक संदेश छापे जबकि उस दिन सरकारी आंकड़ों के हिसाब से पूरे सौराष्ट्र क्षेत्र में केवल 53 कोरोना मरीजों की मौत हुई थी, जिसमें भावनगर समेत 11 जिले आते हैं.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

सरकारी आंकड़ों में हेराफेरी?

स्थानीय गुजराती अखबारों ने ग्राउंड रिपोर्टिंग के बदौलत जमीनी आंकड़ों और सरकारी आंकड़ों का फर्क सामने लाया है.

इसके कुछ उदाहरणः

  • गुजरात समाचार के अनुसार भरूच के कोरोना समर्पित श्मशान में 8 मई को 7 घंटे के अंदर 35 बॉडी का अंतिम संस्कार किया गया.गुजरात सरकार के आंकड़ों के अनुसार भरूच में कोरोना से 8 मई को सिर्फ 3 लोग मरे.
  • स्थानीय अखबार 'संदेश' के अनुसार गुजरात के गिर सोमनाथ जिला अस्पताल में 8 मई को 6 लोगों की कोरोना से मृत्यु हुई जबकि सरकारी आंकड़ों के हिसाब से 8 मई को जिले में सिर्फ एक करोना मरीज की मृत्यु हुई.
  • 'संदेश' के अनुसार गांधीनगर में 8 मई को 36 कोरोना पीड़ितों की मृत्यु हुई जबकि गुजरात सरकार के आंकड़ों के हिसाब से मात्र 2 .
  • 'संदेश' के अनुसार भरूच के कोरोना समर्पित श्मशान में 7 मई को 65 लोगों का अंतिम संस्कार हुआ जबकि गुजरात सरकार के अनुसार मात्र 2 कोरोना मरीजों की मौत हुई थी.गुजरात समाचार'संदेश'साभार:'संदेश'साभार:'संदेश'गांधीनगर में 8 मई को 36 कोरोना पीड़ितों की मृत्यु हुई
ADVERTISEMENTREMOVE AD

गुजरात में सरकारी आंकड़ों और जमीनी आंकड़ों में यह अंतर हर दिन और हर क्षेत्र में जारी है. शासन से बिना डरे स्थानीय अखबार वास्तविकता सामने ला भी रहे हैं और सवाल भी कर रहे हैं.

‘संदेश’ अखबार के अनुसार 25 अप्रैल से 3 मई के बीच गुजरात के 7 बड़े शहरों ( अहमदाबाद, गांधीनगर, सूरत ,बड़ौदा ,राजकोट ,भावनगर, जामनगर ) में 8286 लोगों का अंतिम संस्कार कोविड प्रोटोकॉल के साथ किया गया जबकि गुजरात सरकार के आंकड़ों में यह संख्या मात्र 1061 ही थी

इन खबरों का असर था कि गुजरात हाईकोर्ट के जस्टिस विक्रमनाथ और भार्गव करिया की बेंच ने खुद संज्ञान लेकर गुजरात सरकार को कहा- "आप जो दावा कर रहे हैं ,स्थिति उससे एकदम अलग है. आप कह रहे हैं कि सब कुछ ठीक है जबकि वास्तविकता इसके ठीक उलट है."

ADVERTISEMENTREMOVE AD

स्थानीय अखबार शासन से कर रहे सीधा सवाल

9 मई को रविवार के संस्करण में गुजरात समाचार ने पहले पन्ने पर हेड लाइन छापी- "प्रधानमंत्री 22 हजार करोड़ के सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट में व्यस्त हैं ".उसके ऊपर सबहेडिंग में लिखा कि "जब भारतवासी जिंदगी और कोविड से होती मौत होत के बीच झूल रहे थे तब हमारा लोकसेवक तानाशाह बन गया था".आगे एक और सबहेडिंग में छापा कि "जब रोम जल रहा था तब नीरो बांसुरी बजा रहा था .कोरोना के बीच 'फकीर' अपने लिए 1000 करोड़ का आलीशान घर बना रहा है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

इससे पहले गुजरात में रेमडेसिविर इंजेक्शन की किल्लत के बीच गुजरात बीजेपी अध्यक्ष सी. आर. पाटिल ने जब 5000 रेमडेसिविर डोज का वितरण सूरत में पार्टी कार्यालय से करने की घोषणा की थी तब इंजेक्शन स्टॉक के लाइसेंस के सवाल पर मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने यह कहा कि "मुझे नहीं पता ,पाटिल से पूछ लो"

इसके बाद स्थानीय अखबार दिव्य भास्कर ने 11 अप्रैल को अपने अखबार के पहले पन्ने पर ही सी आर पाटिल का फोन नंबर छापते हुए लिखा कि “यह नंबर इंजेक्शन’सरकार’,सी आर पाटिल का है. जिसको जरूरत है वह पाटिल को कॉल करके मांग ले. क्योंकि मुख्यमंत्री रुपाणी ने इस सवाल पर ,कि पाटिल के पास इंजेक्शन कैसे आया,कहा है कि आप पाटिल से ही पूछ लो.
गोदी मीडिया से उलट ‘सिस्टम’ से नहीं, सीधे शासन से सवाल

दिव्य भास्कर ने 11 अप्रैल को अपने अखबार के पहले पन्ने पर सी आर पाटिल का फोन नंबर छाप दिया (साभार:दिव्य भास्कर )

ADVERTISEMENTREMOVE AD

सरकारी आंकड़ों की हकीकत सामने लाने को कुछ अखबारों ने श्मशान के बाहर रिपोर्टर बिठा दिये. लोकल टीवी भी ऐसा कर रहे हैं. सवाल है कि ये सब कैसे संभव हो रहा है. क्योंकि आज राष्ट्रीय हो या प्रादेशिक हर स्तर पर मीडिया और सत्ता में साठगांठ के आरोप लगते हैं? गुजरात के अखबारों पर भी ये बात लागू होती है. हालांकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि हालात और भी खराब है.

दरअसल गुजरात में कोविड का कहर और जिंदगियों पर उसका असर असीमित है. आम आदमी के त्राहिमाम के वक्त ये अखबार चुप रहे तो उनकी साख और अस्तित्व का मसला बन सकता है. स्थानीय वरिष्ठ पत्रकारों का कहना है कि अखबारों को सरकार से भी बचना है और अपनी विश्वसनीयता भी बचाए रखनी है. लिहाजा वो जितना हो सके, कर रहे हैं. असलियत ये है कि गुजरात में ग्राउंड पर स्थिति और भी भयावह है. उसका अंशमात्र ही सामने आ रहा है.

अब सवाल ये है कि गोदी मीडिया और उत्तर भारत के स्थानीय अखबारों के न्यूज रूम में भी अपनी विश्वसनीयता को लेकर ऐसी चिंता है क्या?

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें