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रोज का डोज : लोकतंत्र के जश्न में थ्री चीयर्स- राफेल, फिल्म बैन...

राफेल डील, इलेक्टोरल बॉन्ड और मोदी बायोपिक....तीनों पर बीजेपी को झटका

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आप तमाम शिकायतें कर लीजिए कि देश में ये अच्छा नहीं हो रहा, ये बुरा हो रहा लेकिन एक बात से आप इंकार नहीं कर सकते. इस देश में लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थाओं की जड़ें इतनी मजबूत हैं कि इन्हें हिला पाना मुश्किल है. बुधवार को तीन ऐसी खबरें आईं जिन्हें आप डेमोक्रेसी के लिए थ्री चीयर्स कह सकते हैं.. पहली खबर है राफेल पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई को मंजूरी. दूसरी खबर इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी है और तीसरी खबर है मोदी बायोपिक यानी फिल्म पीएम मोदी की रिलीज पर रोक. सबसे पहले  बात राफेल की.

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सुप्रीम कोर्ट राफेल डील में भ्रष्टाचार के आरोपों पर यायिका की सुनवाई करने को राजी हो गया है. कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका के साथ दिए गए उन 3 दस्तावेजों को सबूत के तौर पर पेश किए जाने की मंजूरी दे दी है, जिन पर केंद्र सरकार ने विशेषाधिकार जताया था. इससे पहले केंद्र सरकार ने पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और वकील प्रशांत भूषण की तरफ से राफेल डील मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार याचिका को रद्द करने की मांग की थी. खबर आने के  बाद कांग्रेस ने केंद्र पर तीखा हमला बोला.

‘‘सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि राफेल डील में कुछ भ्रष्टाचार हुआ है और चौकीदार ने चोरी करवाई है.’’
राहुल गांधी, अध्यक्ष, कांग्रेस

जवाब  सरकार की तरफ से भी आया.  रक्षा मंत्री  निर्मला सीतारमण ने कहा-

हम सब जानते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष आधा पैराग्राफ भी नहीं पढ़ पाते हैं. लेकिन उनका कहना कि ‘चौकीदार चोर है’, ये कोर्ट की अवमानना है. जो व्यक्ति खुद जमानत पर है, उसे किसने अधिकार दिया है कि वह कोर्ट के फैसले की गलत व्याख्या करे.

पुनर्विचार याचिका को स्वीकार करते हुए  सरकार  की तमाम आपत्तियों को दरकिनार कर दिया. इस पूरे मामले पर खुलकर बात नहीं करने के पीछे  सरकार की मूल रूप से एक ही दलील थी कि रक्षा मामलों की डिटेल बाहर नहीं आनी चाहिए. लेकिन बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले से जुड़े  दस्तावेज एक अंग्रेजी में छापने को लेकर कहा कि ये प्रेस की आजादी है, और इससे कानून का उल्लंघन नहीं होता.

केंद्र ने इस मामले पर सुनवाई को राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ बताया था . सरकार ने सूचना के अधिकार कानून के सेक्शन 8 (1) का हवाला देते हुए कहा था कि इस कानून में भी राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में  जानकारियों को राज रखने का प्रावधान है. लेकिन  कोर्ट ने इसी कानून के सेक्शन 8 (2) के हवाले से बताया कि  पब्लिक इंटरेस्ट में ऐसी जानकारियां  सार्वजनिक की जा सकती हैं.

सुप्रीम कोर्ट के नए फैसले के  बाद  कांग्रेस को सरकार  पर  नए सिरे से हमला बोलने के लिए हथियार मिल गया है. याद कीजिए पुलवामा हमले और उसके बाद बालाकोट पर एयर स्ट्राइक से पहले सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा राफेल डील में घपले का आरोप ही था. कांग्रेस के तेवर देखने से साफ है कि आने वाले दिनों में ये बड़ा चुनावी मुद्दा बना रहेगा. सच क्या है और झूठ क्या ये फैसला तो अदालत करेगी, लेकिन लोकतंत्र में चीजों पर बात नहीं करने से अच्छी स्थिति है बात करना...लोकतंत्र को फर्स्ट चीयर.

क्या है राफेल डील पर विवाद, यहां क्लिक कर पढ़ें-

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इलेक्टोरल बॉन्ड पर सरकार की फजीहत

मोदी सरकार ने चुनावी चंदे को साफ सुधरा बनाने के लिए  इलेक्टोरल बॉन्ड लॉन्च किए. इलेक्टोरल बॉन्ड लाने के वक्त ये बताया गया था कि बॉन्‍ड के जरिए कौन किसको चंदा दे रहा है, इसकी जानकारी डोनर केअलावा और किसी को नहीं होगी. बुधवार को इलेक्टोरल बॉन्ड के खिलाफ सुनवाई के दौरान  चुनाव आयोग ने कह दिया कि हम इलेक्टोरल बॉन्ड के खिलाफ नहीं लेकिन इसमें पारदर्शिता में कमी के खिलाफ हैं. इसपर सरकार की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि चंदा देने वालों का नाम इसलिए गुप्त रखा जा रहा है ताकि उन्हें कोई टारगेट न करे. इसके बाद कोर्ट ने जो पूछा उसका अटॉर्नी जनरल जवाब नहीं दे पाए.

दरअसल चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने वेणुगोपाल से पूछा कि क्या आपको ये जानकारी है कि बैंक को पता रहेगा कि किसने चंदा दिया है? इस पर सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण ने ‘द क्विंट’ की रिपोर्ट के हवाले से बताया कि ये बात सच है कि बैंक को डोनर के बारे मेंजानकारी मिल जाएगी क्योंकि बॉन्ड पर छिपे हुए अल्फान्यूमेरिक नंबर दिए गए हैं. इस नंबर से पता किया जा सकता है कि किसने चंदा दिया है. इसके बाद कोर्ट ने वेणुगोपाल से जवाब मांगा तो वो फंस गए.

कुल मिलाकर जिस इलेक्टोरल बॉन्ड को सरकार चुनाव सुधार का नाम दे रही थी, वो सियासी चंदे में  बड़े घालमेल  की  वजह बन सकती है. बैंक को मालूम होगा कि पैसा किसने दिया है,.ऐसे में इसकी गारंटी कौन लेगा कि बैंक से  ये जानकारी सत्तारूढ़ पार्टी और सत्ताधीशों तक नहीं पहुंचेगी. तो चुनाव के पहले चंदा  और उसके बाद फेवर लौटाने की परंपरा जारी नहीं रहेगी , इसकी गारंटी नहीं दी जा सकती . जब चंदा देने वालों का नाम पता चल जाएगा तो विपक्ष में बैठी पार्टी सत्ता में आने के बाद  विरोधी को चंदा देने  वाली कंपनियों या लोगों से बदला भी ले सकती है.

इलेक्टोरल बॉन्ड के पूरे कॉन्सेप्ट में समस्या ये है कि चंदा देने वाला जान रहा है कि वो किसे चंदा दे रहा है , चंदा लेने वाला जान  सकता है कि कौन कितना चंदा दे रहा है लेकिन इस लोकतंत्र  में  जो सबसे जरूरी पार्टी है  (वोटर) वो अंधेरे में है.

ये बात सामने आ चुकी है कि चुनाव आयोग ने इसका विरोध किया था और सरकार ने इस विरोध के बावजूद इसे लागू किया. अब सवाल जवाब हो रहे हैं ये लोकतंत्र के लिए अच्छी बात है....लोकतंत्र को सेकंड चीयर.

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मोदी बायोपिक पर रोक

चुनाव  आयोग ने ऐन मतदान के दिन मोदी बायोपिक की रिलीज पर रोक लगा दी है. चुनाव आयोग ने माना है कि इससे किसी एक पार्टी या उम्मीदवार को फायदा पहुंच सकता है. चुनाव आयोग के इसी निर्देश के हवाले से ये खबर भी आ गई है कि चौबीस घंटे पीएम मोदी का भाषण सुनाने  वाले चैनल नमो टीवी पर रोक लग गई है. सवाल उन टीवी शोज पर भी उठे हैं जो छिपे तौर पर केंद्र सरकार की योजनाओं और नीतियों का गुणगान कर रहे हैं. उम्मीद है इसी निर्देश से इनपर भी रोक लगेगी.

ये सही है कि इससे बीजेपी के चुनाव प्रचार में उतनी ही कमी आएगी जैसे सागर से एक लोटा पानी निकाल लिया जाए. लेकिन चुनाव आयोग के इस निर्देश का बीजेपी पर बड़ा नैतिक असर होगा. कुल मिलाकर मैसेज ये है कि सत्तारूढ़ पार्टी प्रचार  पाने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल कर रही थी. सबसे बड़ी बात ये है कि वोटर ये सब देख रहा है. लोकतंत्र के लिए थर्ड चीयर.

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