न्यूजीलैंड और भारत के बीच आखिरी के दो T-20 मैचों की तरह दिल्ली का सियासी मैच भी सुपर ओवर में पहुंच गया है. बीजेपी के तेज गेंदबाजों ने अभी तक जितने बाउंसर मारे हैं, उन्हें केजरीवाल ने डक कर अपना विकेट बचाया है. जितनी गुगली दी है, उसे केजरीवाल एंड टीम ने वक्त रहते भांप लिया है. केजरीवाल, मनीष सिसोदिया की जोड़ी न फुलटॉस से ललचा रही है और न ही ब्लॉकहोल वाली गेंदों में कोई रिस्क ले रही है. दोनों अपना स्वाभाविक खेल छोड़ने को तैयार नहीं हैं और क्रीज पर डटे हुए हैं. इन दोनों की एकाग्रता देखकर अब लगता है कि बीजेपी के गेंदबाजों की लाइन लेंग्थ बिगड़ गई है.
बीजेपी की गुगली में नहीं आई AAP
बीजेपी ध्रुवीकरण की गुगली फेंकती है लेकिन केजरीवाल लपेटे में नहीं आते. बीजेपी शाहीन बाग कहती है, आम आदमी पार्टी बिजली-पानी बोलती है. बीजेपी ने एक नहीं कई बार मनीष सिसोदिया का वो बयान याद दिलाया कि 'हम शाहीन बाग के साथ हैं'. उधर से जवाब आता है कि हमारा काम देखो. खबरिया चैनलों के स्पेशलिस्ट बॉलरों ने भी दनदनाती हुई गेंदें फेंकी- शाहीन बाग पर क्या कहेंगे? जवाब एक ही आता है- हमारे काम पर बात कीजिए, शिक्षा पर बात कीजिए, मोहल्ला क्लिनिक पर बात कीजिए.
जब AAP ने यॉर्कर को बनाया फुलटॉस
केजरीवाल को काम वाली गेंद पर आगे बढ़-बढ़कर शॉट लगाते देख, बीजेपी ने अपने सभी सांसदों को मैदान में उतारा और उन्हें यॉर्कर फेंकने को कहा. ये सांसद अलग-अलग स्कूल गए और स्टिंगनुमा ऑपरेशन किया. बताया कि केजरीवाल तो कहते हैं कि स्कूल चकाचक हैं, लेकिन सच्चाई देखिए, स्कूल बदहाल हैं. इस फुलटॉस पर केजरीवाल और मनीष सिसोदिया ने जोरदार शॉट लगाए.
दोनों ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दावा किया कि जिन स्कूल इमारतों को बदहाल बताया जा रहा है, उनमें से कई में पढ़ाई नहीं हो रही. कुछ दूसरी बिल्डिंग में शिफ्ट हो चुकी हैं. तो कुछ की बगल में ही नई इमारत बनी पड़ी है. एक स्कूल के बारे में ये बताया कि जिस कमरे का वीडियो सासंद ने बनाया और कहा कि देखिए यहां बच्चे जमीन पर बैठकर पढ़ते हैं, वो दरअसल क्लासरूम था ही नहीं. कुल मिलाकर लगा ये कि बीजेपी के इस यॉर्कर को केजरीवाल-सिसोदिया ने फुलटॉस में बदलकर बाउंड्री पार कर दिया.
प्रवेश, अनुराग के यॉर्कर महंगे पड़े
खेल बिगड़ता देख बीजेपी वापस अपने खेल पर आई. प्रवेश वर्मा और अनुराग ठाकुर ने बाउंसर मारे. प्रवेश वर्मा ने शाहीन बाग को लेकर दिल्ली वालों की धमकी दी कि अगर अभी नहीं संभले तो शाहीन बाग वाले आकर रेप करेंगे. केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने नारे लगवाए- देश के गद्दारों को..गोली मारो @#&$ को...
इस पर भी केजरीवाल ने डिफेंसिव खेला. कुछ नहीं बोले. लेकिन अनुराग और प्रवेश के दांव उलटे तब पड़ गए जब अंपायर यानी चुनाव आयोग ने इन गेंदों को नो बॉल करार दे दिया. पहले तो दोनों को बीजेपी के स्टार प्रचारक लिस्ट से बाहर करवाया और फिर प्रचार पर ही 72 घंटे का बैन लगा दिया.
अनुराग के मामले में लेनी की देनी और हो गई. इधर अनुराग ने गोली मारो के नारे लगवाए उधर एक 'भक्त' गन लेकर जामिया पहुंच गया. जय श्री राम के नारे लगाए और गोली चला दी. पूर्व अंपायर यानी पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त तक ने कह दिया कि इनपर लोगों को भड़काने 153(A) का केस चलना चाहिए. केजरीवाल ने घेरा कि बीजेपी अशांति फैलाकर चुनाव टालना चाहती है.
केजरीवाल का अपना गेम
इस बीच केजरीवाल अपने गेम पर बने हुए हैं. लाख उकसावे के बावजूद वो शाहीन बाग नहीं गए. हां welcomekejriwal.in के जरिए दिल्ली के घर-घर जरूर जा रहे हैं, अपने काम के बारे में बता रहे हैं.
बीजेपी बैक टू बैक ध्रुवीकरण की गेंद फेंक रही है तो आम आदमी पार्टी शॉट लगा रही है कि दरअसल बीजेपी को हार का डर सता रहा है, इसलिए भड़काऊ बयान ही उसके पास आखिरी हथियार हैं. सियासी पंडित मोदी के पैवेलियन में बैठने और अमित शाह के मैदान में उतरने को भी इसी से जोड़कर देख रहे हैं. सी-वोटर का चुनाव ट्रैकर भी यही कहता है कि बीजेपी गेम में पीछे है.
वैसे तो हाल तक आम आदमी पार्टी और केजरीवाल को सियासी खेल का नौसिखिया कहा जाता था लेकिन पुरानी पार्टियां अब इनसे सीख सकती हैं. जरा याद कीजिए लोकसभा चुनाव में किस तरह पूरा विपक्ष आर्टिकल 370, कश्मीर, पुलवामा, सर्जिकल स्ट्राइक के लपेटे में आया था. तब मोदी जी ने पिच सेट की थी. उन्होंने वो गेम सजाया था जिसमें वो माहिर हैं. और विपक्षी पार्टियां उनकी सजाई पिच पर बैटिंग करने उतरी थीं..नतीजा सबके सामने है.
आम आदमी पार्टी अपने काम पर बैटिंग तो कर रही है लेकिन कितने रन बने ये 8 फरवरी को तय करेगा थर्ड अंपायर यानी दिल्ली का वोटर, लेकिन फिलहाल लग रहा है केजरीवाल ने शुरुआती जंग जीत ली है.
बीजेपी की लाख कोशिशों के बावजूद केजरीवाल हिंदू मुस्लिम, CAA, NRC के फेरे में नहीं आए. हकीकत ये है कि दिल्ली के चुनावी मैदान में बीजेपी आम आदमी पार्टी की सजाई पिच पर खेलने को मजबूर हो गई है. बीजेपी की लाख कोशिशों के बावजूद दिल्ली का चुनाव दरअसल काम और विकास के मुद्दे पर ही लड़ा जा रहा है, जैसा कि होना चाहिए.
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