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30 साल में पहली बार आडवाणी सिर्फ एक वोटर के तौर पर बूथ पर नजर आए

अपनी जिंदगी के कई दशक अपनी पार्टी के लिए कुर्बान करने वाले लाल कृष्ण आडवाणी पहली बार चुनावी मैदान से बाहर हैं.

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बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी मंगलवार को अहमदाबाद में एक आम वोटर की तरह मतदान करने पहुंचे. जिंदगी के कई दशक अपनी पार्टी को देने वाले लाल कृष्ण आडवाणी पहली बार चुनाव मैदान से बाहर हैं. 2014 के चुनाव में भी लाल कृष्ण आडवाणी ने जीत हासिल की थी, लेकिन जिस गांधी नगर से वो 6 बार लोकसभा पहुंचे आज वहां से बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह चुनाव लड़ रहे हैं.

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1951 में जब श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्‍थापना की तब लाल कृष्ण आडवाणी जनसंघ के सदस्य बन गए. 1972 में आडवाणी जनसंघ के अध्यक्ष बने. 1970 से 1989 तक लाल कृष्ण आडवाणी राज्यसभा सांसद रहे. 1989 में पहली बार लोकसभा चुनाव जीता. और उसके बाद लगातार तीस साल तक सांसद रहे. 2002 से 2004 के बीच अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधानमंत्री थे, तब आडवाणी देश के उप-प्रधानमंत्री रहे. 2004 में जब खराब सेहत की वजह से अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति से सन्‍यास लिया तब आडवाणी बीजेपी नंबर वन नेता बन गए. 1986, 1993 और 2004 में आडवाणी को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अध्‍यक्ष भी चुना गया.

अपनी जिंदगी के कई दशक अपनी पार्टी के लिए कुर्बान करने वाले लाल कृष्ण आडवाणी पहली बार चुनावी मैदान से बाहर हैं.
वाजपेयी के राजनीति से सन्‍यास लेने के बाद आडवाणी बीजेपी के नंबर वन नेता बन गए
(फाइल फोटो: Reuters)

2019 का चुनाव लाल कृष्ण आडवाणी के लिए बिल्कुल अलग है, जिस पार्टी को आडवाणी ने अपनी मेहनत से खड़ा किया था, उस पार्टी के नेता अब आडवाणी की राय भी लेना जरूरी नहीं समझते. गांधीनगर सीट से टिकट कटने के बाद अपने आडवाणी ने अपना दर्द कुछ इस तरह बयां किया था

मैं गांधीनगर के लोगों के प्रति आभारी और कृतज्ञ हूं, जिन्होंने 1991 के बाद छह बार मुझे लोकसभा के लिए चुना है. उनके प्रेम और समर्थन ने मुझे हमेशा अभिभूत किया है. मातृभूमि की सेवा करना मेरा जुनून और मेरा मिशन है. मैंने 14 साल की आरएसएस ज्वाइन किया. और इसके बाद मेरा राजनीतिक जीवन लगभग सात दशकों से अपनी पार्टी के साथ अविभाज्य रूप से जुड़ा रहा है. पहले भारतीय जनसंघ के साथ और बाद में भारतीय जनता पार्टी. मैं दोनों का संस्थापक सदस्य रहा हूं. पंडित दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी और कई अन्य महान, प्रेरणादायी, दिग्गज नेताओं के साथ मिलकर काम करने का मेरा दुर्लभ सौभाग्य रहा है.

जिस गांधी नगर से आडवाणी का इतना गहर रिश्ता था, वहां से अब अमित शाह चुनाव लड़ रहे हैं. आखिरी वक्त तक बीजेपी से गरिमामय और यादगार विदाई के लिए तरसते रहे आडवाणी ने कुछ दिन पहले ही एक ब्लॉग लिखकर अपनी पार्टी के नेताओं को नसीहत दी थी कि अपने विरोधियों को दुश्मन न मानें.

भारतीय लोकतंत्र का मतलब विविधता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान है. पार्टी व्यक्तिगत और राजनीतिक स्तर पर प्रत्येक नागरिक की पसंद की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध है. बीजेपी हमेशा मीडिया सहित हमारे सभी लोकतांत्रिक संस्थानों की स्वतंत्रता, अखंडता, निष्पक्षता और मजबूती की मांग करने में सबसे आगे रही है. चुनावी सुधार, राजनैतिक और चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता हमारी पार्टी के लिए प्राथमिकता रही है.”

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