यूपी में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के चीफ ओमप्रकाश राजभर और बीजेपी के बीच साल भर से रूठने-मनाने का सिलसिला चल रहा था. राजभर बीजेपी पर लगातार अपनी और अपनी पार्टी की अनदेखी का आरोप लगा रहे थे. उन्होंने बीजेपी से लोकसभा की दो सीटें मांगी थी. लेकिन बीजेपी ने कहा, कोई सीट नहीं मिलेगी. राजभर की पार्टी के उम्मीदवार बीजेपी के सिंबल पर लड़ सकते हैं. इससे नाराज होकर राजभर ने अपने 39 उम्मीदवार मैदान में उतार दिए. बीजेपी को यह भारी पड़ सकता है.
राजभर की नाराजगी पूर्वांचल में बीजेपी पर भारी पड़ेगी?
राजभर की पार्टी का पूर्वांचल में खासा आधार है. 2012 के विधानसभा चुनावों में बलिया, गाजीपुर, मऊ, वाराणसी जैसे क्षेत्र में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के उम्मीदवारों को खासे वोट मिले थे. वाराणसी में कई विधानसभा सीटों पर पार्टी के उम्मीदवारों को 18 से 30 हजार तक वोट मिले थे. एक-दो जगहों पर 40 हजार वोट मिले थे. विधानसभा चुनाव के लिहाज से इतने वोट काफी ज्यादा माने जाते हैं. हालांकि 2012 विधानसभा चुनाव में पार्टी किसी सीट पर जीत हासिल करने में नाकाम रही थी. 2017 में बीजेपी के साथ गठबंधन की बदौलत पार्टी को आठ सीटें मिलीं, जिनमें से वह चार पर जीतने में कामयाब रही थी. ओमप्रकाश राजभर को योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री भी बनाया गया.
2019 का लोकसभा चुनाव नजदीक आते ही ओमप्रकाश राजभर अपने तेवर दिखाने लगे थे. अपनी पार्टी के लिए वो 31 सीटें मांगने लगे. बीजेपी ने यह मांग नहीं मानी लेकिन ओमप्रकाश नाराज न हों इसलिए चुनाव के घोषणा से एक दिन पहले उनकी पार्टी के नौ लोगों को अलग-अलग आयोगों का उपाध्यक्ष और अध्यक्ष बना कर राज्य मंत्री का दर्जा दे दिया दिया. इसके बाद वह शांत हो गए और उन्होंने दो सीटों की मांग रखी. लेकिन बीजेपी ने उन्हें ये सीटें भी नहीं दी. जिस घोसी सीट पर ओमप्रकाश अपने सिंबल पर चुनाव लड़ना चाह रहे थे वहां भी बीजेपी ने उन्हें कमल चुनाव चिन्ह पर लड़ने को कहा. इसके बाद वह भड़क गए और लखनऊ में प्रेस कांफ्रेंस कर अपनी पार्टी के 39 उम्मीदवारों के नामों का ऐलान कर दिया.
राजनाथ और मोदी के खिलाफ भी उतार दिए उम्मीदवार
राजभर की नाराजगी इतनी ज्यादा है कि उन्होंने लखनऊ में राजनाथ सिंह और वाराणसी में पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ उम्मीदवार उतारे हैं. लखनऊ में उन्होंने बब्बन राजभर को उतारा है तो वाराणसी में सिद्धार्थ राजभर को. राजभर ने लखनऊ की प्रेस कांफ्रेंस में अपनी पार्टियों के उम्मीदवारों का ऐलान करते हुए कहा
बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की इच्छा आज भी है. लेकिन अपना दल को दो सीटें देने के बावजूद अब तक हमें एक भी सीट देने को राजी नहीं हुए. मुझे बुलाकर बीजेपी के सिंबल पर लड़ने के लिए समझाया जा रहा है. मैं अपने संगठन को खत्म कर बीजेपीके सिंबल पर चुनाव नहीं लड़ूंगा. मैंने सूबे की 39 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है
राजभर ने कहा कि वह समाज में अपनी उचित हिस्सेदारी न पाने वालों को टिकट देंगे. वह अपने उम्मीदवारों के प्रचार-प्रसार के लिए नहीं लड़ रहे हैं. राजभर ने एसपी- बीएसपी को दगे हुए कारतूस बताया. उन्होंने कहा, "बीजेपी ने सिर्फ हमें विधायक नहीं बनाया, हमने भी उनके सैकड़ों विधायक बनाए हैं."
यूपी में अति पिछड़ी जातियों में शामिल राजभर समुदाय के नेता ओमप्रकाश राजभर का कहना है कि उनकी पार्टी अपना दल और निषाद पार्टी से ज्यादा मजबूत है. लेकिन अपना दल को तो बीजेपी ने सीटें दे दी लेकिन उनकी पार्टी को दो सीटें भी देने को तैयार नहीं है. डॉ. संजय निषाद की निषाद पार्टी को बीजेपी ने खुद में मिला लिया है. डॉ. संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद को संत कबीरनगर से बीजेपी का टिकट भी मिल गया है. राजभर को उम्मीद थी उनकी पार्टी को घोसी के अलावा कोई और सीट मिल जाएगी. लेकिन उनकी हसरत पूरी नहीं हुई.
बीएसपी की ओर खिसक सकते हैं राजभर वोट
पूर्वांचल में राजभर जाति के मतदाता कम से कम 12 जिलों में निर्णायक साबित हो सकते हैं. गाजीपुर में राजभर मतदाताओं की खासी संख्या है. इसलिए ये कयास लगाया जा रहा है कि यहां से चुनाव लड़ रहे केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा को ओमप्रकाश राजभर की नाराजगी महंगी पड़ सकती है. राजभर कोहार, कुम्हार, खटिक, नट, बांसफोड़ जैसी अति पिछड़ी जातियों को जोड़ने में लगे हैं . उन्होंने यूपी के लगभग हर जिले में समर्थकों को जोड़ना शुरू किया है और अति पिछड़ी जातियों के अहम नेता के रूप में उभरे हैं. बीएसपी में भी राजभर समुदाय के मजबूत नेता सुखदेव राजभर और रामअचल राजभर हैं. अगर राजभरों में यह संदेश गया कि बीजेपी ने उनकी जाति को कोई तवज्जो नहीं दी तो ये वोट बीएसपी को भी जा सकते हैं. ओमप्रकाश राजभर की पार्टी के समर्थक राजभर जाति के लोग देखेंगे कि अगर बीजेपी को बीएसपी और एसपी का उम्मीदवार हरा सकता है तो वे उसे ही वोट देंगे. इससे कई सीटों पर बीएसपी, बीजेपी पर भारी पड़ सकती है.
ओमप्रकाश राजभर यूपी में पिछड़ा वर्ग कल्याण और दिव्यांग जन विकास मंत्री हैं. पिछले कुछ अरसे से राज्य सरकार से उनकी अनबन चलती रही है. एक बार उन्होंने इस्तीफा भी दे दिया था.लेकिन यह मंजूर नहीं हुआ. राजभर अति पिछड़ों के नेता के तौर पर खुद को स्थापित करने में लगे हैं. उनका कहना है कि अति पिछड़ी जातियों को उनका हक नहीं मिल रहा. इसलिए वे राज्य में पिछड़ी जातियों के आरक्षण को तीन हिस्सों में बांटने की नीति को हवा देते रहे हैं. उनका राजभर के अलावा दूसरी अति पिछड़ी जातियों में खासा दबदबा है. अगर इस बीच, बीजेपी ओमप्रकाश राजभर की नाराजगी का डैमेज कंट्रोल में नाकाम रहती है तो पूर्वांचल में उसे भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है
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