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ताजा सर्वे के मुताबिक दलित, आदिवासी और UP मोदी को दे सकते हैं झटका

सर्वे इस ओर इशारा करते हैं कि एनडीए के लिए समर्थन दो मुख्य कारणों की बदौलत बढ़ा है

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चुनाव
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अगर नवीनतम ओपिनियन पोल के मुताबिक देखा जाए, तो प्रधानमंत्री दोबारा चुनाव जीत सकते हैं. हालांकि 2014 लोकसभा चुनावों की अपेक्षा बहुमत कम रहने के आसार हैं. नवीनतम सी-वोटर सर्वे यह बताता है कि भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाले एनडीए को 265 सीटें मिल सकती हैं, जो बहुमत से बस 7 सीटें कम है, जबकि इंडिया टीवी-सीएनएक्स सर्वे इसे 285 सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत दे रहा है.

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हालांकि इंडिया टुडे का पॉलिटिकल स्टॉक एक्सचेंज सीटों का अनुमान नहीं लगाता है, बल्कि यह कहता है कि 52 प्रतिशत मतदाता मोदी को ही बतौर प्रधानमंत्री देखना चाहते हैं.

सर्वे इस ओर इशारा करते हैं कि एनडीए के लिए समर्थन दो मुख्य कारणों की बदौलत बढ़ा है: पुलवामा हमला और उसके बाद बालाकोट में होने वाली एयर स्ट्राइक और महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ बीजेपी का गठबंधन.

हालांकि बीजेपी को विशेष रूप से तीन मोर्चों पर झटकों का सामना करना पड़ रहा है: भारत भर में दलित और आदिवासी मतदाता, उत्तर प्रदेश और पूर्वोत्तर राज्यों में एसपी-बीएसपी-आरएलडी महागठबंधन.

दलितों और आदिवासियों का बीजेपी से पलायन

इंडिया टुडे के पॉलिटिकल स्टॉक एक्सचेंज के डाटा से पता चलता है कि प्रधानमंत्री मोदी के जनाधार के इर्द-गिर्द एक स्पष्ट जातीय विभाजन है, जबकि उच्च जातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों के बीच मोदी की लोकप्रियता बढ़ी है. वहीं दलितों और आदिवासियों में उनके लिए समर्थन घटा है.

पुलवामा हमले और बालाकोट स्ट्राइक के बाद आतंकवाद पर बढ़ते फोकस के अलावा उनके समर्थन में यह उछाल सामान्य श्रेणी में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए कोटा की घोषणा के कारण भी हो सकता है.

दलितों और आदिवासियों में मोदी के लिए समर्थन में गिरावट के विपरीत इन वर्गों में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की लोकप्रियता बढ़ी है. राहुल गांधी को मुस्लिम मतदाताओं में भी बढ़त हासिल है, जहां 61 प्रतिशत मतदाता उन्हें प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं, जबकि 18 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता मोदी को अगला प्रधानमंत्री देखना चाहते हैं.

यह डाटा इस धारणा के खिलाफ जाता है कि पुलवामा हमले के कारण विभिन्न जातियों और समुदायों के लोग प्रधानमंत्री मोदी के पीछे एकजुट खड़े होंगे.

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राज्यवार पहलू

जाति के साथ-साथ इसका एक स्पष्ट क्षेत्रीय आयाम भी है. पिछले दो महीनों में भिन्न-भिन्न राज्यों में मोदी के लिए समर्थन भिन्न-भिन्न रहा है.

बीजेपी को सबसे ज्यादा फायदा महाराष्ट्र से मिला है, जहां इसका शिवसेना के साथ गठबंधन हुआ और फिर आता है तमिलनाडु और पुडुचेरी, जहां इसने अन्नाद्रमुक और छोटे दलों के साथ गठजोड़ किया है.

इन राज्यों के अलावा बिहार में वोट शेयर में 4.2% की बढ़त के साथ बीजेपी का समर्थन बढ़ा है, वहीं मेघालय और नागालैंड में वोट शेयर में 9.8% की गिरावट आई है. दरअसल, बीजेपी असम में भी अपना आधार खो चुकी है, जो इशारा करता है कि नागरिकता विधेयक का मुद्दा पूर्वोत्तर के अधिकांश हिस्से में इसे नुकसान पहुंचा सकता है.

ऐसा कहा जा रहा है कि पार्टी का वोट शेयर पश्चिम बंगाल में भी बढ़ा है, लेकिन फिलहाल सीटों के मामले में इससे बहुत ज्यादा मदद नहीं मिलेगी. हालांकि सी-वोटर सर्वे ओडिशा में बीजेपी को महत्वपूर्ण लाभ मिलने की भविष्यवाणी कर रहा है.

दूसरी ओर बीजेपी को राजस्थान और छत्तीसगढ़- जहां पिछले साल विधानसभा चुनावों में पार्टी की हार हुई थी, वहां कुछ फायदा मिला है. हालांकि राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश में इसकी लोकप्रियता में गिरावट जारी है.

उत्तर प्रदेश के आंकड़ों से पता चलता है कि एसपी-बीएसपी-आरएलडी महागठबंधन से इसे सबसे बड़ा झटका लगने वाला है. सी-वोटर सर्वे एनडीए को 29 और महागठबंधन को 47 सीटें दे रहा है. पुलवामा हमलों के बावजूद, गठबंधन के संयुक्त वोट शेयर में दो महीने पहले की तुलना में मामूली वृद्धि हुई है, जबकि एनडीए में 1 प्रतिशत की गिरावट आई है.

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प्रमुख अंश

  • बीजेपी के लिए सबसे ज्यादा लाभ गठबंधन के कारण हैं, न कि राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर आक्रामकता के कारण.
  • गठबंधन के इतर बीजेपी को लाभ मुख्यतः पूर्वी और उत्तरी भारत से मिला है.
  • बीजेपी के लिए झटका उन राज्यों में सबसे ज्यादा तगड़ा है जहां कोई क्षेत्रीय मुद्दा इसके खिलाफ लामबंदी कर रहा है, जैसे - मेघालय, नागालैंड, मणिपुर और असम में नागरिकता विधेयक और आंध्र प्रदेश में विशेष राज्य का दर्जा देने का मुद्दा.
  • उत्तर प्रदेश में, अखिलेश यादव, मायावती और अजित सिंह जैसे नेताओं का गठबंधन- जिन्हें अपने-अपने जाति समूहों के साथ-साथ मुसलमानों में भी मजबूत समर्थन प्राप्त है, बीजेपी को भारी नुकसान पहुंचाते हुए दिखाई देते हैं.
  • प्रधानमंत्री मोदी उच्च जातियों और अन्य पिछड़ा वर्ग को मजबूत करने में सफल रहे हैं, लेकिन वे दलितों और आदिवासियों के बीच गुस्से को दूर करने में विफल रहे हैं.
  • बीजेपी के गढ़ गुजरात में इसकी लोकप्रियता में 1 प्रतिशत की गिरावट आई है. यह आश्चर्यजनक है, क्योंकि पुलवामा हमले के बाद राज्य में मोदी के समर्थन में उछाल की उम्मीद की जा रही थी.
  • हमें इस पर नजर जमाए रखने की जरूरत है, क्योंकि यह गिरावट तब और भी बढ़ सकती है जब पाटीदार नेता हार्दिक पटेल कांग्रेस में शामिल होंगे और इसके लिए प्रचार करेंगे.

कुल मिलाकर निष्कर्ष यह है कि पुलवामा हमले के बाद मोदी के राष्ट्रवादी नैरेटिव ने अपने प्रमुख राज्यों में बीजेपी के प्रमुख मतदाताओं को उत्साहित किया है. हालांकि उन राज्यों, जैसे- उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, पंजाब और पूर्वोत्तर में ज्यादा फायदा नहीं मिला है, जहां जातीय नेता और क्षेत्रीय ताकतें एक मजबूत काउंटर नैरेटिव चला रहे हैं.

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