Maharashtra Election 2024: महाराष्ट्र में एकबार फिर महायुति की सरकार बनने जा रही है जिसमें बीजेपी, एकनाथ गुट वाली शिवसेना और अजित पवार गुट वाली एनसीपी शामिल है. सवाल है कि 288 विधानसभा सीटों में से 16 सीटों पर चुनाव लड़ रही असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) का क्या हुआ?
चलिए बताते हैं.
AIMIM को इन 16 सीटों में से केवल एक सीट पर जीत हासिल हुई है. मालेगांव मध्य से पार्टी के मौजूदा विधायक मुफ्ती मोहम्मद इस्माइल ने जीत हासिल की है. इसके अलावा चार सीटों पर पार्टी के उम्मीदवार दो नंबर पर रहे हैं:
औरंगाबाद पूर्व से पार्टी के उम्मीदवार इम्तियाज जलील सैयद दो नंबर पर रहें. उन्हें बीजेपी के अतुल मोरेश्वर सावे ने मात दी है.
औरंगाबाद सेंट्रल से पार्टी के उम्मीदवार सिद्दीकी नसीरुद्दीन तकीउद्दीन दो नंबर पर रहें. उन्हें एकनाथ गुट वाली शिवसेना के जयसवाल प्रदीप शिवनारायण ने मात दी है.
धुले सिटी से मौजूदा विधायक शाह फारूक अनवर दूसरे नंबर पर चल रहे हैं. उन्हें बीजेपी के अग्रवाल अनुपभैया ओम प्रकाश ने मात दी है.
मानखुर्द शिवाजीनगर से AIMIM के उम्मीदवार अतीक अहमद खान को एसपी उम्मीदवार अबू आसिम आजमी ने हराया है.
AIMIM ने इस साल महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में 16 उम्मीदवार उतारे थे, जबकि 2019 में 44 उम्मीदवार थे. 2014 के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने 22 उम्मीवार उतारे थे. यानी लगभग दो-तिहाई कम उम्मीदवार. 2019 में पिछले महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में, ओवैसी के नेतृत्व वाली पार्टी ने दो सीटें जीती थीं - धुले सिटी और मालेगांव मध्य.
2019 के विधानसभा चुनावों में, AIMIM औरंगाबाद सेंट्रल, औरंगाबाद पूर्व, बायकुला और सोलापुर सिटी सेंट्रल में दूसरे स्थान पर रही थी.
AIMIM ने इस बार मुस्लिम-दलित वोटों को अपने पक्ष में मजबूत करने की उम्मीद से एससी-रिजर्व सीटों से चार दलित उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था. हालांकि नतीजों को देखकर लगता है कि पार्टी को इसका बहुत ज्यादा फायदा नहीं मिला है क्योंकि इन चारों सीट पर पार्टी बुरी तरह हारी है.
इस महीने की शुरुआत में, ओवैसी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि उनकी पार्टी ने कांग्रेस के नेतृत्व वाले महा विकास अघाड़ी गठबंधन से संपर्क किया था और बीजेपी के नेतृत्व वाली महायुति को हराने के लिए इस चुनाव में उनके साथ शामिल होने की इच्छा जाहिर की थी. हालांकि, उन्होंने कहा कि उन्हें गठबंधन से कोई जवाब नहीं मिला और उन्होंने अपने दम पर चुनाव लड़ने का फैसला किया.
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