पीएम मोदी के पिछले कुछ मेगा इंटरव्यूज और बिग एक्सक्लूसिव इंटरव्यूज से उनके बारे में कुछ रोचक जानकारियां मिलीं. पता चला कि वो खिचड़ी पका लेते हैं, रोटी बना लेते हैं. 'मेकिंग ऑफ मोदी जैकेट' के बारे में पता चला. वो बटुआ नहीं रखते, ये भी पता चला. कितने घंटे सोते हैं ये तो कई बार पता चला. आम कैसे खाते हैं, ये पता चला. उनकी पर्सनल लाइफ के ढेर सारे पहलू आज हमारे सामने हैं. होने भी चाहिए. आखिर देश के पीएम हैं. लेकिन क्या कभी सोचा है कि राहुल गांधी आम खाते हैं या नहीं? खाते हैं तो गुठली के साथ या बगैर? बटुआ रखते हैं या नहीं? उनके फैशन का राज क्या है? कितने घंटे सोते हैं? क्या पका लेते हैं, या कुछ पका ही नहीं पाते?
राहुल गांधी से जो इंटरव्यू लिए जा रहे हैं उनमें उनकी पर्सनल लाइफ से जुड़ा कोई सवाल नजर नहीं आता. आखिर वो भी विपक्ष के नेता हैं. जनता ने चाहा तो सरकार भी बना सकते हैं? तो शायद जनता उनके बारे में भी कुछ पर्सनल चीजें जानना चाहेगी?
राहुल गांधी का एक नया टीवी इंटरव्यू सामने आया है. इस इंटरव्यू में उनसे 1984 के दंगों के बारे में पूछा गया, राफेल डील पर पूछा गया. 22 लाख नौकरियां देंगे या नहीं देंगे, इस पर पूछा गया. पूछा भी जाना चाहिए. जो शख्स देश को नए सिरे से नए तरीके से चलाने के वायदे कर रहा है उससे उसके विजन के बारे में पूछा ही जाना चाहिए. राहुल गांधी बेझिझक इन सवालों के जवाब भी दे रहे हैं. कई बार तो पलटकर सवाल भी पूछ रहे हैं.
एक उदाहरण
एंकर- प्रियंका जी ने दिल्ली के रोड शो में कहा था कि जीएसटी और नोटबंदी पर अबके चुनाव हो जाए. हमने पीएम मोदी से ये सवाल पूछा था. तो उनका कहना था कि नोटबंदी पर चुनाव तो यूपी में हो चुका. हम जीते भी. उन्होंने कहा कि जीएसटी पर गुजरात में हम चुनाव जीत चुके हैं. और अब पांच साल के कामकाज पर चुनाव हो रहा है.
राहुल गांधी- ये जो जवाब था, प्रधानमंत्री की नोटशीट पर था, वो जो कागज था उनके हाथ में, उसमें ये जवाब लिखा हुआ था या नहीं?
एंकर - राहुल जी, नोटशीट में तो उनकी सिर्फ कविता लिखी थी.
राहुल गांधी - हां-हां,मगर जो उनकी नोटशीट थी, उसमें तो सवाल भी लिखे थे, वो तो पूरे इंटरनेट पर है, मेरा कहना है कि ये जो उनका जवाब है वो नोटशीट पर था या उनकी मेमोरी से आया?
एंकर - जो पूरा इंटरव्यू हुआ था. उसमें पीएम ने किसी भी नोटपैड को रेफरेंस के तौर पर नहीं लिया।
राहुल गांधी - आप ऐसा कीजिए, इसको आप एडिट करना चाहते हैं तो एडिट कर लीजिए. अगर आपको अच्छा नहीं लगा जो मैंने बोला, अगर आपको डर लग रहा है तो मैं परमिशन दे रहा हूं आपको
दूसरा उदाहरण
एंकर - पीएम मोदी का कहना है कि सर्वेसर्वा से पूछो कि क्या उनके परिवार ने देश पर इमरजेंसी नहीं लगाई थी.
राहुल गांधी - इंदिरा जी ने इमरजेंसी लगाई थी और माना था कि इमरजेंसी गलत थी. और मैं भी यहां कहता हूं कि इमरजेंसी गलती थी.
एंकर - मोदी जी कहते हैं कि सर्वेसर्वा से ये पूछो कि घोषणापत्र क्या होता है, क्योंकि वो कहते हैं जो घोषणा होती है वो घोषणापत्र में होता है, उनका ये आरोप अपने आप में सही है क्योंकि उनका ये कहना है कि आप जनता को मूर्ख बनाते हैं. आप दिव्य सपने दिखाते हैं, झांसा देते हैं.
राहुल घोषणापत्र दिखाते हुए कहते हैं - हमारे मेनिफेस्टो पर देखिए ज्यादातर हिस्से में जनता है और मेरी छोटू सी फोटो है, कांग्रेस का सिंबल भी छोटा सा है. नरेंद्र मोदी जी के मेनिफेस्टो पर नरेंद्र मोदी का चेहरा बड़ा है. यही फिलासफी है. जो भी इसमें आया है, जनता से पूछकर आया है. चाहे वो किसानों की बात हो, मजदूरों की बात हो. 'न्याय' योजना में हम गरीबों को 72 हजार सालाना देंगे. मोदी जी पूछिए 15 लाख का क्या हुआ, दो करोड़ सालाना रोजगार क्या हुआ?
एंकर - राफेल डील रद्द करेंगे क्या?
राहुल गांधी - रद्द करने से पहले डिफेंस के लोगों से पूछना पड़ेगा, उनसे पूछना पड़ेगा जो इन मामलों को समझते हैं. मैं यहां बैठकर नहीं बोलना चाहता.
एक दूसरे इंटरव्यू में जब राहुल गांधी से पूछा गया कि क्या वो इंटरव्यू देने से डरते हैं तो वो कहते हैं कि डर नहीं लगता है, ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, गलतियां ही होंगी ना.
कुल मिलाकर राहुल गांधी इंटरव्यूज में सवालों के सधे हुए जवाब दे रहे हैं. राहुल गांधी के शब्दों से लेकर बॉडी लैंग्वेज में अब कॉन्फिडेंस दिखता है. एक तरफ वो कह रहे हैं कि राफेल डील को कैंसल करने का फैसला हम डिफेंस के लोगों से पूछ कर करेंगे, क्योंकि वो एक्सपर्ट हैं. दूसरी तरफ पीएम मोदी अपने इंटरव्यू में बता रहे हैं कि उन्होंने एक्सपर्ट्स को सलाह दी कि बादलों में एयरस्ट्राइक करनी चाहिए, क्योंकि पाकिस्तान के रडार हमें पकड़ नहीं पाएंगे. वो कह रहे हैं कि 1987 में ई-मेल और डिजिटल कैमरे का इस्तेमाल किया था. इंटरव्यू में उनके हाथ में पड़े कागज पर एंकर का सवाल भी प्री-प्रिंटेड दिखे.
पीएम मोदी की इन बातों पर जोक्स बन रहे हैं. सोशल मीडिया पर लोग खूब मजे ले रहे हैं. समझा रहे हैं कि बादल रडार को नहीं रोकते. ई-मेल आम इंडियन को 1995 मेें मिला. डिजिटल कैमरा 1990 में बिकना शुरू हुआ. ऐसा लगता है कि दुनिया वाकई गोल है. 2014 में एक इंटरव्यू के लिए राहुल गांधी का मजाक उड़ा था. अब उल्टा हो रहा है.
एक तरफ टफ सवालों और काउंटर क्वेस्चन्स के टफ जवाब हैं तो दूसरी तरफ गंभीर सवालों पर काउंटर गायब है, फिर भी गलतियां हो रही हैं. राहुल क्या करेंगे ये पूछना जरूरी है, लेकिन पीएम मोदी ने क्या किया, ये भी पूरी ताकत से पूछना जरूरी है. बेरोजगारी, किसानों की स्थिति, कारोबार, अर्थव्यवस्था की हालत पर जवाब न मिले तो फिर-फिर पूछना जरूरी है. और नहीं तो दोनों से 'नॉन पॉलिटिकल' इंटरव्यू क्यों नहीं?
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)