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इलेक्‍टोरल बॉन्‍ड फिर सवालों में,2 महीने में ही 1716 करोड़ का चंदा

एसबीआई ने जनवरी 2019 से मार्च 2019 के बीच, 1,716 करोड़ रुपये  के भारी-भरकम इलेक्टोरल बॉन्ड बेच दिये

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स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने जनवरी 2019 से मार्च 2019 के बीच, यानी सिर्फ दो महीने में 1,716 करोड़ रुपये के भारी-भरकम इलेक्टोरल बॉन्ड बेच दिये. लगता है कि इस बार ज्यादातर राजनीतिक धन का जुगाड़ इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये ही होगा, जिसे निर्वाचन आयोग (EC) ‘बदतर कदम’ करार दे चुका है.

25 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे में निर्वाचन आयोग ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड के कारण राजनीतिक फंडिंग की पारदर्शिता को भारी आघात पहुंचेगा.

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विहार दुर्वे की एक RTI के जवाब में एसबीआई ने बताया कि साल 2019 में सिर्फ दो महीने में ही 1716,05,14,000 रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड देश के 14 शहरों में बेचे गए. इस आरटीआई की एक कॉपी द क्विंट के पास उपलब्ध है.

इसकी तुलना में पिछले वर्ष, यानी 2018 में महज 1000 करोड़ (1056,73,42,000 करोड़) रुपये के बॉन्ड बेचे गए थे (मार्च, अप्रैल, मई, जुलाई, अक्टूबर और नवम्बर).

चुनावी साल में भारी-भरकम राजनीतिक चंदा होना लाजिमी है, लेकिन परेशानी ये है कि ऐसे चंदा का एक बड़ा हिस्सा ‘अनाम और गैर-पारदर्शी’ इलेक्टोरल बॉन्ड के रूप में है.

पिछले साल 1.056 करोड़ रुपये की तुलना में इस वर्ष सिर्फ दो महीने में 1,716 करोड़ रुपये से अधिक के इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री स्पष्ट संकेत देती है कि इस बार चुनाव में पूरी तरह अज्ञात स्रोतों से प्राप्त भारी-भरकम धन का इस्तेमाल होगा. पूरी तरह अज्ञान स्रोतों से प्राप्त भारी-भरकम धन का चुनाव में इस्तेमाल देश में लोकतंत्र के लिए घातक है, लिहाजा इसपर फौरन रोक लगनी चाहिए. 
जगदीप चोकर, सदस्य, एसोसियेशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स 
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दरअसल, मोदी सरकार का वो संदेश भी गलतफहमी पैदा करता है, जिसमें इलेक्टोरल बॉन्ड के दानकर्ताओं का नाम गोपनीय रखने का दावा किया गया था. द क्विंट में कई आलेखों में ये बात स्पष्ट की गई है कि इलेक्टोरल बॉन्ड में अनोखे अल्फान्यूमेरिक छिपे हुए अंक होते हैं, जिन्हें सामान्य आंखों से नहीं देखा जा सकता, लेकिन वो अल्ट्रा वायलेट रोशनी में देखे जा सकते हैं. ये अनोखे अंक मोदी सरकार को गोपनीय तरीके से जानकारी देने में मदद करेंगे, कि किस दानकर्ता ने बॉन्ड के द्वारा किसे दान दिया है.

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2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड से आमदनी का 95% बीजेपी के खाते में

निर्वाचन आयोग को पेश वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिए बीजेपी के सालाना ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक, पार्टी को मार्च 2018 में बिके इलेक्टोरल बॉन्ड से हुई आमदनी का 95% हिस्सा प्राप्त हुआ. आरटीआई से साफ हुआ है कि मार्च 2018 में 222 करोड़ रुपयों के बॉन्ड की बिक्री हुई थी, जिनमें बीजेपी को 210 करोड़ रुपये मिले थे.

इलेक्टोरल बॉन्ड के आंकड़े ये भी बताते हैं कि 10,000 रुपये जैसे कम मूल्यवर्ग के बॉन्ड की मांग नहीं है. हालांकि इसके खरीदारों के बारे में विस्तृत जानकारी नहीं है, क्योंकि एसबीआई ने ये जानकारी उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया. फिर भी काफी मुमकिन है कि बॉन्ड के अधिकतर खरीदार कॉरपोरेट घराने या काफी अमीर लोग होंगे.

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इलेक्टोरल बॉन्ड खतरनाक क्यों हैं?

लोकतंत्र को खतरा

चुनाव आयोग ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को चुनौती दी गई है,

“राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये हर प्रकार से प्राप्त धन को रिपोर्टिंग के दायरे से बाहर रखा गया है. ये जानकारी प्राप्त करना मुश्किल होगा कि राजनीतिक दलों को सरकारी कम्पनियों से धन मिला या विदेशी स्रोतों से?” 

मोदी सरकार ने दावा किया था कि राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना शुरू की गई. लेकिन पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त ओपी रावत का बयान सरकारी दावे को पूरी तरह खारिज करता है:

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“इससे राजनीतिक फंडिंग में अपारदर्शिता बढ़ी है. इलेक्टोरल बॉन्ड लोकतंत्र के लिए एक बड़ा आघात हैं.” 
ओपी रावत, पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त  

किसे सबसे ज्यादा फायदा है?

पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एसवाई कुरैशी ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड से सत्ताधारी पार्टी को सरकार और कॉरपोरेट सेक्टर के बीच ‘गोपनीय’ रिश्ते छिपाने में मदद मिलती है.

“वास्तविकता ये है कि वो (गोपनीय रिश्ते), सरकार से इनाम में मिले (कॉरपोरेट जगत को) ठेकों, लाइसेंस, कर्ज आदि की जानकारी जनता के सामने नहीं लाना चाहते, इसके बजाय वो इलेक्टोरल फंडिंग को अधिक पारदर्शी बनाना चाहते हैं. ये प्रक्रिया पहले से अधिक अपारदर्शी है, जिसमें जनता से जानकारियां छिपाई जाती हैं.” 
एसवाई कुरैशी, पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त  
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नामभर की कम्पनियों के जरिए मनी फ्लो को प्रोत्साहन

निर्वाचन आयोग ने इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने की योजना की तीखी आलोचना की और इसे ‘बदतर कदम’ करार दिया, जिसके द्वारा सिर्फ नाम की कम्पनियों के माध्यम से राजनीतिक फंडिंग के लिए काले धन का इस्तेमाल आसान है.

“इलेक्टोरल बॉन्ड योजना, वित्तीय (दान) कार्यक्रम में कमजोरियां पैदा करेगी, जिससे हेरफेर होगा और लोकतंत्र कमजोर होगा. (ये ऐसे अंजाम दिया जा सकता है) अज्ञात स्रोतों से प्राप्त संशयपूर्ण धन के बारे में केवाईसी के माध्यम से व्यक्तिगत या कॉर्पोरपोरेट घरानों की पहचान की जाती है, जो इसे राजनीतिक प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए इस्तेमाल करते हैं. ये खतरा लगातार है. यहां तक कि विदेशी स्रोतों से प्राप्त धन का भी इस्तेमाल हो सकता है.” 
ओपी रावत, पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त 

इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की याचिका पर अब सुप्रीम कोर्ट को फैसला देना है. इस मामले की सुनवाई 2 अप्रैल 2019 को है.

यह भी पढ़ें: इलेक्टोरल बॉन्ड पर क्‍विंट का खुलासा: ये रही फोरेंसिक लैब रिपोर्ट

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