देश में जो लोग नोटबंदी, जीएसटी, ध्रुवीकरण और राष्ट्रवाद के शोर के खिलाफ एक नए नैरेटिव के साथ खड़े होने की उम्मीद पाले हुए थे उन्हें झटका लगा है. लेकिन इससे भी बड़ा सदमा कांग्रेस को पहुंचा है जो इस नैरेटिव को थामे हुई थी. 2014 के चुनाव नतीजों से लेकर 2019 के इलेक्शन रिजल्ट तक बहुत कुछ बदल जाने की उम्मीद करने वाली कांग्रेस के खराब परफॉरमेंस ने उसके लिए बहुत बड़े सवाल पैदा कर दिए हैं.
आखिर क्या वजह है कि कांग्रेस लगातार हाशिये पर भी ऐसी जगह पर खिसकती जा रही है जहां से उसकी वापसी मुश्किल लग रही है. जीत का ख्वाब देख रही पार्टी के लिए 2019 का चुनाव बुरा सपना क्यों साबित हुआ? आखिर कांग्रेस से क्या गलतियां हुईं कि वह मोदी एंड पार्टी के सामने कोई बड़ी चुनौती नहीं खड़ा कर पाई. आइए देखते हैं कांग्रेस कहां चूक गई.
नोटबंदी, जीएसटी और राफेल का मुद्दा नाकाम
2014 के चुनाव में बुरी तरह हारने के बाद नोटबंदी के तौर पर कांग्रेस को मोदी के खिलाफ एक बड़ा मुद्दा मिला था. फिर इसके बाद जीएसटी की दिक्कतों ने उसे मोदी पर प्रहार करने का मौका दिया. इन दोनों फैसलों से उपजे असंतोष को कांग्रेस वोटों में तब्दील नहीं कर पाई. राफेल पर कांग्रेस काफी हद तक मोदी को घेरने में कामयाब रही. लेकिन लोगों ने 'चौकीदार चोर है' के नारे को भी नकार दिया.
कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व का रुख
राहुल गांधी ने मंदिरों में घूम-घूम कर यह दिखाने की कोशिश की वह मुस्लिम परस्त पार्टी नहीं है. लेकिन इस चक्कर में उसने अपना नुकसान कर लिया है. देश के मुसलमानों को उन पर भरोसा नहीं हुआ. कांग्रेस मुसलमानों का वोट पाने में नाकाम रही. इस तरह वह दीन-दुनिया दोनों से गई.
कांग्रेस नहीं कर पाई गठबंधन
यूपीए को मजबूत करने के लिए जो गठबंधन कांग्रेस को करना चाहिए उसमें वह नाकाम रही. केरल और तमिलनाडु में कांग्रेस को गठबंधन का फायदा नहीं मिला. लेकिन उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में कांग्रेस कोई गठबंधन नहीं कर पाई. कई जगह उसने स्वाभाविक सहयोगी पार्टियों के खिलाफ उम्मीदवार खड़े किए.
राष्ट्रवाद के नैरेटिव का मुकाबला नहीं कर पाई कांग्रेस
बालाकोट स्ट्राइक से पैदा राष्ट्रवाद के नैरेटिव का कांग्रेस ढंग से मुकाबला नहीं कर पाई. जब आम शख्स मोदी को पाकिस्तान को घर में घुस कर मारने वाले मजबूत पीएम के तौर पर देख रहा था उस वक्त कांग्रेस इस छवि को तोड़ने के लिए कुछ नहीं कर पाई.
ये कांग्रेस की बड़ी रणनीतिक खामियां थीं, जिसने उसे हार की ओर धकेल दिया. अब देखते हैं चुनाव लड़ने में उसने क्या गलतियां की.
- मोदी के प्रीमियम फैक्टर का अंदाजा न लगा पाना
- कांग्रेस का इस चुनाव को बेहद रूटीन ढंग से लड़ना
- चुनाव लड़ने में कांग्रेस ने काफी चलताऊ ढंग की स्ट्रेटजी अपनाई
- कांग्रेस बीजेपी की मजबूती का अंदाजा लगाने में नाकाम रही
- मोदी-मशीनरी से लड़ने के लिए उसे समझना जरूरी, इसमें नाकामी
- बंगाल, यूपी और दिल्ली में कांग्रेस गठबंधन बनाने में नाकाम रही
- कांग्रेस के पास बीजेपी के वोट कटवा मॉडल का कोई जवाब नहीं था
- यूपी की रणनीति से एसपी, बीएसपी और अपना भी नुकसान
- यूपी में बीजेपी के अपर कास्ट वोट काटने की पुरानी स्ट्रेटजी पर लड़ना
- कांग्रेस ज्यादातर जगह साइंटिफिक तरीके से चुनाव लड़ने में नाकाम
- कांग्रेस जमीनी हकीकत और आंकड़ों को समझने में नाकाम रही
कांग्रेस की इस नाकामी के बाद राहुल गांधी के नेतृत्व पर फिर सवाल उठेंगे. पार्टी के अंदर एक नया संघर्ष शुरू होगा और यहां से उसका रास्ता और मुश्किल होगा. कांग्रेस ने पिछले साल में साबित किया कि अभी तक वह अपनी कमजोरियों से आगे निकल कर सत्ता को चुनौती देने की स्किल हासिल नहीं कर पाई है.
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