आखिर क्यों, किस दिमाग से, किस सोच से सेंसर बोर्ड ने हरामखोर पर बैन लगाए रखा था? पूरी फिल्म देखते वक्त आपके दिमाग में यही सवाल घूमता रहेगा
फिल्म की कहानी एक 15 साल लड़की और उसके टीचर के इर्द-गिर्द घूमती है. सेंसर बोर्ड के महान लोगों ने इस थीम को ही नकार दिया था लेकिन हकीकत ये है कि इसी स्टोरी लाइन की वजह से हरामखोर में जान आती है.
बच्चों का शारिरिक शोषण समाज की एक बड़ी बुराई है जिसपर कभी-कभार ही बात होती है. और हकीकत ये है कि पीड़ित के करीबी ही ऐसे कुकर्म के लिए जिम्मेदार होते हैं.
हरामखोर फिल्म का प्लॉट एक गांव में बसा है, कौन सा राज्य या इलाका, ये नहीं बताया गया. किस वक्त की कहानी है इसका भी जिक्र नहीं है लेकिन एक यंग लड़की को वीडियो गेम खेलते देखते हुए ये अंदाजा हो जाता है कि फिल्म का प्लॉट 90 या 2000 के दशक में सेट है.
हम संध्या (श्वेता त्रिपाठी) और दूसरे बच्चों एक छोटे से कमरे में मिलते हैं, जहां उनके ट्यूशन टीचर श्याम (नवाजुद्दीन सिद्दिकी) उनमें सख्ती से अनुशासन ठूंसने की कोशिश करते हैं. सब कुछ नॉर्मल होता है लेकिन सिर्फ तब-तक जब-तक नजरें चुराकर संध्या और उसका टीचर एक दूसरे को निहारने नहीं लगता.
अभी ये लगता ही है कि इन दोनों के बीच कुछ पक रहा है कि तभी दो और लड़के स्क्रीन पर प्रकट हो जाते हैं. कमल और उसका शरारती दोस्त मिंटू. कमल संध्या से एकतरफा प्यार करता है और मिंटू वाहियात आइडिया देकर संध्या का दिल जीतने का प्लान बनाता है.
ये लव ट्राएंगल हरामखोर टाइटल के साथ पूरा न्याय करता है. डायरेक्टर श्लोक शर्मा को मैं पूरे प्वाइंट्स देती हूं जिन्होंने बेहद खूबसूरती से दर्शकों को आश्चर्यचकित किया है. वो इस फिल्म के राइटर भी है.
फिल्म के ज्यादातर हिस्सों में श्याम और संध्या की कहानी हम कमल और मिंटू के नजरिए से देखते हैं. श्याम इन लड़कों का दुश्मन है और इन्हें उसे हराना है तभी तो संध्या का प्यार मिलेगा. श्याम को ज्यादा खतरनाक नहीं समझते लेकिन ऐसा है नहीं.
यही फिल्म की अपील है. और फिर कुछ डार्क मोमेंट हैं जब संध्या और श्याम के सीन्स हैं. ये एक चेतावनी है कि संध्या जैसे बच्चे अक्सर ऐसी स्थिती में फंस जाते हैं जिसके आगे बड़ा खतरा है.
नवाजुद्दीन की एक्टिंग के क्या कहने. शानदार अभिनय और पर्दे पर बिल्कुल हरामखोर.
श्वेता त्रिपाठी ने हमारा दिल मसान में अपनी सिंपल एक्टिंग से जीता और अब 14 साल की बच्ची बन वो कमाल कर रही है. यंग लड़के मोहम्मद समद और इरफान खान का अभिनय भी दमदार है. फिल्म की कास्ट ही फिल्म की जान है.
मैं फिल्म को 5 में से 3 क्विंट देती हूं
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