(ये आर्टिकल फिल्म रिव्यू नहीं है बल्कि सचिन तेंदुलकर के एक बहुत बड़े फैन का बायोपिक देखने के बाद पहला रिएक्शन है)
कोई भी व्यक्ति जो 80 के दशक में पैदा हुआ वो भगवान को 5.41 फुट के एक दायें हाथ के बैट्समेन के तौर पर जानता है जो किसी भी बॉलिंग अटैक की धज्जियां उड़ा दे. सचिन एक ऐसे कमाल के खिलाड़ी थे, जिन्होंने क्रिकेट की दुनिया में भारत को बेस्ट टीमों में जगह दिलाई और भारत को मिला अपना पहला ‘स्पोर्टस का हीरो’
हमने उनसे स्ट्रेट ड्राइव चाहा, लॉन्ग ऑफ के ऊपर छक्के की मांग की या फिर एक बड़ी जीत चाही, सचिन ने कभी भी निराश नहीं किया और इन सब चीजों के ऊपर जो सबसे बढ़िया बात थी वो थी उनकी विनम्रता.
वैसे तो कई लम्हों को याद किया जा सकता है, लेकिन जब उन्होंने 1999 वर्ल्ड कप के दौरान अपने पिता के निधन के अगले ही दिन सेंचुरी ठोकी तो पूरे देश ने उनसे प्रेरणा ली.
100 रन बनाकर सचिन का आसमान में देखना हमारे देश में पारिवारिक संबंधों की मजबूती को दर्शाता है. ऑनस्क्रीन तो सचिन की कामयाबी बहुत बड़ी दिखती है लेकिन उसके पीछे जो मेहनत उन्होंने की वो सचिन को हर मां का बेटा, हर आदमी का दोस्त और एक जनरेशन का आइडल बनाता है.
सचिन अ बिलियन ड्रीम्स- एक मौका है उन सभी लोगों के लिए जो उन्हें मैदान पर खेलता नहीं देख पाए. ये मौका है उस माहौल को थोड़ा ही सही लेकिन करीब से देखने का जब सचिन बल्लेबाजी करने आते थे, सेंचुरी बनाते थे या जब भी उन्होंने टीम को मैच जिताया और इन सबसे ऊपर हर बार वो देश के बेटे थे जिसे हरकोई प्यार करता था.
फिल्म में सचिन का खुद कहानी बताना, उनके घर के पर्सनल वीडियो-फोटो और उनके शुरुआती सालों के रिएक्शन दर्शकों को उनके क्रिकेट जीवन के अलावा भी काफी कुछ बताते हैं
फिल्म में सचिन और टीम इंडिया की 1990 से लेकर 2011 तक की यात्रा को दिखाया गया है. सचिन का फैन होने के नाते मेरे लिए ये फिल्म एक तरह से सचिन के दौर को दोबारा जीने जैसा है.
सचिन की वर्ल्ड कप जीत, वानखेड़े में उनके आखिरी शब्द आंसू ला देते हैं.
फिल्म में सचिन के एक डेब्यूटेन क्रिकेटर से लेकर एक महान खिलाड़ी बनने तक के सफर को दिखाया गया है. कप्तान बनना, फिर कप्तानी छोड़ना और उसके बाद फिर से कप्तान बनाए जाना. मैच फिक्सिंग से लेकर वो चोट जिसने लगभग सचिन का करियर खत्म कर दिया था और फिर विश्व क्रिकेट में वर्ल्ड कप जीतने के लिए शानदार वापसी. ये फिल्म दर्शकों को एक भावुक रोलर-कोस्टर राइड पर ले जाती है. सचिन के हरएक फैन को ये मूवी जरूर देखनी चाहिए. साथ ही वॉयसओवर, पुराने इंटरव्यू और दिग्गजों की पुरानी कमेंट्री कई यादों को ताजा कर देती है.
फिल्म के फर्स्ट हाफ में सचिन को सचिन बनते हुए दिखाया गया है. खेल में पैसे की एंट्री और उनकी खुद की मुश्किलों पर फोकस किया गया है. सेकेंड हाफ में भारतीय टीम और फिक्सिंग कांड के बाद सचिन की वापसी पर जोर दिया गया है.
फिल्म में केवल सचिन ही नहीं बल्कि उनकी टीम के साथियों जैसे राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण और युवराज सिंह की उपलब्धियों पर भी काफी बातें की गई हैं.
ड्रैसिंग रूम के अंदर की बातें सबसे ज्यादा मजा देंगी क्योंकि वो आपने पहले कभी नहीं सुनी होंगी. एक फैन के तौर पर आपको खिलाड़ियों के हंसी-मजाक, टीम मीटिंग , खुशी-दुख सब कुछ देखने को मिलेगा. खिलाड़ियों के दूसरे पहलू से आप रूबरू होंगे.
एआर रहमान का म्यूजिक फिल्म में जान डालता है साथ ही सर डॉन ब्रैडमेन, सर विवियन रिचर्ड्स और फिल्म, राजनीति और बिजनेस जगत के कई लोगों की पुरानी फुटेज आपको बताएगी कि सचिन के रिश्ते हर किसी के साथ कितने अच्छे थे.
कई ऐसे मौके भी हैं जब फिल्म थोड़ी ढीली पड़ती है. जैसे मशहूर बॉल-टेंपरिंग कांड का फिल्म में कोई जिक्र ही नहीं है तो वहीं मैच फिक्सिंग कांड को भी बहुत जल्दबाजी में सिर्फ सतही तौर पर दिखाया गया है.
लेकिन जब फिल्म ढीली पड़ती है तो सचिन के पुराने फुटेज इसे बचा लेते हैं हालांकि फुटेज के प्रजेंटेशन पर और काम किया जा सकता था. जिस तरह से दूसरे खिलाड़ियों के इंटरव्यू शूट किए गए वो काफी टेलीविजन टाइप हैं और सिनेमैटोग्राफी की कमी लगती है.
लेकिन फिर भी सचिन के फैंस के लिए ये फिल्म शानदार है. मुझे लगता है कि इस वीकेंड उन्हें अपने घरों के पास के सिनेमाघरों में सचिन को देखने जरूर जाना चाहिए.
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