हाल ही में आई बॉलीवुड फिल्म 'केदारनाथ' रिलीज के दिन से ही सुर्खियों में है. लेकिन ये सुर्खियां फिल्म की अच्छी कहानी को लेकर नहीं, बल्कि उत्तराखंड सरकार के बैन को लेकर शुरू हुईं. उत्तराखंड की सरकार ने उत्तराखंड के 'केदारनाथ' पर बनी फिल्म को ही बैन कर दिया. इसके पीछे शांति और कानून-व्यवस्था का हवाला दिया गया.
ऐसा पहली बार किसी फिल्म के साथ नहीं हुआ. इससे पहले भी कई फिल्मों पर राज्य सरकारों ने अपनी मर्जी थोपी है. कोर्ट के आदेश और फटकार के बावजूद सरकारों ने फिल्मों पर रोक लगाई.
क्या है 'केदारनाथ' का विवाद
फिल्म 'केदारनाथ' की कहानी एक मुस्लिम युवक और एक पंडित लड़की पर आधारित है. दोनों एक-दूसरे से प्यार कर बैठते हैं और फिल्म की कहानी आगे बढ़ती है. फिल्म में 2013 की भंयकर आपदा को भी दिखाया गया है. लेकिन कुछ लोगों ने इसे 'लव जिहाद' का एंगल देकर विरोध शुरू कर दिया. कुछ लोगों को अब भी ये बात नहीं पच पाती है कि कैसे कोई हिंदू और मुस्लिम प्यार कर सकते हैं. इसी को देखते हुए सरकार से इस फिल्म पर बैन की मांग की गई.
सरकार ने बनाई कमेटी
उत्तराखंड हाईकोर्ट में दाखिल याचिका खारिज होने के बाद अब बारी थी सरकार की. उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने इसके लिए एक कमेटी गठित की, जिसका नेतृत्व पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज कर रहे थे.
बता दें कि महाराज को उनके अनुयायी ठीक उसी तरह पूजते हैं, जिस तरह यूपी में योगी आदित्यनाथ को. अब फिल्म में हिंदू-मुस्लिम एंगल वो कैसे बर्दाश्त कर सकते थे, इसीलिए उन्होंने फिल्म को उत्तराखंड में बैन करने का फरमान सुना दिया.
फरमान में कहा गया कि उत्तराखंड के कई संगठन और लोगों को इस फिल्म की स्क्रिप्ट से ऐतराज है. इससे शांति और कानून-व्यवस्था भंग हो सकती है, इसीलिए इसे उत्तराखंड में बैन किया जाता है.
बैन में किसका घाटा, किसका फायदा
फिल्म पर किसी भी राज्य में बैन लग जाए, तो फिल्म प्रोड्यूसर को सबसे ज्यादा नुकसान झेलना पड़ता है. करोड़ों की लागत से बनाई फिल्म पर बैन लगना उनके लिए एक बड़ा झटका साबित होता है. सेंसर बोर्ड और कोर्ट से क्लीनचिट मिलने के बाद भी उन्हें राज्य सरकारों के सामने गिड़गिड़ाना पड़ता है.
अब बात करते हैं फायदे की. फिल्म को बैन करने के पीछे सरकारों को चर्चा में आने का एक रास्ता मिल जाता है. सरकारें लोगों को यह जताने की कोशिश करती हैं कि वे लोगों की भावनाओं का सम्मान करती हैं. इससे वो अपने वोटबैंक और राजनीतिक हितों को साधने की कोशिश करती हैं.
सुप्रीम कोर्ट बता चुका है 'अधिकारों का हनन'
फिल्म 'केदारनाथ' को बैन करने के लिए उत्तराखंड हाईकोर्ट में भी याचिका दाखिल हुई थी, जिसे खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा, ''हम कोई सेंसर बोर्ड नहीं हैं, अगर आपको फिल्म पसंद नहीं है, तो मत देखिए. हम एक लोकतंत्र हैं और हर कोई अपने अधिकारों का इस्तेमाल करने के लिए आजाद है.''
बता दें कि ठीक ऐसी ही टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म 'पद्मावत' की रिलीज के दौरान भी की थी. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की बेंच ने कहा था कि राज्यों में कानून-व्यवस्था बनाना राज्यों की जिम्मेदारी है, यह राज्यों का संवैधानिक दायित्व है. ये बैन संविधान के आर्टिकल 21 के तहत लोगों को जीवन जीने और स्वतंत्रता के अधिकार का हनन है.
प्रकाश झा की फिल्म ‘आरक्षण’ पर भी सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को जमकर फटकार लगाई थी और कहा था कि सेंसर बोर्ड से पास हुई फिल्म को राज्य सरकार बैन नहीं कर सकती है. मायावती सरकार ने इस फिल्म के खिलाफ याचिका दायर की थी.
इन फिल्मों पर मचा बवाल
पिछले कुछ सालों से फिल्म बैन की यह 'रीत' चली आ रही है. फिल्म बैन पर एक सरकार को देखकर दूसरे स्टेट की सरकार रंग बदलती दिखती है. फिल्म 'पद्मावत' को चार राज्यों ने बैन कर दिया था. हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात सरकार ने इस फिल्म पर बैन लगा दिया था.
इसके अलावा फिल्म 'आरक्षण' पर उत्तर प्रदेश की सरकार को ऐतराज था. मायावती सरकार ने इसके खिलाफ याचिका दायर की थी. 'सत्यमेव जयते', 'परमाणु' जैसी फिल्मों पर भी सवाल खड़े हुए थे. अब कंगना रनौत की आने वाली फिल्म 'मणिकर्णिका' जैसी फिल्मों पर धार्मिक भावनाओं को आहत करने का आरोप लग रहा है.
लोगों ने 'लव जिहाद' को नकारा
फिल्म 'केदारनाथ' को लेकर सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने 'लव जिहाद' को नकार दिया. लोगों का कहना था कि फिल्म में किसी भी तरह का विवादित कंटेंट नहीं है. वहीं कुछ लोगों ने उत्तराखंड में बैन पर गुस्सा भी जाहिर किया. फिल्म के डायरेक्टर अभिषेक कपूर ने भी ट्वीट कर उत्तराखंड सरकार से फिल्म से बैन हटाने की गुजारिश की.
उत्तराखंड के ज्यादातर युवाओं ने फिल्म पर बैन को गलत ठहराया है. उन्होंने प्रशासन की तरफ से जारी आदेश को बिल्कुल ही झूठा और निराधर बताया है. वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने फिल्म पर बैन को सही ठहराया है.
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