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आमिर खान को खुद पर नहीं था यकीन, वो बन पाएंगे एक्टर

आमिर एक सुलझे हुए, आत्म-विश्लेषक व्यक्ति हैं

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(आज आमिर खान का जन्मदिन है. अगर तीन खानों की तिकड़ी में कोई खान है, जो अपने करियर विकल्पों और प्रोफेशनल आचरण पर स्थिर रहा है तो वह हैं आमिर खान. उनके जन्मदिन पर इस स्टोरी को क्विंट के आर्काइव से दोबारा शेयर किया जा रहा है.)

असल में, जिब्राल्टर-फर्म होते हुए उन्होंने खूब जोखिम उठाए हैं, अपनी शख्सियत कायम रखी है, अच्छी कहानी वाली फिल्में बनाने वाली फिल्म प्रोडक्शन कंपनी स्थापित करने की दिशा में काम किया है. एक अभिनेता के रूप में निखरकर आए हैं और अपने सिद्धांतों पर कायम रहे हैं- चाहे अवार्ड शो में ना जाना हो, अपनी निजी जिंदगी पर बात करने से बचना हो और इस सबसे ऊपर असहिष्णुता पर खुल के बोलना हो.

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यह एक संयोग की बात है कि तीनों खानों का जन्म 1965 में हुआ था. 2 नवंबर को शाहरुख और 27 दिसंबर को सलमान का जन्म हुआ था. इन तीनों में से शाहरुख एक स्मार्ट और आत्म मुखर आदमी हैं, सलमान इनके ठीक विपरीत हैं और आमिर एक सुलझे हुए, आत्म-विश्लेषक व्यक्ति हैं.

इसलिए यहां पेश है आमिर खान के स्टारडम के शुरुआती दौर के दौरान उनके चाचा नासिर हुसैन के बांद्रा निवास पर हुए उनके इंटरव्यू के कुछ अंश:

जब मैं अभिनय की बात करता हूं तो आपके दिमाग में क्या आता है?

किरदार को निभाते हुए, स्क्रिप्ट में दी हुई किसी स्थिति पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए, किसी शॉट के दौरान आने वाली भावनाओं को व्यक्त करते हुए मैं डायरेक्टर के निर्देशों के मुताबिक एक्टिंग करता हूं, लेकिन हमें बात करने की जरूरत होती है, उनके जवाबों में स्पष्टता होनी चाहिए. सबसे पहली बात डॉयरेक्टर के साथ मिलकर चलना होता है ताकि अंत में सब कुछ अच्छा हो.

अगला कदम होता है किरदार में ढलना, जैसे उसके कपड़े, हेयर-स्टाइल, चेहरे पर चंचलता वगैरह. यह सब मैं खुद नहीं कर सकता. पॉपुलर सिनेमा में, बहुत बदलाव की गुंजाइश नहीं होती है. ऑफबीट सिनेमा में, मुझे खुद को काफी बदलना होगा.

तीसरा कदम यह है कि किरदार किस भाषा का इस्तेमाल करता है, उसकी बॉडी लैंग्वेज क्या है उसकी वॉइस पिच क्या है, वगैरह को समझना.

क्या आप इस ‘वगैरह’ को विस्तार से बता सकते हैं?

जैसे कि गम चबाना, सिगरेट पीना, पान खाना, बिस्तर पर सोना, खाट या फर्श पर सोना? फिर भी, कैमरे के सामने एक्टिंग करना आपकी तैयारी से बिल्कुल अलग भी हो सकता है. हो सकता है मैं वह न कर पाऊं जो करने को मुझसे कहा गया हो, खासकर एक टाइट क्लोज-अप में.

अपने रोल को बखूबी निभाने के लिए, मैं अर्ध चेतना की स्थिति को हासिल करने की कोशिश करता हूं, खुद को उस रोल में पूरी तरह डुबो देता हूं. मैं ‘राजा हिंदुस्तानी’, ‘दिल है कि मानता नहीं’ के रघु जेटली और जो ‘जीता वही सिकंदर के’ संजयलाल शर्मा की तरह बेचैन या उत्तेजित हो सकता हूं.

मुझे बस शारीरिक रूप से फिट होना चाहिए, लाइनें पता होनी चाहिए और कभी भी कोई गड़बड़ नहीं करनी चाहिए. सहजता के रास्ते में बहुत सारे रिहर्सल्स आते हैं. अक्सर मेरा पहला टेक ही सबसे अच्छा होता है, लेकिन कई बार 20 टेक तक हो जाते हैं.

‘अकेले हम अकेले तुम’ में, एक सिंगल पैरेंट की असुरक्षाओं के बारे में मुझे चार मिनट तक अपने आप से ही बात करनी थी. मंसूर (खान) नहीं चाहते थे कि मैं रिहर्सल करूं. वह सही थे, मुझे किरदार के दर्द को महसूस करना था, कभी कम तो कभी ज्यादा भावुक होना था. शॉट के बीच में ही मेरे आंसू बहने शुरू हो गए, ग्लिसरीन का इस्तेमाल बेकार होता है और घटिया एक्टिंग की पहचान होता है.

इसके उलट, ‘अंदाज अपना अपना’ में बहुत सारे रिहर्सल्स करने की जरूरत पड़ी, डायलॉग बिल्कुल सही समय पर एक्सचेंज होने थे. सीधे-सीधे कहा जाए तो रिहर्सल्स व्यक्तिपरक हैं, हर अभिनेता के लिए अलग होते हैं और हर सीन के लिए अलग होते हैं.

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आपको अपनी अभिनय की प्रवृत्ति के बारे में कब पता चला? क्या ‘यादों की बारात’ और ‘मदहोश’ में बतौर एक बाल कलाकार काम करने के बाद?

बिल्कुल नहीं, एक बच्चे की रूप में अभिनय करने में मुझे जरा भी मजा नहीं आया. मैं बहुत कठोर और असहज था. मुझे अपने अभिनेता बनने का एहसास तब हुआ जब मैंने बंबई स्कॉटिश (स्कूल) में अपने सहपाठी आदित्य भट्टाचार्य द्वारा निर्देशित 40 मिनट की फिल्म रशेस ऑफ पैरानोया देखी. जब उसे कोई नहीं मिला तो उसने मुझे कास्ट किया, उस समय मेरी उम्र वही कोई 14 या 15 साल थी, उसमें किरदार को एक किशोर की जिंदगी जीनी थी, जिसमें उसके माता-पिता में लड़ाई होती है, उसके पिता उसकी मां को मारते हैं, लड़के की प्रेमिका उसको छोड़कर चली जाती है. मेरे प्रदर्शन ने मुझे हैरान कर दिया, क्योंकि मैं काफी शर्मीला और इंट्रोवर्ट था.

उस शॉर्ट फिल्म के बाद मैंने खुद को ओके कहा, इसलिए एक्टिंग और शायद डायरेक्शन भी मेरे लिए हैं. आप मानो या न मानो, लेकिन इससे पहले मैं एक टेस्ट क्रिकेटर बनना चाहता था, जबकि मेरे माता-पिता चाहते थे कि मैं मैनेजमेंट या इंजीनियरिंग के क्षेत्र में जाऊं. फिर नासिर साब (चाचा नासिर हुसैन) को 6 महीने असिस्ट करने के बाद, ‘कयामत से कयामत तक’ आई. मैं बहुत डरा हुआ था, मुझे यकीन नहीं था कि मैं एक एक्टर के रूप में कामयाब होऊंगा.

मैं अक्सर अनिश्चित रहता हूं, जैसे सालों बाद ‘रंगीला’ में टपोरी का रोल करने से पहले मुझे बहुत सारे संदेह थे. क्या मैं ऐसा दिखता हूं? मैंने मुन्ना की भूमिका को एक चुनौती समझकर निभाया और उसमें पूरी तरह से समा गया. मेरे दोस्त और मैं अमीर बच्चे नहीं थे. मैंने एक बिंदास आदमी, बाबा डेयरिंग, की छत उधार ली थी जो दुबई में एक ड्राइवर का काम करते थे.

क्या आप एक जिद्दी बच्चे थे?

हां, मैं अब भी जिद्दी हूं. मैं शांत स्वभाव का था, लेकिन जब एशले नाम के एक लड़के ने मेरे भाई फैजल को मारा था तो मैं उसके साथ हाथापाई करने पर उतर आया था. एशले करीब 6 फीट लंबा था. उसने मुझे पीट दिया, मैं खुशकिस्मत था जो सिर्फ होठ से ही खून बहाते हुए वहां से भाग निकला.

क्या आप एक्शन वाले सीनों में सहज हैं?

शायद, मैं रैम्बो या टर्मिनेटर नहीं हो सकता, लेकिन अगर मैं एक कमांडो या पुलिस वाले का किरदार निभाता हूं तो इसे बखूबी निभा सकता हूं.

क्या आप स्क्रीन पर ‘बुरे आदमी’ की छवि से बचने की कोशिश करते हैं?

मुझे पता है कि आप (यश चोपड़ा की डर) किसका जिक्र कर रहे हैं? कुल मिलाकर मैं कह सकता हूं कि मैं ऐसी भूमिका निभाना चाहता था, लेकिन काम कायदे का नहीं हुआ - मुझे जॉइंट नैरेटिव नहीं बताया गया.

मैं एक नेगेटिव किरदार नहीं करना चाहूंगा - जैसे कि, एक नासमझ गुंडे या एक लल्लू का - विशेष रूप से लोकप्रिय सिनेमा में, लेकिन अगर यह प्रोजेक्ट ऑफबीट होता है, तो मुझे कोई पछतावा नहीं होगा क्योंकि दर्शक मुझे एक अलग नजरिए से देख रहे होंगे.

आपने केतन मेहता की फिल्म ‘होली’ और आदित्य भट्टाचार्य की ‘राख’ में काम किया है, तो क्या इनके साथ अब और फिल्में नहीं करेंगे. आप किस ऑफबीट डायरेक्ट के साथ काम करना चाहेंगे?

ऑफबीट सिनेमा के लिए मेरे पास कोई प्रस्ताव नहीं आ रहा है. मेरी इच्छा है कि श्याम बेनेगल, गोविंद निहलानी और कुंदन शाह को प्रस्ताव भेजना चाहिए. वे मुख्य रूप से ऑफबीट नहीं हैं, लेकिन वो टिपिकल कमर्शियल डायरेक्टर भी नहीं हैं.

विधु विनोद चोपड़ा के साथ आपकी अक्सर बातचीत होती है?

हां, वह शूटिंग शुरू होने के करीब दो महीने पहले मुझे फिल्म ऑफर करते हैं. जैसे कि वह चाहते थे कि मैं ‘1942: ए लव स्टोरी’ में काम करूं, लेकिन तब उन्होंने देर कर दी और मैं अपनी तारीखों में फेरबदल नहीं कर सका.

अगर आप कभी निर्देशन करते, तो आप किसे कास्ट करते?

निश्चित रूप से किसी स्टार को नहीं, मैं स्टार्स से नहीं निपट पाऊंगा. उनकी कुछ पूर्व धारणाएं होती हैं. वो एक से अधिक फिल्मों में व्यस्त होते हैं और वो केवल मेरी फिल्म पर ध्यान देने में सक्षम नहीं होंगे.

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लेकिन आप भी तो एक स्टार हैं!

हां, तो क्या हुआ?

आपकी पूर्व धारणाएं क्या हैं?

मैं मुख्य रूप से अश्लीलता में लिप्त नहीं हो सकता. फिर भी मैं ऐसा करने वालों पर उंगली नहीं उठाऊंगा. यह उनकी जिंदगी है. वैसे, कुछ एक्टर्स की पूर्व धारणाएं होती हैं, जैसे कि वो स्क्रीन पर पिटना नहीं चाहते. अगर मैं निर्देशन करता तो उनसे निपटने के लिए मुझे अपनी आधी एनर्जी खर्च करनी पड़ती.

एक समय पर आप एक एक्टर के रूप में स्वयं को बंधा हुआ महसूस करते थे. सही कह रहा हूं न?

हां वह ‘हम हैं राही प्यार के’ के ठीक बाद का दौर था. यह नीरस प्रदर्शन के रूप में सामने आया. मैं चारों तरफ से परेशान दिख रहा था. इसी तरह, मुझे अव्वल नंबर के लिए बहुत अधिक खिसियाहट और खीझ महसूस हुई और किसी तरह ‘परंपरा’ में करैक्टर के ग्राफ से बाहर हो गया था. मैंने नसीरुद्दीन शाह के साथ इस तरह की चिंताओं के बारे में बात की. इससे छुटकारा पाने में उन्होंने मेरी मदद की. तब से मुझे लगता है कि मैं बड़ा हो गया हूं. बोले तो मैच्योर हो गया हूं.

क्या आपने बतौर एक एक्टर कभी अपनी ताकतों और कमजोरियों का आकलन किया है?

मैं काफी कड़ी मेहनत करता हूं. कोई रोल करने के लिए मैं अपने आपको बिल्कुल भी रोकता नहीं हूं. मुझे इस बात की काफी चिंता रहती है कि आखिर में हासिल क्या होगा. और शायद मेरे पास बोलने वाली आंखें और एक अच्छी आवाज है. फिर भी डबिंग के दौरान मैं बेहतर प्रदर्शन करने की कोशिश करता हूं.

कमजोरियों की बात करें तो कई दिन ऐसे भी आए जब मैं एक भी शॉट नहीं कर सका. मैं अभिनय नहीं कर सका, इसलिए मैंने एक छोटा सा ब्रेक लिया. इसके अलावा, मैं जरा तेज भी बोलता हूं, इसलिए मैंने धीरे बोलना भी सीख लिया है.

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क्या आपको कभी अपनी हाइट की वजह से शर्मिंदा होना पड़ा?

नहीं. मैं 5’ 7” का हूं. हर कोई दो इंच की हील पहनता है- चाहे जैकी श्रॉफ हों या अनिल कपूर. यहां तक कि मैं भी पहनता हूं, यह कोई बड़ी बात नहीं है.

आप पर आरोप लगता है कि आप स्क्रिप्ट में इंटरफेयर करते हैं इस पर आप क्या कहना चाहेंगे?

बिल्कुल आखिरी समय में डायरेक्टर स्क्रिप्ट में कोई बदलाव कर देता है तो मैं सवाल खड़े कर देता हूं. जब ऐसा होता है, तो मैं अपनी राय रखता हूं. हां ये आरोप तो मुझ पर लगातार लगे हैं, ‘इंटरफेयर’ का जो भी मतलब हो.

जहां तक मेरा ख्याल है मैं निष्पक्ष रहने की कोशिश करता हूं. कभी भी एकतरफा नहीं बोलता हूं. भले ही मेरा करियर अच्छा नहीं चल रहा हो, लेकिन सिर्फ सिक्योर महसूस करने के लिए मैंने 10 बेवकूफी भरी फिल्में साइन नहीं की हैं. और अगर मेरी फिल्में कामयाब होती हैं, तो ज्यादा फीस पर भी मैंने पांच फिल्में साइन नहीं की हैं.

खैर, एक एक्टर के रूप में 1 से 10 के स्केल में आप खुद को कितने नंबर पर रेट करना चाहेंगे?

छह.

और अगर लुक को भी काउंट किया जाए तो रेटिंग क्या होगी?

छह ही होगी. एक अभिनेता होने के लिए गुड लुकिंग होना कोई जरूरी तो नहीं. हां अगर आप गुड लुकिंग हैं, तो इससे आपको मदद जरूर मिलती है.

(लेखक फिल्म समीक्षक, फिल्ममेकर, थिएटर डायरेक्टर और वीकेंड पेंटर हैं)

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