‘जिस आदमी को सक्सेस मिले, उसके दो बाप हो जाते हैं. एक बाप वो जो पैदा करता है, और एक बाप वो जो पैसा कमाना सिखाता है. पैदा करने वाला बाप तो बच्चन साहब हैं ही, और मैं एक बाप बैठा हूं जिसने पैसा कमाना सिखाया.’महमूद
बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन ने एक्टिंग की बारीकियां जिन लोगों से सीखीं, उनमें से महमूद भी एक थे. इकलौते महमूद ही थे, जिन्हें पूरा यकीन था कि 6 फुट लंबा ये हीरो लंबी रेस का घोड़ा साबित होगा.
ये कम लोग जानते हैं कि महमूद और अमिताभ के बीच एक वक्त गहरा रिश्ता हुआ करता था. प्यार और सम्मान से भरे इस रिश्ते का अंत हालांकि सभी की कल्पनाओं से परे हुआ.
अमिताभ के लिए भाईजान थे महमूद
अमिताभ महमूद को 'भाईजान' बुलाते थे. दोनों की मुलाकात 'सात हिंदुस्तानी' की स्क्रीनिंग के दौरान हुई, जब महमूद के छोटे भाई अनवर अली ने उन्हें अमिताभ से मिलाया. 'सात हिंदुस्तानी' में अमिताभ और अनवरी अली ने साथ काम किया था. इसी दौरान दोनों की अच्छी दोस्ती भी हो गई थी और अमिताभ अनवर के साथ महमूद के घर में रहने लगे.
महमूद को ‘सात हिंदुस्तानी’ में अमिताभ भा गए, लेकिन ऑडियंस को फिल्म कुछ खास पसंद नहीं आई और अमिताभ का करियर ग्राफ वहीं रुक गया. एक्टिंग में काम न मिलने से निराश अमिताभ जब बोरिया-बिस्तर बांध कर घर वापस जाने को हुए, तो महमूद और अनवर ने उन्हें जाने से रोक लिया. महमूद को विश्वास था कि अमिताभ का एक दिन फिल्म इंडस्ट्री में नाम होगा, बस उन्हें सही मौका मिल जाए.
अमिताभ के लिए जो बन पाया, महमूद ने वो किया. महमूद ने कुछ बड़े डायरेक्टर और प्रोड्यूसर को अमिताभ को कास्ट करने के लिए कहा. इसी तरह अमिताभ को सुपरहिट फिल्म 'आनंद मिली'. इस फिल्म में भले अमिताभ का साइड रोल हो, लेकिन उनके काम को सभी ने पसंद किया.
महमूद की ही बदौलत अमिताभ को 'बॉम्बे टू गोवा' भी मिली थी. कुछ लोग मानते हैं कि महमूद ने एनसी सिप्पी के साथ पार्टनरशिप में प्रोड्यूस की वो फिल्म अमिताभ के लिए बनाई थी, लेकिन असल में वो फिल्म अरुणा ईराणी के लिए बनी थी, दो महमूद की दोस्त थीं. हनिफ जावेरी की किताब 'महमूद: अ मैन ऑफ मैनी मूड्स' के मुताबिक:
महमूद ने अरुणा ईरानी से वादा किया था कि वो उन्हें हिरोइन बनाएंगे. हालांकि वो ये बात अच्छी तरह से जानते थे कि उस वक्त कोई जानामाना हीरो ईरानी के साथ काम नहीं करता, इसलिए उन्होंने अमिताभ को साइन किया.
अरुणा ईरानी के लिए भले इस फिल्म ने कमाल न किया हो, लेकिन अमिताभ को इससे काफी फायदा हुआ. 'आनंद' में गंभीर किरदार और 'बॉम्बे टू गोवा' के कॉमेडी रोल में उन्हें बहुत पसंद किया गया. 'बॉम्बे टू गोवा' में अमिताभ को देखने के बाद ही लेखक जोड़ी जावेद-अख्तर ने 'जंजीर' में उनकी सिफारिश की.
अमिताभ पर महमूद के यकीन का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रेडियो अनाउंसर अमीन सयानी को दिए इंटरव्यू में जब घोड़े के शौकीन महमूद से उनके सबसे तेज दौड़ने वाले घोड़े का नाम पूछा गया, तो उनका जवाब था अमिताभ बच्चन. इंटरव्यू में महमूद ने कहा था कि जिस दिन उन्होंने दौड़ना शुरू कर दिया, उस दिन वो सभी को पीछे छोड़ देंगे.
अमिताभ को बेटा मानकर महमूद ने जितना उनके लिए किया, उतना उन्हें वापस न मिल सका. सालों बाद एक इंटरव्यू में महमूद ने कहा था, ‘'मेरा बेटा अमित आज 25 साल का हो गया है, मतलब फिल्म लाइन में. ऐसे कई 25 साल उसे और नसीब हों. इससे बढ़कर क्या दुआ दे सकता हूं. अल्लाह उसके सेहत दे. जिस आदमी को सक्सेस मिले, उसके दो बाप हो जाते हैं. एक बाप वो जो पैदा करता है, और एक बाप वो जो पैसा कमाना सिखाता है. पैदा करने वाला बाप तो बच्चन साहब हैं हीं, और मैं एक बाप बैठा हूं जिसने पैसा कमाना सिखाया. अपने साथ में, घर में रख कर पिक्चरें दिलाईं, पिक्चरों में काम दिया. बहुत इज्जत करता है अमित मेरी. बैठा होगा, पीछे से मेरी आवाज सुनेगा, खड़ा हो जाएगा.’'
‘‘लेकिन आखिरी-आखिरी में मुझे इतना फील हुआ, जब मेरा बाइपास हुआ, तो उसके एक-दो हफ्ते पहले उनके फादर, बच्चन साहब गिर गए थे. तो मैं उन्हें देखने के लिए अमित के घर गया. एक कर्टसी है. उसके एक हफ्ते बाद में मेरा बाइपास हुआ, तो अमित अपने वालिद को लेकर वहां आए, ब्रीच कैंडी, जहां मेरा बाइपास हुआ था, लेकिन अमित ने वहां ये दिखा दिया कि असली बाप असली होता है और नकली बाप नकली होता है. उसने आकर हॉस्पिटल में मुझे विश भी नहीं किया, मुझसे मिलने भी नहीं आया, एक गेट वेल सून का कार्ड भी नहीं भेजा, एक छोटा सा फूल भी नहीं भेजा. ये जानते हुए कि भाईजान भी इसी हॉस्पिटल में हैं. मेरे साथ में तो कर लिया, मैं बाप ही हूं उसका, मैंने माफ कर दिया.’’महमूद ने अपना दर्द बयां करते हुए कहा था
किताब 'महमूद: अ मैन ऑफ मैनी मूड्स' के मुताबिक, ऐसी अफवाहें थीं कि दोनों के बीच दूरियां महमूद की बहन जुबैदा और अमिताभ की करीबी के कारण आई थीं.
हालांकि महमूद की मौत के बाद अमिताभ ने एक ब्लॉग लिखकर अपने गुरु को श्रद्धांजलि दी थी.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)