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सुशांत की मौत दुखद है, राजनीति बंद कीजिए प्लीज

सुशांत में हर वो बात थी जो हर बिहारी का सपना होता है

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बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव वैसे तो केंद्रीय जांच एजेंसियों की आलोचना करते नहीं थकते हैं, लेकिन सुशांत सिंह राजपूत की मौत की जांच वो सीबीआई से करवाने के पक्ष में हैं. कह सकते हैं कि मामला कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना वाला है. एलजेपी नेता चिराग पासवान खुद भी अभिनेता बनना चाहते थे और उनका ताल्लुक भी बिहार की एक बड़ी राजनीतिक परिवार से है. उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से फोन पर बात कर मामले के सीबीआई जांच की मांग की. भला वो क्रेडिट लेने में पीछे क्यों रहेंगे.

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और जब बिहार सरकार की तरफ से संकेत आए कि इस मामले पर कानूनी लड़ाई में एक पार्टी वो भी रहेगी तो समझ लीजिए कि नीतीश कुमार की सत्ताधारी जेडी (यू) भी इस मामले में कुछ करते हुए दिखना चाहती है. क्रेडिट लेने में जेडी (यू) पीछे क्यों रहे और वो भी चुनावी सीजन में.

नेताओं ने लपका मौका

दरअसल पूरे मामले को राजनीति के चश्मे से देखने की शुरुआत बीजेपी के सांसद निशिकांत दुबे ने की. 18 जून को एक ट्वीट में उन्होंने कहा कि पूरे मामले को वो संसद में उठाएंगे. इसके ठीक दो दिन बाद बिहार के मौजूदा डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी पटना में सुशांत के घर गए. तब से वो लगातार मामले के सारे पहलुओं के जांच की मांग कर रहे हैं.

तब से मायावती, सुब्रहमण्यम स्वामी और रुपा गांगुली जैसे नेता भी इस मसले पर बयान देते आ रहे हैं. कुछ ने तो ये भी कहा है कि सुशांत की हत्या हुई है और इसको आत्महत्या बताना एक साजिश है. सुशांत के मामले में कौन सी ऐसी बात है जिसकी वजह से नेताओं की इसमें दिलचस्पी लगातार बढ़ती जा रही है? मेरे हिसाब से दो बातें हैं- सुशांत की सख्सियत और बिहार का ताजा चुनावी सीजन. चुनावी सीजन में बाहरी को खरी-खोटी सुनाने का मौका मिले, ये तो बोनस है. इसीलिए कोई भी मौका हाथ से जाने देना नहीं चाहता है.

सुशांत में हर वो बात थी जो हर बिहारी का सपना होता है. मेधा, लगन, सुंदरता और ऐसे क्षेत्र में कामयाबी जहां कम ही बिहारियों को सफलता मिली है. कह सकते हैं कि उनमें बिहारियों का फेमस जुझारुपन खूब भरा था. मुश्किल काम को आसान करने की ठान ली तो उसे हासिल करके ही दिखाया.

यही वजह है कि उनकी मौत के बाद बिहारियों की भावनाएं खुलकर बाहर आने लगी. एक ऐसे सख्स की विदाई हुई थी जो उनका अपना था, उनके सपनों को पूरा कर रहा था और सपनों की नगरी में उनका प्रतिनिधि था.

लोग मानने के लिए तैयार नहीं थे कि सुशांत कुछ भी ऐसा कर सकते हैं जो एक हीरो को शोभा नहीं देता है. चूंकि वो गलत कर नहीं सकते थे, इसीलिए सबको लगा कि उनके साथ गलत हुआ है. बिहारियों के एक बड़े तबके की यही फीलिंग रही है और चुनावी सीजन में हर पार्टी के नेता उसी भावना को उजागर कर रहे हैं.

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मीडिया का एक बड़ा तबका, और हमें पता है कि उस तबके का अपना एजेंडा है और वो पूर्वाग्रह से ग्रसित भी है, इस भावना को हवा देने में लगा है और उस मीडिया को मॉब जस्टिस चाहिए. इसीलिए खलनायक को तलाशा जाता है और उसे हर दिन जलील किया जाता है.

सबकी तरह मेरा भी मानना है कि सुशांत के साथ किसी ने ज्यादती की है तो उसकी जांच जरूर होनी चाहिए और दोषी को सजा जरूर मिलनी चाहिए. दरअसल, एक सभ्य समाज की मांग हमेशा यही होनी चाहिए कि हर मामले की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच हो और मीडिया ट्रायल का उस पर कोई असर ना हो. दुर्भाग्य से मीडिया ट्रायल के दौरान जो छिछालेदार बातें होती है उसमें कुछ लोगों को मजा आता है.

सुशांत की इमेज को किया जा रहा खराब

मीडिया ट्राइल के दौरान कई ऐसी बातें उठ रही हैं जिससे सुशांत की छवि को नुकसान हो रहा है. इसको तो तुरंत बंद कर देना चाहिए. मेरे हिसाब से सुशांत बिहार के परफेक्ट ब्रांड एंबेसडर थे. एक मृदुभाषी सख्स जिसे पता था कि उसे क्या चाहिए और जिसको उसे पाने का तरीका भी पता था.

उस सुशांत की कैसी छवि पेश की जा रही है! बताया जा रहा है कि वो इतने भोले थे कि महीनों तक उन्हें कोई अपने इशारे पर नचाता रहा. वो इतने निरीह और लाचार थे कि अपने परिवार वालों के साथ भी अपना दुख बांट नहीं सके. मेरे हीरो सुशांत इतने निरीह और लाचार कैसे हो सकते हैं, जुझारू सुशांत इतने असहाय कैसे हो सकते हैं? ऐसी छवि हमें परोसी जा रही है और हम चुप हैं. क्यों?

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नेपोटिज्म का तर्क कितना सही?

ये भी बात हो रही है कि चूंकि वो बॉलीवुड में बाहरी थे इसिलिए अंदर वालों की साजिश को वो झेल नहीं पाए. अरे भई, अपनी अदाकारी से सुशांत ने हर अंदर वालों या बाहरियों को अपना लोहा मनवा दिया था. इतने कम समय में इतनी शानदार फिल्में देकर उन्होंने अंदर-बाहर के भेद को तोड़ दिया था, उस पर जीत हासिल कर ली थी. फिर किसी अंदर वालों के ताने से वो डर जाते, घबरा जाते? बात हजम नहीं हो रही है.

सुशांत को जब भी सुनने का मौका मिला तो पता चला कि उनके अंदर एक विज्ञान को मानने वाली सोच थी. लेकिन आजकल उस सख्स को ऐसे पेश किया जा रहा है जैसे कि वो काला जादू के प्रभाव में था. जादू-टोना सुशांत को वशीभूत कर ले, ऐसे बातें सोचना भी अजीब लगता है. मेरा मन कभी नहीं मानेगा कि सुशांत काला जादू के सामने नतमस्तक हो गए.

उनकी दुखद और असामयिक मौत का खूब राजनीतिकरण हो ये भी अच्छा नहीं लग रहा है. उसका दुष्परिणाम साफ दिख रहा है. मेरे लिए वो अपने जेनरेशन के सबसे उम्दा कलाकारों में से एक रहेंगे. मैं चाहूंगा कि जिन हालात में ऐसी दुखद घटना हुई उसका निष्पक्ष ब्यौरा सबके सामने आना चाहिए. देश के नागरिक हों, उनके प्रशंसक हों या फिर बिहारी- सबको ये जानने का हक है कि उनके साथ क्या हुआ. इसके लिए जांच एजेंसी को अपना काम करने दीजिए.

जबतक सच सामने नहीं आता है तब तक सुशांत को एक भोला, लाचार और काला जादू के प्रभाव में रहने वाले सख्स के रुप में पेश करना प्लीज बंद कीजिए. इससे बहुत दुख होता है.

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