भारतीय फिल्म फेडरेशन ने बताया है कि ऑस्कर अवॉर्ड्स के लिए 'फीचर फिल्म' कैटेगरी में मलयालम फिल्म जल्लीकट्टू को नॉमिनेट किया जा रहा है. खास बात ये है कि दक्षिण भारतीय भाषा मलयालम में बनी फिल्म को इस बार मौका मिला है. इस फिल्म के डायरेक्टर हैं लिजो जोस पिल्लेसरी. लियो सस्पेंस से लेकर चटख विजुअल में बेहतरीन साउंड के इस्तेमाल से अपनी फिल्मों में एक अलग माहौल बना देते हैं, वो माहौल आपको अपने आगोश में ले लेता है.
ये फिल्म एस हरीश और जयकुमार की किताब माओइस्ट पर पर बनी है इस फिल्म में भैंस मुख्य किरदार है. जल्लीकट्टू दुनिया के कई फिल्म फेस्टिवल्स में दिखाई जा चुकी है और फिल्म ने काफी अच्छा नाम कमाया है.
फिल्म का ट्रेलर
पारंपरिक खेल जल्लीकट्टू पर ही आधारित है फिल्म
तमिलनाडु का पारंपरिक खेल जल्लीकट्टू 2,300 साल पुराना है. ये शब्द सल्लीकट्टू से निकला है. सल्ली का मतलब होता है 'सिक्के' और कट्टू का अर्थ है 'स्ट्रिंग बैग'. इस बैग का इस्तेमाल आज भी दक्षिण भारत के गांव में होता है. सल्लीकट्टू का मतलब है सिक्कों से भरा बैग, जिसे सांड के सींगों पर बांध दिया जाता है, जिसे प्रतियोगी को काबू में करना होता है. ये खेल काफी विवादित भी रहा है.
ये फिल्म इसी जल्लीकक्टू के खेल के इर्द गिर्द बनी है और 2300 साल में मानव सभ्यता के विकास को दिखाया गया है. ट्रेलर देखने से ही पता चलता है कि फिल्म के विजुअल्स के लिए काफी मेहनत की गई है. डायरेक्टर लियो जोस ने जल्लीकट्टी खेल के जिंदगी और मौत के भयानक मंजर को पर्दे पर बखूबी उतारा है.
फिल्म को खास बनाती है इसकी सोशल कमेंट्री
इस फिल्म में सामाजिक ताने-बाने को भी उभार कर दिखाया गया है. फिल्म काफी अच्छी सोशल कमेंट्री करती है. प्रशांत पिल्लई के म्यूजिक और गिरीश गंगाधरन के कैमरा के मेल ने जंगल में आधी रात के दृश्य को एकदम जीवंत कर दिया है.
फिल्म की कहानी ये है कि एक भैंस होती है जो गांव में खूब हुड़दंग मचाती है और गांव वालों को परेशान कर देती है. फिल्म में भैंस को काबू करने की कोशिश की जाती है और भैंस खुद को बचाने की कोशिश करती है.
एक खेल के बरक्स मानव सभ्यता को बयां करती इस फिल्म में बताया गया है कि कैसे मानव सभ्यता में विकास के साथ-साथ मानव मूल्यों का क्षरण हुआ है.
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