सईद अख्तर की फिल्म 'अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है' एक कार मेकैनिक की कहानी थी, जिसके अंदर समाज के अन्याय के खिलाफ गुस्सा भरा है. इस फिल्म को कल्ट क्लासिक का दर्जा मिला था.
सौमित्र रानाडे की ये नई फिल्म 1980 के दशक के फिल्म की काल्पनिक रीमेक है, दोनों फिल्मों में गुस्सा ही कॉमन है. बाकि चीजें बिल्कुल अलग हैं. फिल्म की रीमेक नहीं बल्कि कॉन्सेप्चुअल रीमेक है.
कुछ अजीबोगरीब हालात में हमारा फिल्म के दोनों मुख्य किरदारों से परिचय होता है. अल्बर्ट गायब है उसकी गर्लफ्रेंड स्टेला (नंदिता दास) उसे ढूढ़ने के लिए पुलिस स्टेशन जाती हैं. वो अल्बर्ट और उसकी आदतों के बारे में बताती है, धीरे-धीरे में हम अल्बर्ट के किरदार से जुड़ते जाते हैं.
अगले ही पल हम अल्बर्ट (मानव कौल) को एक आदमी के साथ ड्राइव करते हुए अज्ञात जगह पर जाते हुए देखते हैं. उन दोनों के बीच की बातों सुनकर हम उनके किरदार से जुड़ते हैं. सौरभ शुक्ला हरियाणवी के किरदार में शानदार हैं. जो अक्सर ये कहते हैं कि इस दुनिया में आदमी ही आदमी का दुश्मन है.
हमें जल्द ही पता चलता है कि अल्बर्ट गोवा के लिए रास्ते में हैं, वो वहां हिटमैन के रूप में अपना पहला असाइमेंट पूरा करने के लिए जा रहा है. धीरे-धीरे उसकी जिंदगी और उसके परिवार की पूरी जानकारी सामने आने लगती है.
मानव कौल एक गुस्से वाले शख्स के किरदार में है, जो धीरे-धीरे विघटित हो जाता है.मानव का अल्बर्ट एक गुस्से वाला शख्स है, वो क्रूर है, लेकिन वो जरूरत से ज्यादा संवेदनशील और कमजोर भी है. वो अपने आसपास की दुनिया को समझने की कोशिश भी करता है.
इस फिल्म में मानव कौल और सौरभ शुक्ला की केमिस्ट्री पर्दे पर बेहद खूबसूरती से दिखाई गई है. लेकिन सौमित्र रानाडे का स्क्रीन प्ले ऐसा है कि फिल्म जरूरत से ज्यादा लंबी लगती है.
अल्बर्ट पिंटो गुस्से में और काफी हद तक हम उससे सहानुभूति भी रखते हैं, लेकिन इस फिल्म में दर्शकों को बांधकर रखने की कमी है. ये फिल्म ओरिजनल फिल्म जितना प्रभाव तो नहीं छोड़ती, लेकिन देखने लायक है. मैं इस फिल्म को 5 में से 2.5 क्विंट देती हूं.
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