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कमांडो 3 रिव्यू: न थ्रिल, न रोमांच, ऊबाऊ है फिल्म की कहानी

कमांडो-3: एक्शन,स्टंट ठीक है लेकिन फिल्म को सीरियसली नहीं ले सकते

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कमांडो-3:एक्शन,स्टंट ठीक है लेकिन फिल्म को सीरियसली नहीं ले सकते

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है कोई ऐसा ऑफिसर जो मुद्दे की जड़ तक ही न जाए पर जड़ ही उखाड़ दे...और आपके सामने मौजूद हैं ' बॉलीवुड का मस्कुलर हीरो. कमांडो-3 का ये हीरो, बॉलीवुड की परंपराओं के मुताबिक ये भी वन मैन आर्मी है, जो अपने शरीर को कैसे भी मोड़-तोड़ कर पर्दे पर दुश्मनों की हड्डियां चकनाचूर कर सकता है और देशभक्ति के नाम पर दुश्मनों की छक्के छुड़ा सकता है.

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आदित्य दत्त की इस फिल्म में इस बार भी करणवीर सिंह डोगरा (विद्युत जामवाल) एक मिशन पर हैं, जो भारत पर हमला करने वाले मास्टरमाइंड की तलाश में है. फिल्म की शुरुआत ऐसे सीन से होती जहां, पहलवां का एक ग्रुप कुछ स्कूली लड़कियों से छेड़छाड़ करता है और करणवीर सिंह डोगरा उन्हें बचाने के लिए एक एक्शन हीरो की तरह एंट्री लेते हैं.

यह एक ब्लैक एंड व्हाइट दुनिया है, जिसमें अच्छे मुस्लिम बनाम बुरे मुस्लिम बाइनरी मुख्य आधार हैं. ब्रेनवॉश किए गए यंगस्टर्स और अधपकी आतंकी साजिश यहां नजर आती. और अचानक फिर कहानी लंदन पहुंच जाती है.  

ऑफिसर के किरदार में अदा शर्मा भावना रेड्डी के किरदार में नजर आ रही हैं. जो अपने मिशन पर हैं. भारी-भरकम डायलॉग वाली फिल्म में कुछ डायलॉग ऐसे हैं, जो अपका सर चकरा देंगे. एक डायलॉग में भावना कहती है 'अरे तुम तो जज्बाती हो'' इसके जवाब में विद्युत जामवाल कहते हैं. ''नहीं बस भारतवादी हूं''.

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जल्द ही हम बुराक अंसारी (गुलशन देवैया) से मिलते हैं, जो खतरनांक कट्टरपंथी है, जिसका सिर्फ एक ही मकसद है भारत को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाना. इस फिल्म में अंगिरा धार है, जो ब्रिटिश इंटेलिजेंस के हिस्से के रुप में टीम कमांडो में शामिल हैं.

फिल्म की स्क्रिप्ट दर्शकों झेलाऊ,पकाऊ और ऊबाऊ लग सकती है. फिल्म में न तो थ्रिल न ही कोई रोमांच हैं और न ही दर्शकों को बांधे रख पाने वाली कहानी. लेकिन गुलशन देवैया को स्क्रीन पर देखना अच्छा लगता है. उसका किरदार फिल्म में एक अलग एक्सपीरियंस लगता है. गुलशन ने बुराक के किरदार को इतनी अच्छी तरह निभाया कि शायद ही आपकी आंखें स्क्रीन पर से हटें.

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अंगिरा धार और अदा शर्मा को स्क्रिन पर अपना कैरेक्टर दिखाने का पूरा मौका मिला है और विद्युत जामवाल अपने एक्शन सीन और स्टंट दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं, दर्शक शायद ही उनसे अपनी नजरें हटा पाएं.

इस फिल्म की सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि बिना किसी इमोशन के स्क्रिप्ट लिखना पर फिल्म कमांडो-3 जैसी बन जाती है, जिसमें मसल्स के अलावा देखने लायक और कुछ भी नहीं.  

एक्शन और स्टंट देखना हो तो ठीक लेकिन अगर फिल्म की कहानी की बात करें तो इसे सीरियसली लेना थोड़ा मुश्किल होगा.

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