तापसी पन्नू की 'गेम ओवर' शुरुआती सीन से ही आपको जकड़ के रखती है. ये फिल्म बैक स्टोरी या कहानी सेट करने में समय बर्बाद नहीं करती.
तापसी ने फिल्म में एक गेमिंग प्रोफेशनल का रोल प्ले किया है. उसके आसपास का माहौल ही ये बताने के लिए काफी है कि फिल्म में काफी कुछ होने वाला है.
डिटेल्स धीरे-धीरे सामने आती है. वो क्यों हर वक्त घर पर रहती है? उसे अंधेरे से क्यों डर लगता है? एक पैनिक अटैक उसे थेरेपी में पहुंचा देता है. इस पूरी परेशानी में जो एक शख्स उसके साथ होता है, वो होती है उसकी केयरटेकर कलम्मा (विनोधिनी विद्यानाथन).
‘गेम ओवर’ की सबसे इंट्रेस्टिंग बात यही है कि वो किसी एक जॉनर में बंधकर नहीं रहती. डायरेक्टर अश्विन सर्वणन, जिन्होंने काव्या रामकुमार के साथ मिलकर ये फिल्म लिखी भी है, उन्होंने इसे एक मर्डर मिस्ट्री की तरह पेश किया है.
टाइट एडिटिंग और ए वसंत के शानदार कैमरा वर्क से ये साइकोलॉजिकल थ्रिलर, सुपरनेचुरल थ्रिलर का फील देती है.
फिल्म तेलुगु-तमिल में बनी है और हिंदी में डब की गई है. फिल्म में सभी चीजें सही हैं, बस ये डबिंग ही है जहां फिल्म कमजोर पड़ जाती है.
फ्लैट और कई जगह तालमेल नहीं खाती डबिंग ये सोचने पर मजबूर कर देती है कि क्या सब टाइटल्स के साथ ओरिजनल फिल्म बेहतर होती?
फिल्म में तापसी पन्नू की एक्टिंग काबिले तारीफ है. उनकी फिल्मोग्राफी बताती है कि उनकी सबसे बड़ी मजबूती ऐसे रोल करना है, जिन्हें बॉलीवुड में आम नहीं माना जाता. 'पिंक' की मीनल से लेकर 'मुल्क' की आरती और 'मनमर्जियां' की रूमी तक, उनकी फिल्मों की चॉइस शानदार रही है. फिल्म में कैरेक्टर की मजबूती और परेशानियों को उन्होंने बखूबी निभाया है.
बेकार डबिंग और एक सीन का रिप्ले होना थोड़ा खराब लगता है, लेकिन डराने वाले सीन से लेकर सस्पेंस तक, ये फिल्म देखने लायक है. एक वीडियो गेम की तरह, ये भी एडिक्टिव है.
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