फिल्म की शुरुआत से लेकर आखिर तक, एक्ट्रेस जारा वेब की आंखों से आपकी नजर नही हट पाएगी. फिल्म में नूर का किरदार निभा रहीं जारा अपनी मां और सौतेले पिता के साथ अपने पिता को ढूंढ़ने के लिए कश्मीर पहुचती हैं. वहां उनकी माजिद से दोस्ती होती है. माजिद और नूर एक ही उम्र के हैं और दोनों ही अपने पिता की तालाश में हैं.
कश्मीर एक जटिल मुद्दा है. सैनिकों का दबदबा, स्थानीय लोगों में गुस्सा, एक खूबसूरत माहौल में लगातार दिल को कचोटने वाली आवाज.
फिल्म में सच्चाई दिखाने की डायरेक्टर अश्विन कुमार की कोशिश ने फिल्म को मार्मिक बना दिया है और इस वजह से ये फिल्म ऑडियंस के दिमाग पर एक प्रभाव छोड़ जाती है.
फिल्म में बच्चे अपने पिता को ढूंढ़ने की जद्दोजहद में अपने आस-पास की समस्याओं को सुलझाते हुए नजर आते हैं. जब नूर, माजिद से कहती है कि उसे टेररिस्ट के साथ तस्वीर चाहिए, तो माजिद तुरंत अपने मूंह को कपड़े से ढककर और हाथ में बंदूक को पकड़कर तस्वीर के लिए पोज करने लगता है. देखा जाए तो ये एक कॉमेडी सीन है, लेकिन इन बच्चों की मासूमियत ने इसे दर्दनाक बना दिया है. जारा वेब्ब और एक्टर शिवम रैना ने अपने किरदार बखूबी निभाए हैं.
अश्विन कुमार ने फिल्म में कश्मीर में दिखाए गए कॉन्फ्लिक्ट के प्रभाव पर लगातार एक पैनी नजर बनाई हुई है. वो प्रभाव जो ना सिर्फ कश्मीर के स्थानीय लोगों की जिंदगियों पर पड़ता है, बल्कि वहां के सैनिकों पर भी जिन पर शांति बनाए रखने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है.
नो फादर्ज इन कश्मीर में कई सीन तस्वीरों पर आधारित है. ये किसी इंसान की पर्सनल यादों और शहर में उसकी पहचान को तलाशती हुई कहानी नजरआती है.
फिल्म में जारा के किरदार में नूर को हर टीनएज लड़की की तरह खूब तस्वीरें लेते हुए दिखाया गया है. जब नूर अपने पिता की एलबम देखती है, तो उसमें से सारी तस्वीरें गायब पाती है. बाद में अपने पिता को छुड़वाने के लिए वो अपना फोन बेच देती है. ऐसे में जब तमाम तरह की परिस्थितियां स्टोरी को कंट्रोल करने की कोशिश कर रही थी, वहीं यादों की तस्वीरें खामोशी से इस जंग को दर्शा रही थी.
जीन-मार्क सेल्वा ने अपने कैमरे के जरिए कश्मीर के हर बेचैन पहलू और जंग के दर्द को दिखाने की कोशिश की है. फिल्म में हर तरह से सच्चाई दिखाई गई है. कुलभूषण खरबंदा, सोनी राजदान, नताशा मागा, माया सराओ (जो कि फिल्म में बहुत ही अच्छी हैं) अंशुमन झा के साथ अश्विन कुमार (जिन्होंने सेप्रेटिस्ट का किरदार बखूबी निभाया है) और बच्चों की गजब परफॉमेंस फिल्म खत्म होने के बाद भी ऑडियंस के साथ रह जाती है. हालांकि फिल्म में किसी भी खुफिया सच्चाई या जबरदस्ती के तामझाम को हवा देने की कोशिश नहीं की गई है. फिल्म नो फादर्स इन कश्मीर में सिर्फ गंभीर मुद्दों पर फोकस किया गया है.
नो फादर्स इन कश्मीर एक बहुत ही महत्तवपूर्ण फिल्म है, जिसमें बहुत ही ईमांदारी से इंसान की जिंदगी की कीमत को समझाने की कोशिश की गई है.
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