ADVERTISEMENTREMOVE AD

पटाखा रिव्यू: बड़की-छुटकी की इस देसी लड़ाई में खूब धमाके हैं

कुछ हटके देखने की चाहत हो तो फिल्म ‘पटाखा’ आपके लिए है.

छोटा
मध्यम
बड़ा

वीडियो एडिटर: पुनीत भाटिया

प्रोड्यूसर: अभिषेक रंजन

ADVERTISEMENTREMOVE AD

चुड़ैल...गधी..डायन...बाॅलीवुड में बहनों को ऐसे लड़ते हमने अंतिम बार कब देखा था याद नहीं. बाॅलीवुड में तो बहनें एक-दूसरे से खूब प्यार करती हैं और हाथ पकड़कर एक-दूसरे के साथ डांस करती हैं. लेकिन विशाल भारद्वाज की फिल्म में बहनें ये नहीं करतीं.

फिल्म शुरु होती हैं दो बहनों की लड़ाई वाली सीन से जिसमें दोनों एक-दूसरे को चुन-चुनकर गालियां दे रही होती हैं. उलझे बालों में, दांत भींचती, नाक फुलाती, एक दूसरे पर लात-घूंसे चलाती. और ये तब तक चलता रहता है जब तक दोनों के बापू जाकर दोनों को अलग नहीं करते.

दोनों का दोस्त है डिपर यानी सुनील ग्रोवर जो दोनों को लड़ता देख अंदर ही अंदर मजे लेता है. लेकिन कभी-कभी दोनों बहनों के परेशान होने पर मदद भी कर देता है. पटाखा में सारे एक्टर उम्दा हैं और फिल्म फर्स्ट हाफ में कमाल की है. सुनील ग्रोवर की काॅमिक टाइमिंग बेहतरीन है.

कुछ अलग, कुछ हटके देखने की चाहत हो तो ये फिल्म बिलकुल खरी उतरती है. बाॅलीवुड में हमने भाई-बहनों को ऐसे लड़ते कभी नहीं देखा. और पहली बार हमने देखा कि इस फिल्म की लीड एक्ट्रेस को खूबसूरत दिखने की चाहत नहीं थी. दोनों ने पूरी फिल्म में तरह-तरह की शक्लें बनाई हुई हैं. राजस्थान के छोटे से गांव की धूल में, मिट्टी में लोटपोट लड़कियां, ‘दंगल’ की सान्या मल्होत्रा और टीवी की ग्लैम एक्टर राधिका मदान ने बखूबी खुद को इस किरदार में ढाला है.

दोनों बहनें बड़की और छुटकी एक दूसरे को फूटी आंख पसंद नहीं करतीं. वो लड़ती हैं, झगड़ती हैं कभी बीड़ी के लिए कभी बाॅयफ्रेंड के लिए. शायद ये उनके बीच गहरे प्यार से ही पनपा गुस्सा है क्योंकि दोनों एक-दूसरे के बिना रह भी नहीं पातीं. बापू (विजय राज) पूरी फिल्म में दोनों बहनों के झगड़े से परेशान और सर पर हाथ रखे दिखते हैं. उनकी एक्टिंग जबरदस्त है.

किस्मत कुछ ऐसा मोड़ ले लेती है कि जो बहनें एक दूसरे का चेहरा देखना नहीं चाहतीं वो एक घर में ब्याह जाती हैं. निर्देशक विशाल ने, इस रिश्ते को भारत-पाकिस्तान के प्रतीक के तौर पर सामने रखा है.

फिल्म चरण सिंह पथिक की शाॅर्ट स्टोरी दो बहनें पर आधारित है. रंजन पालित की सिनेमेटोग्राफी ने फिल्म में जान डाल दी है.

सेकंड हाफ में फिल्म थोड़ा रिपीट होती है. झगड़ा ही चलता रहता है और क्लाइमैक्स क्या होगा इसका भी पहले से पता चलता रहता है. एक्सपेरिमेंट पसंद है और कुछ अच्छा, अलग देखना चाहते हैं तो ये फिल्म जरूर देखें.

मैं देती हूं फिल्म ‘पटाखा’ को 5 में से साढ़े तीन क्विंट.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×