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रिव्यू: ‘रात अकेली है’ चालाकी से दर्शकों को अपनी ओर खींचती है

इस फिल्म में राधिका आप्टे, तिगमांशु धूलिया ने भी किरदार अदा किए हैं

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Raat Akeli Hai

‘रात अकेली है’ का रिव्यू

रात अकेली के शुरुआती सीन में किसी तरह के डॉयलॉग नहीं हैं. यह पूरी तरह डार्क में शूट किया गया है. एक ट्रक, कार के पीछे लगा है. फिर एक दुर्घटना होती है और एक हत्या होती है. तब आता है एक एरियल शॉट, जिसमें दो बाडी को ले जाते हुए दिखाया जाता है. हम इन चीजों का मतलब निकालने की कोशिश करते रहते हैं. इसी से कहानी में हमारी दिलचस्पी पैदा होती है.

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कम डॉयलॉग वाली, पर अच्छी थ्रिलर- “रात अकेली है” एक दिलचस्प दुनिया बनाती है, जिसकी कहानी पर हनी त्रेहान की पकड़ हमेशा मजबूत होती है.

जल्द ही हमारी मुलाकात जतिल यादव उर्फ नवाजुद्दीन सिद्दिकी से होती है. नवाज किसी भी किरदार में बड़ी आसानी से फिट हो जाते हैं. जतिल यादव अपनी मां के साथ एक साथी कर्मचारी की शादी में गए होते हैं.

यहीं से जतिल एक प्रभावी आदमी की हत्या के मामले की जांच शुरू कर देते हैं. धीरे-धीरे कहानी की डीटेल सामने आती जाती हैं.

स्मिता सिंह की स्टोरी और स्क्रीनप्ले हमें कई ऐसे पल देती है, जहां हमारी सांसे अटक जाती हैं और हम छुपे हुए सीक्रेट्स में खो जाते हैं.

रघुबीर सिंह (खालिद तैयबजी) की शादी उनसे बहुत कम उम्र की लड़की के साथ होती है, लेकिन शादी वाले दिन ही उनकी एक कमरे में लाश मिलती है. जतिल यादव एक कड़क आदमी हैं, जो सीधे शब्दों में बिना किसी दिखावे के बात करता है.

वह अपने काम के प्रति बेहद समर्पित है. भले ही उसे राजनेताओं या ऊपरी अधिकारियों से दबाव का सामना करना पड़े, जतिल यादव झुकता नहीं है. हत्या की इसी गुत्थी को सुलझाने के क्रम में हमारी मुलाकात कई किरदारों से होती है.

राधा का किरदार राधिका आप्टे ने अदा किया है. वहीं मृत रघुबीर के भतीजे बिक्रम का रोल निशांत दाहिया और जीजा की भूमिका स्वानंद किरकिरे ने निभाई है. तिगमांशु धूलिया, SSP शुक्ला, आदित्य श्रीवास्तव स्थानीय विधायक की भूमिका में हैं. इसके अलावा श्रीधर दुबे, शिवानी रघुवंशी, श्वेता त्रिपाठी, ज्ञानेंद्र त्रिपाठी और पद्मावत राव भी अलग-अलग भूमिकाओं में हैं.

यह देखना बेहद दिलचस्प है कि फिल्म में गैर जरूरी हिंसा, गालीगलौज या स्त्रीघृणा नहीं दिखाई गई है. कहानी में कानून को तोड़ा जाता है, ब्लैकमेल भी किया जाता है, लेकिन इसे दिखाने के लिए हिंसा या गाली गलौज को प्रदर्शित नहीं किया गया है. एक रफ्तार से चलती कहानी पूरी पटकथा को थामे रखती है.

एडिटर ए श्रीकर प्रसाद ने फिल्म को अच्छे ढंग से गढ़ा है. हनी त्रेहान जैसे कहानी को आगे बढ़ाते हुए तनाव पैदा करते हैं, उस बीच में वे दर्शकों को सोचने का मौका भी देते हैं. रात अकेली बेहद चालाकी से दर्शकों को अपनी ओर रिझाती है.

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