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रिव्यू: जॉन अब्राहम की पुरानी फिल्मों जैसी ही है ‘सत्यमेव जयते’

जॉन अब्राहम की फाइट के बारे में सब जानते हैं, इसमें कुछ नया नहीं है

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Satyameva Jayate

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सत्यमेव जयते का मतलब है जीत हमेशा सत्य की ही होती है. हमने भी यहां सच ही बोलने की ठानी है. हम सिर्फ सच बोलेंगे, सच के सिवा कुछ नहीं. सच ये है कि जॉन अब्राहम के साथ आखिर ये हुआ क्या है?

जॉन अब्राहम की पिछली फिल्में रॉकी हैंडसम, फोर्स-2, ढिशुम को ध्यान से देखा जाए, तो सब की सब तकरीबन एक जैसी ही हैं. इनमें कोई फर्क न हमें पता चलेगा और न ही जॉन को खुद.

‘सत्यमेव जयते’ में जॉन को पेंटिंग का भी शौक है. करप्शन से उन्हें सख्त नफरत है. लेकिन सिर्फ करप्ट पुलिस ऑफिसर से. करप्ट नेता और बिजनेसमैन से उन्हें कोई लेना देना नहीं.

जब जॉन अपनी ‘’कीटाणुनाशक’’ हरकतें करने में बिजी होते हैं, सीनियर पुलिस ऑफिसर मनोज बाजपेयी को उनसे निपटने के लिए बुलाया जाता है. इसके बाद फोन पर बाजपेयी और जॉन की डायलॉग बाजी होती है. डीसीपी शिवांश (मनोज बाजपेयी) फोन पर कहते हैं, कानून को हाथों में मत लो. दूसरी तरफ जॉन कहते हैं, कानून को इंसाफ तक लेकर जा जाउंगा.

फिल्म में डायलॉग्स की कमी नहीं है. जॉन एक दामले नाम के पुलिस ऑफिसर की पीटते हुए कहते हैं पेट्रोल के दाम और दामले दोनों ऊपर जाएंगे.

डायलॉग की है भरमार

फिल्म में जॉन के साथ आयशा शर्मा भी हैं, लेकिन अगर यहां उनका रोल नहीं भी होता तो भी फिल्म पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि फिल्म में कुछ भी खास नहीं है. कुछ सीन अलग हटकर भी हैं.

एक सीन में जॉन जब एक पुलिस ऑफिसर को मार रहे होते हैं, तो सामने वाला जॉन के ऊपर टायर डाल देता है और जॉन के दोनों हाथ उसमें फंस जाते हैं. तब जॉन अपने दोनों हाथों से उस टायर को फाड़ देते हैं. ये सीन वाकई गजब है.

जॉन अब्राहम की फाइट के बारे में सब जानते हैं, इसमें कुछ नया नहीं है. स्वतंत्रता दिवस के दिवस के दिन ये फिल्म रिलीज हुई है. हर किसी को आजादी है, जिसको जैसी मर्जी वैसी फिल्म बनाए. लेकिन हमें भी आजादी है कि हम बेवकूफ न बनें.

इसलिए हम 'सत्यमेव जयते' को 5 में से 1.5 क्विंट दे रहे हैं.

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