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आतंक के साए में बनी कश्मीर की ये फिल्में, पर रिलीज कैसे होंगी?

क्या आपने कभी किसी कश्मीर के लोकल फिल्म मेकर की फिल्म देखी है. 

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बॉलीवुड के बड़े-बड़े फिल्ममेकर्स की फिल्मों में तो आपने कश्मीर की खूबसूरत वादियां खूब देखी होगीं, लेकिन क्या आपने कभी कश्मीर के किसी लोकल फिल्ममेकर की फिल्म देखी है? जिस कश्मीर की खूबसूरती को अपनी फिल्मों में दिखाकर बॉलीवुड के मेकर्स अरबों कमाते हैं, उसी कश्मीर के फिल्ममेकर अपनी फिल्मों को रिलीज करने के लिए तरसते हैं.

आतंकवाद के साए में जी रहे धरती के इस जन्नत में कश्मीर की कला, संस्कृति और भाषा में रची-बसी कहानियों को इन निर्देशकों ने अपनी फिल्मों में दर्शाया. कुछ फिल्मों को फिल्म फेस्टिवल में अवॉर्ड भी मिले, लेकिन इनकी बदकिस्मती ऐसी है कि ये फिल्में इंटरनेट तक सिमट कर रह गईं और उन्हें एक थिएटर तक नसीब नहीं हुआ, जहां ये अपनी फिल्में रिलीज कर सकें. कश्मीर की कुछ ऐसी ही फिल्मों के बारे में हम आपको बता रहे हैं, जिन्हें अवॉर्ड तो कई मिले, लेकिन दर्शक नहीं मिले.

क्विंट हिंदी ने कश्मीर के कुछ लोकल फिल्ममेकर्स से खास बातचीत की, जो कश्मीर में क्षेत्रीय सिनेमा के लिए काम कर रहे हैं.

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वैसे तो कश्मीर में क्षेत्रीय सिनेमा का विकास पूरी तरह हो ही नहीं पाया. कुछ फिल्में बनीं, तभी यहां के हालात बिगड़ गए. 90 के दशक में आतंकवाद की चपेट में आए कश्मीर के सभी सिनेमाहॉल बंद हो गए. ऐसे में यहां के फिल्म मेकर्स के सामने ये भी मुश्किल खड़ी हो गई कि फिल्में बनाने के बाद आखिर उसे दिखाएंगे कहां? 

कश्मीर के थिएटर आर्टिस्ट और फिल्ममेकर मुश्‍ताक अली अहमद खान ऐसे शख्स हैं, जो बरसों से कश्मीरी सिनेमा के विकास के लिए काम कर रहे हैं.

मुश्‍ताक अली अहमद खान (फिल्म मेकर)

क्या आपने कभी किसी कश्मीर के लोकल फिल्म मेकर की फिल्म देखी है. 
(फोटो: फेसबुक)

कश्मीर में सिनेमा को बढ़ावा देने के लिए कश्मीर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल का आयोजन किया जाता रहा है. दूरदर्शन के लिए कई सीरियल और टेलीफिल्म बना चुके मुश्‍ताक बताते हैं कि इस फेस्टिवल में दुनियाभर की फिल्में और डॉक्यूमेंट्री दिखाई जाती है.

हमारा दुर्भाग्य है कि यहां के सिनेमा हॉल बंद हैं. यहां के लोग फिल्मों के बड़े दीवाने हैं. अगर यहां की लोकल इंडस्‍ट्री बन जाए, तो लोगों के रोजगार का एक जरिया बन जाए. हमलोग अपने पैसे लगाकर शौक के लिए शॉर्ट फिल्में और डाक्यूमेंट्री बनाते हैं. हमें उम्मीद है कि एक दिन यहां के हालात सुधरेंगे और यहां भी एक क्षेत्रीय फिल्म इंडस्ट्री बनेगी.
मुश्‍ताक अली अहमद खान

1990 से पहले कश्मीर में एक दो फिल्में बनीं थीं, लेकिन यहां क्षेत्रीय सिनेमा का विकास होता, उससे पहले ही जन्नत आतंकवाद की चपेट में आ गया. 1964 में कश्मीर की पहली फिल्म मेंज रात रिलीज हुई थी, जिसे नेशनल अवॉर्ड भी मिला था. उसके बाद 1972 में शेर-ए-कश्मीर महजूर नाम की एक फिल्म बनी, जो एक कश्मीरी शायर महजूर की जिंदगी पर आधारित थी. उर्दू और कश्मीरी में बनी ये फिल्म कश्मीर में रिलीज नहीं हो पाई. 1989 के बाद तो कश्मीर में फिल्में बननी ही बंद हो गईं.

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हुसैन खान (डायरेक्टर, कश्मीर डेली)

क्या आपने कभी किसी कश्मीर के लोकल फिल्म मेकर की फिल्म देखी है. 
हुसैन खान. (फोटो: फेसबुक)

2017 में कश्मीर के डायरेक्टर हुसैन खान ने कश्मीर डेली नाम की एक फिल्म बनाई. ये फिल्म कश्मीर के ताजा हालात को बयां करती है. वैसे ये पहली फिल्म है जिसकी स्क्रीनिंग कश्मीर में हुई. इस फिल्म के सभी कलाकार भी कश्मीर के ही हैं.

क्विंट हिंदी से खास बातचीत में हुसैन खान कहते हैं कि हमारे लिए सबसे बड़ी मुश्किल है कि अपनी फिल्में लोगों को दिखाए कैसे, यहां के सिनेमाहॉल तो बंद पड़े हैं. राज्य सरकार से बातचीत करके एक ऑडिटोरियम में इस फिल्म को दो हफ्ते तक दिखाया गया. कई सालों बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि कोई फिल्म 2 हफ्ते तक चली है. इसके अलावा टैगोर हॉल में हमने इस फिल्म को 5 दिनों तक दिखाया. इस फिल्म को लोगों ने काफी पसंद किया.

हुसैन कहते हैं कि हम कश्मीरी फिल्म मेकर्स को फिलहाल इस बात की चिंता नहीं है कि फिल्मों से मुनाफा कमाएं, बल्कि हम तो यही चाहते हैं कि कश्मीर के लोग किसी भी तरह से हमारी फिल्में देख लें. कश्मीर ऐसी जगह है, जहां फिल्मों की शूटिंग के लिए वो हर चीज मौजूद है, जिसकी जरूरत होती है. लेकिन हमारी बदकिस्मती ऐसी है कि इन सबके बावजूद हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं.

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दिलनवाज मुंतजिर (डायरेक्टर, पर्तव)

क्या आपने कभी किसी कश्मीर के लोकल फिल्म मेकर की फिल्म देखी है. 
फिल्म पर्तव के डायरेक्टर दिलनवाज मुंतजिर (फोटो: फेसबुक)

कश्मीर के एक डेंटल सर्जन दिलनवाज मुंतजिर ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर 2012 में एक फिल्म बनाई पर्तव. दिलनवाज बताते हैं कि कई दशकों के बाद कश्मीर की लोकल भाषा में ये फिल्म बनाई गई, जिसमें टेक्निशियन ने लेकर सारे कलाकार सब कश्मीरी हैं. इस फिल्म को कनाडा फिल्म फेस्टिवल में भी अवॉर्ड मिला. इसके अलावा कई फिल्म फेस्टिवल में इस फिल्म को दिखाया गया. लोगों को ये फिल्म काफी पसंद भी आई, लेकिन जिन कश्मीरियों के लिए ये फिल्म बनाई गई, वो इसे देख ही नहीं पाए.

मुंतजिर कहते हैं कि हमने कश्मीर यूनिवर्सिटी में इस फिल्म की स्क्रीनिंग की थी, कि कुछ लोग तो ये फिल्म देख पाए. हमने दूरदर्शन से भी बात की कि कम से कम हम इस फिल्म को टीवी पर ही दिखा सकें, लेकिन वहां से भी कोई सपोर्ट नहीं मिला. दिलनवाज के मुताबिक, पर्तव कश्मीर की पहली फीचर फिल्म है, जिसको इंटरनेशनल अवॉर्ड मिला. लेकिन इतनी अच्छी फिल्म बनाने के बाद भी हम लोगों को दिखा नहीं सके.

अगर कश्मीर में लोकल फिल्म इंडस्‍ट्री डेवलप हो जाए, तो युवाओं की काफी समस्या हल हो जाएगी. कई युवा जो एक्टिंग में जाना चाहते थे, वो भटक गए और गलत रास्ते पर निकल पड़े हैं. मैंने खुद से वादा किया है कि कश्मीर की अपनी फिल्म इंडस्ट्री बनानी है. हम अपने साथियों के साथ मिलकर यहां सिनेमा का विकास करेंगे.
दिलनवाज मुंतजिर
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गुल रियाज (एक्टर, प्रोड्यूसर)

क्या आपने कभी किसी कश्मीर के लोकल फिल्म मेकर की फिल्म देखी है. 
(कश्मीर के मशहूर एक्टर गुल रियाज. (फोटो: फेसबुक)

कश्मीर के मशहूर कलाकार, डायरेक्टर, स्क्रिप्ट राइटर गुल रियाज 2 दशक से कश्मीर की कला संस्कृति अपने सीरियल और शॉर्ट फिल्म के जरिए लोगों तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं. कश्मीर में दूरदर्शन के कई सीरियल में गुल ने लीड रोल किए हैं. एक्टिंग के साथ-साथ गुल ने कई सीरियल और शॉर्ट फिल्मों को प्रोड्यूस भी किया.

रियाज ने ‘गुल’ नाम की शॉर्ट फिल्म बनाई थी, इस फिल्म को 12 अवॉर्ड मिले. अमेरिका में इंटरनेशनल अवॉर्ड मिला और क्रिटिक्स को ये फिल्म बेहद पसंद आई.

कश्मीर के ये फिल्मकार मिलकर यही कोशिश कर रहे हैं, दूसरे राज्यों की तरह यहां भी क्षेत्रीय सिनेमा का विकास हो और आतंकवाद के साए में जी रहे लोगों फिल्में के माध्यम से ही सही अपनी जिंदगी के दर्द को कुछ पल के लिए भूल जाएं.

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