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‘मैं कपड़े उतारने वाले रोल नहीं चाहता’- Bard of Blood टीम EXCLUSIVE

‘बार्ड ऑफ ब्लड’ वेब सीरीज बिलाल सिद्दीकी की इसी नाम से आई किताब पर आधारित है

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प्रोड्यूसर: दीपशिखा यादव

वीडियो एडिटर: वीरू कृष्ण मोहन

नेटफ्लिक्स इंडिया की लेटेस्ट स्पाई ड्रामा सीरीज 'बार्ड ऑफ ब्लड' रिलीज हो गई है. ये पॉलिटिकल थ्रिलर वेब सीरीज, बिलाल सिद्दीकी की इसी नाम से आई किताब पर आधारित है. ‘बार्ड ऑफ ब्लड’ में इमरान हाश्मी, कीर्ति कुल्हारी, शोभिता धुलिपाला, जयदीप अहलावत और विनीत कुमार ने लीड रोल निभाया है.

सीरीज कबीर आनंद के बारे में है, जो एक स्कूल में पढ़ाता है और रॉ का जासूस रह चुका है. भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ती टेंशन के बीच उसे पाकिस्तान में एक मिशन पर भेजा जाता है.

हमें जयदीप अहलावत, शोभिता धुलिपाला और विनीत कुमार सिंह से बातचीत करने का मौका मिला.

जयदीप, मैं सबसे पहले आपसे ये पूछना चाहूंगी कि पहले आपने अपनी फिल्म में एक फीमेल स्पाई को ट्रेन किया. अब आप ‘बार्ड ऑफ ब्लड’ में आतंकियों को हैंडल कर रहे हैं. क्या आपको ऐसे रोल ज्यादा आकर्षित करते हैं?

मुझे लगता है ये जोन सबको आकर्षित करता है. जासूसी ऐसी चीज है जो घर में ही चलती रहती है. छोटा भाई या बड़ा भाई क्या कर रहा है! फोन में क्या चल रहा है? सबकी जिंदगी में है. वो एक ऐसी चीज है जो आप हमेशा जानना चाहते हो.

आपको नहीं लगता कि ऑडियंस में एक इमेज बन जाती है अगर एक्टर इन्हीं रोल में नजर आते हैं?

ऑडियंस का अपना एक तरीका होता है सब चीजों को लेने का और मुझे लगता है कि अब ऑडियंस इतनी समझदार हो गयी है क्योंकि अब उनको भी काफी एक्सपोजर मिल गया है. नेटफ्लिक्स जैसी चीजों की वजह से अब एक्सपोजर ज्यादा है तो उनके पास ज्यादा संदर्भ भी हैं.

शोभिता, बहुत ही ग्लैमरस रोल था पहले और अब एकदम अलग रोल और अलग लुक है.  काफी तैयारी की होगी आपने इसके लिए? कैसा रहा अनुभव?

कहते हैं ना नवरस, मुझे लगता है कि हर इंसान अपनी जिंदगी में इन भावनाओं का सामना करता है. हर कैरेक्टर में डर, गुस्सा, सब कुछ होता है. ऐसा नहीं है कि ये कैरेक्टर मजबूत है, दूसरा नहीं है  सबकी शेप अलग है, लेकिन भावनाएं एक जैसी हैं.

सीरीज में 1-2 जगह बोला गया है कि लड़की होकर मिशन के लिए कैसे आने दिया. आपका क्या कहना है इस पर? लड़की हो कर आप मिशन पर कैसे चली गईं?

मुझे लगता है कि लड़की की सेफ्टी को ध्यान में रख कर ऐसा कहा गया है क्योंकि लड़कियों को ज्यादातर जिम्मेदारी के तौर पर देखा जाता है, लेकिन ईशा ऐसी कैरेक्टर है जो सोचती है कि वो इस मिशन के लायक है. फिर चाहे वो फिजिकली, मेंटली या साइकोलॉजिकल लेवल पर हो. उसको लगता है कि वो एक अफसर है, जो एक लड़की है. वो अपने आपको एक फीमेल अफसर के तौर पर नहीं देखती है. मुझे ये काफी दिलचस्प लगा क्योंकि मुझे लगता है मैं भी ऐसी ही हूं और अपने आपको सशक्त मानती हूं. ऐसा कैरेक्टर प्ले करना मेरे लिए मजेदार था.

विनीत, आपको ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’, ‘अग्ली’ और ‘बॉम्बे टॉकीज’ जैसी फिल्मों में देखा है, लेकिन ‘मुक्काबाज’ शायद ऐसी फिल्म थी जिसने आपके करियर को किक दे दिया. उसके बाद आपको काफी ऑफर आए होंगे? क्या सोच कर उसके बाद आपने सेलेक्ट की स्क्रिप्ट?

कोई माई-बाप तो है नहीं, तो वो बहुत जरूरी है. इसलिए मैं सबकी स्क्रिप्ट पढ़ता हूं. ‘मुक्काबाज’ ने मुझे मेरी जिंदगी के 10 साल दे दिए. ‘मुक्काबाज’ के बाद ज्यादातर स्क्रिप्ट्स ऐसी आईं. जहां 60-70 पेज के बाद मेरा किरदार कपड़े उतारकर 10 लोगों को मार रहा है. मुझे समझ में आया कि ये एक ट्रैप है. और मुझे उससे बचना है, मैं वो करना चाहता था जहां मेरे कपड़े ना उतारे जाएं. इसमें मेरे कपड़े नहीं उतारे गए. दूसरा, ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’, ‘अग्ली’, ‘बॉम्बे टॉकीज’ में जो काम किया था, वो अब मदद कर रहा है. मुझे तब इतना फायदा नहीं हुआ, लोगों ने खूब तारीफ की, लेकिन उससे मेरे काम पर कुछ खास फायदा नहीं दिखा. लेकिन ‘मुक्काबाज’ के बाद, वो काम देख कर स्क्रिप्ट को देखते हुए, लोगों ने बहुत भरोसा किया. इसलिए अलग-अलग तरह के किरदार भी मिले.

आपने इस रोल के लिए भाषा भी सीखी? क्या तैयारी करनी पड़ी?

हां, पश्तो. मैंने शुरू किया गाने से. पहले बहुत सारे गाने सुने, याद किए, बहुत वीडियो देखे, क्योंकि ये कैरेक्टर अफगानिस्तान में रहता है और कई सालों से वहीं बना हुआ है, तो उनके हाव- भाव, उठने-बैठने, रहने का तरीका, खाने- पीने का तरीका, उनके गाने, उनका कल्चर, उसने अडैप्ट कर लिया है, तो ‘वीर’ पानी के जैसा है. किसी भी परिस्थिति में खुद को ढाल के आगे बढ़ जाता है. ये तैयारियां करनी पड़ती हैं. ‘मुक्काबाज’ की तैयारी अलग थी, ये तैयारी अलग है, और यही मजा है.

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