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रिव्यू: ना डर, ना कहानी! निराश करती है नेटफ्लिक्स की ‘बेताल’

नेटफ्लिक्स इंडिया की नई हॉरर वेब सीरीज ‘बेताल’ रिलीज हो गई है

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रिव्यू: ना डर, ना कहानी! निराश करती है नेटफ्लिक्स की ‘बेताल’

नेटफ्लिक्स इंडिया की नई हॉरर वेब सीरीज ‘बेताल’ रिलीज हो गई है. सीरीज की थीम- आदिवासी जमीन की वापसी, स्थानीय लोगों से छीने जा रहे अधिकार, सत्ता के खिलाफ आवाज उठाने वाले को नक्सल और एंटी-नेशनल कह देना... ये याद दिलाता है कि हमारे आसपास क्या हो रहा है. सीरीज के पहले एपिसोड ‘द टनल’ में पावरफुल सोशियो-पॉलिटिकल कमेंट्री देखकर लगता है कि ये सीरीज मजेदार होने वाली है, लेकिन अगले ही एपिसोड में सारी उम्मीदें टूट जाती हैं.

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कमांडेंट त्यागी (सुचित्रा पिल्लई) काम का चार्ज लेती हैं और विक्रम सिरोही (विनीत कुमार) को हाईवे-बिल्डिंग प्रोजेक्ट के लिए सुरंग खाली कराने की कमांड देती हैं. सिरोही की खुद की तकलीफें हैं. उसे बार-बार एक लड़की याद आती रहती है और हम ये सोचने लग जाते हैं कि दोनों के बीच ऐसा क्या रहा होगा, जिसके घाव अभी तक सिरोही को परेशान करते हैं. सिरोही को जब-जब लगता है कि ऑर्डर ज्यादा कठिन है, तो उसे लागू करने में वो संकोच करता है, लेकिन एक अच्छा जवान होने के नाते उससे उम्मीद की जाती है कि वो फौरन अपनी ड्यूटी निभाए.

प्रशासन के प्रति समर्पण और निर्विवाद निष्ठा के इस एंगल को देशभक्ति और शासन के सर्वोच्च रूप के तौर पर बरकरार रखा गया है. ये एक और बहुत ही महत्वपूर्ण बात है, जो 4 एपिसोड की इस मिनी सीरीज में दिखती है, लेकिन इसपर सही तरह से फोकस नहीं दिया गया है.

सीरीज में जॉम्बीज के साथ लड़ाई में मिलिट्री स्कॉड का एक कमांडेंट कहता है, “अंग्रेजों ने हमारी नौकरी चुराई, सोना चुराया, जमीन चुराई और अब ये हमारे भूत भी चुराएंगे!”. इस सीन पर हंसी आती है.

नेटफ्लिक्स इंडिया की नई हॉरर वेब सीरीज ‘बेताल’ रिलीज हो गई है

पैट्रिक ग्राहम ने सुहानी कंवर के साथ मिलकर सीरीज को लिखा है. निखिल महाजन और ग्राहम ने सीरीज को डायरेक्ट किया है. ये सीरीज ऑडियंस में डर पैदा करने की बजाय बस कुछ डरावने लम्हें देती है. सीरीज में प्लॉट को आसान कर देने से भी देखना का मजा किरकिरा कर दिया है. जैसे ही किसी कैरेक्टर में कुछ शैतानी ताकतें दिखाई देती हैं, हमें हिंट दे दिया जाता है कि आगे क्या होने वाला है.

डार्क साइड को दिखाने में तनय सतम का कैमरा वर्क अच्छा है, लेकिन क्योंकि हम स्टोरी में कम इन्वेस्ट हो पाए हैं, इसलिए कैमरा भी ज्यादा डर पैदा नहीं कर पाता. बेनेडिक्ट टेलर और नरेन चंद्रावर्कर के म्यूजिक के साथ भी ऐसा ही कुछ होता है. दोनों का म्यूजिक अच्छा है, लेकिन कहानी कमजोर होने से म्यूजिक अपना असर नहीं दिखा पाता.

हमें विनीत कुमार, अहाना कुमरा, सुचित्रा पिल्लई और जतिन गोस्वामी के लिए बुरा लगता है, क्योंकि उन्होंने अपना बेहतरीन प्रदर्शन करने की कोशिश की है, लेकिन कहानी ने उन्हें धोखा दे दिया. मंजरी पुपाला बढ़िया है और मौके का फायदा उठाने वाले कॉन्ट्रैक्टर के रूप में जितेंद्र जोशी का टैलेंट बेकार चला गया. इन ब्रिटिश जॉम्बीज ने काफी निराश किया. इससे अच्छा तो हमारी देसी विक्रम और बेताल की कहानियां हैं.

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