द क्विंट बाबरी मस्जिद विध्वंस के 25 साल पूरे होने पर आपके लिए 7 एपिसोड की डॉक्यूमेंट्री सीरीज लेकर आया है, जिसमें हम इस विवादित ढांचे को गिराए जाने की सिलसिलेवार कड़ियां तलाशने की कोशिश कर रहे हैं.
‘मस्जिद पर परिंदा भी पर नहीं मार सकेगा’... उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का ये ऐलान सीधे लालकृष्ण आडवाणी के लिए एक संदेश था, जो रथयात्रा जारी रखते हुए अयोध्या पहुंचने का इरादा कर चुके थे.
इसी बीच बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने 23 अक्टूबर, 1990 को रथयात्रा को रोकते हुए लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया. आडवाणी एक सप्ताह तक मसानजोर डैम के रेस्ट हाउस में रखे गए.
इस दौरान यूपी का सांप्रदायिक माहौल बुरी तरह बिगड़ गया. एक अफवाह फैलने के बाद भड़के दंगे में 80 लोग मारे गए. इसके बाद फैजाबाद और इससे आसपास के जिलों में सुरक्षा कड़ी कर दी गई.
इस बिगड़े सांप्रदायिक माहौल में यूपी के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने 16 सितंबर को एक जनसभा में कहा कि “जिन श्रद्धालुओं ने 14 कोसी परिक्रमा करने की योजना बनाई है, वे इससे दूर ही रहें”
दरअसल, यह अयोध्या के चारों ओर की जाने वाली 45 किलोमीटर की यात्रा थी. राम ने 14 साल वन में गुजारे थे, इसीलिए ‘14 कोसी परिक्रमा’ की जानी थी.
इस दौरान दिल्ली में लगातार बैठकों का दौर चलता रहा. प्रधानमंत्री वीपी सिंह वीएचपी और आरएसएस के नेताओं से साथ लगातार बैठकें कर रहे थे. इस योजना पर भी चर्चा हो रही थी कि केंद्र सरकार एक अध्यादेश लाए, जिससे राम मंदिर का निर्माण हो सके.
इस तरह की योजना परवान नहीं चढ़ सकी, क्योंकि बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जिलानी ने खुद को इन बैठकों का हिस्सा न बनाए जाने पर ऐतराज और हैरानी जताई.
इससे राम मंदिर चाहने वालों और बाबरी मस्जिद बचाने वालों के बीच अविश्वास पैदा हो गया.
23 अक्टूबर को आडवाणी की गिरफ्तारी और कार सेवा की तय तारीख के दौरान वीएचपी और बजरंग दल के कार्यकर्ता अयोध्या में जमा होते रहे. मुलायम सिंह यादव ने फैजाबाद में कारसेवकों के घुसने पर पाबंदी लगा दी, पर सुरक्षा एजेंसियों के लिए उन्हें रोकना मुश्किल हो गया.
दरअसल, संयोगवश तब कार्तिक पूर्णिमा के लिए भी श्रद्धालु उमड़ रहे थे, जिसमें लोग सरयू जैसी पवित्र नदियों में स्नान करते हैं.
30 अक्टूबर, 1990
वीएचपी की कार सेवा वाले दिन पुलिस ने विवादित ढांचे के 1.5 किलोमीटर के दायरे में बैरिकेडिंग कर दी. कर्फ्यू का धता बताते हुए हजारों कारसेवक हनुमानगढ़ी पहुंच गए, जो ढांचे के करीब ही था.
करीब 11 बजे एक साधु सुरक्षा बल की उस बस को अपने काबू में करने में कामयाब हो गया, जिसमें पुलिस हिरासत में लिए गए कारसेवकों को भरा जा रहा था. साधु ने बैरिकेड तोड़ते हुए बस को दाईं ओर मोड़ दी. इसके बाद तो बाकी कारसेवकों के लिए उस ओर जाना मुमकिन हो गया.
सुरक्षाकर्मी आंधी-तूफान की तरह आए करीब 5000 कारसेवकों को काबू करने में जुट गए, जो विवादित परिसर के पास जमा हो गए थे.
मुलायम सिंह यादव ने साफ निर्देश दिया था कि मस्जिद को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए. पुलिस पहले तो लोगों को तितर-बितर करने के लिए केवल आंसू गैस के गोले छोड़ने को तैयार थी, पर जब कुछ कारसेवक मस्जिद की गुंबद पर चढ़ गए, तब पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी.
गुंबद पर एक केसरिया झंडा भी फहराया जा चुका था.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अयोध्या में 30 अक्टूबर, 1990 को फायरिंग में 5 कारसेवक मारे गए. गुस्से से भरे कारसेवकों का कहना था कि यूपी सरकार ने मृतकों का जो आंकड़ा दिया है, वह हकीकत की तुलना में बेहद कम है.
अगले 48 घंटों तक अयोध्या में एक बेचैन करने वाली शांति कायम रही.
2 नवंबर, 1990
तब पहली बार बीजेपी सांसद उमा भारती, वीएचपी के संयुक्त सचिव अशोक सिंघल और आरएसएस के स्वामी वामदेव ने हनुमानगढ़ी में करीब 15000 कारसेवकों का नेतृत्व किया.
पुलिस ने विवादित ढांचे की ओर जाने वाली गलियों में बैरिकेडिंग कर दी. कई हथियारबंद पुलिसकर्मी चौराहे की दुकानें की छतों पर तैनात हो गए. इस वक्त कारसेवकों ने एक चतुर चाल चली. एक बूढ़े आदमी और महिला को रुकावट वाले रास्ते से आगे जाने की इजाजत दे दी गई.
तब उम्रदराज कारसेवक उम्र में अपने से छोटे पुलिसकर्मियों के पांव छूने के लिए आगे झुकने लगे.
अपने देश की परंपरा रही है कि जब कोई बड़ा पांव छूने की कोशिश करता है, तो लोग अपना पैर पीछे खींच लेते हैं. इस तरह जैसे-जैसे पुलिसकर्मी अपने पैर हटाते गए, कारसेवक अपने पैर आगे बढ़ाते चले गए. पर यह ड्रामा बहुत देर तक नहीं चल सका.
अयोध्या में छतों पर चढ़कर घटना को कवर कर रहे पत्रकार याद करते हैं कि पुलिस ने कारसेवकों पर फायरिंग करने से पहले कोई चेतावनी नहीं दी थी. विदेशी पत्रकारों को विवादित स्थान से दूर रखने की कोशिश की गई.
करीब 3 बजे कारसेवकों ने नजदीक के ही एक मंदिर के पास मृतकों की लाशें जमा करनी शुरू कर दीं. साथ ही इनका अंतिम संस्कार करने से भी साफ इनकार कर दिया.
सुबह 6 बजे एक बार फिर मार्च करने की इजाजत मांगी गई. स्वामी वामदेव ने कारसेवकों को शांत करने की कोशिश की, पर उनकी एक न चली और उन्होंने खुद को एक कोठरी में बंद कर लिया.
बजरंग दल के विनय कटियार पहली बार कारसेवकों को प्रेरित करने वाले नेता के तौर पर उभरे थे. अपने एक भड़काऊ भाषण में विनय कटियार ने कारसेवकों की मौत के लिए पुलिस को जिम्मेदार ठहराया.
साथ ही उन्होंने मुलायम सिंह यादव सरकार को रोड और रेलमार्ग खोले जाने और विवादित ढांचे के भीतर रखे रामलला की पूजा की इजाजत दिए जाने के लिए 24 घंटे का अल्टीमेटम जारी कर दिया.
पुलिस की बर्बरतापूर्ण कार्रवाई और फैजाबाद में कारसेवकों की भारी तादाद को देखते हुए राज्य सरकार कुछ नरम पड़ गई. सड़क और रेल मार्ग चालू कर दिए गए.
कारसेवकों को बारी-बारी जत्थे में विवादित ढांचे के भीतर जाने और रामलला की पूजा करने की इजाजत दे दी गई.
विवादित सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, कुल मिलाकर 15 कारसेवक मारे गए. मुलायम को ‘मुल्ला मुलायम’ कहा गया. वे यूपी में मुस्लिम वोटरों के रहनुमा बनकर उभरे.
साल 2013 में दिए एक इंटरव्यू में मुलायम सिंह यादव ने यह बात स्वीकार की कि फायरिंग का आदेश देना एक दुखद निर्णय था. फायरिंग के तुरंत बाद ही मुलायम ने समाजवादी पार्टी बनाई थी. 6 महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में उन्हें इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी.
आखिरकार 4 नवंबर को शहीदों को अंतिम संस्कार कर दिया गया. उनकी चिताओं की राख को देशभर में गांवों और शहरों में ले जाया गया, जिससे उन्माद फैले...इसके करीब 2 साल बाद ही बाबरी मस्जिद ढहा दी गई.
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