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क्यों बंद होने जा रहा है डीजल कारों का उत्पादन?

मारुति सुजुकी 1 अप्रैल, 2020 तक डीजल कार के उत्पादन को बंद करने का कर चुकी है ऐलान.

Published
कुंजी
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देशकी सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी ने कुछ दिनों पहले ऐलान किया कि वो 1 अप्रैल 2020 से भारत में डीजल कारों को बनाना बंद कर देगी. पहली बार ये खबर पढ़ने-सुनने वालों को आश्चर्य हुआ कि आखिर ऐसा क्यों? लेकिन मारुति ही नहीं, देश की दूसरी कार कंपनियां भी या तो डीजल कारों का उत्पादन बंद करने जा रही हैं या नए मॉडल की डीजल कारें लाना बंद कर रही हैं.

एसयूवी सेगमेंट में दिग्गज महिंद्रा एंड महिंद्रा भी अपनी ज्यादातर कारों के पेट्रोल वर्जन लाने की तैयारी कर रही है. वहीं टाटा मोटर्स के भी अप्रैल 2020 से अपनी प्रमुख गाड़ियों के डीजल वर्जन बंद करने की खबरें आ रही हैं. गौरतलब है कि महिंद्रा एंड महिंद्रा और टाटा मोटर्स की ज्यादातर कारें डीजल वर्जन में ही ज्यादा लोकप्रिय हैं.

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डीजल कारों से क्यों दूर जा रही हैं कार कंपनियां?

दरअसल, देश में डीजल कारों की लोकप्रियता के तेजी से बढ़ने की वजह थी पेट्रोल और डीजल की कीमतों में भारी अंतर. इस वजह से डीजल कारों को चलाने का खर्च पेट्रोल कारों के मुकाबले काफी कम आता था, और लोग थोड़ी ज्यादा कीमत होने के बावजूद डीजल कारों को प्राथमिकता देने लगे थे. साल 2012-13 में तो देश में बिकने वाली 48 फीसदी पैसेंजर व्हीकल डीजल से चलने वाली थीं यानी हर दूसरी कार डीजल वर्जन थी.

लेकिन अब पेट्रोल और डीजल की कीमतों का अंतर काफी घट चुका है. एक समय जो अंतर करीब 25 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गया था, वो अब 6-7 रुपये प्रति लीटर रह गया है. यही वजह है कि साल 2018-19 में देश में बिकने वाली कारों में डीजल कारों की तादाद घटकर 22 फीसदी रह गई, यानी केवल 6 साल में डीजल कारों की बिक्री आधी से भी कम हो गई. लेकिन एक और वजह है जिसने कार कंपनियों को डीजल वर्जन से मुंह मोड़ने को मजबूर किया है, और ये वजह ज्यादा बड़ी है.

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अगले साल 1 अप्रैल से लागू होने हैं नए एमिशन नॉर्म्स

दरअसल, 1 अप्रैल 2020 से देश में नए एमिशन नॉर्म्स लागू होने जा रहे हैं, जो बीएस-6 पर आधारित होंगे. ये जानना भी जरूरी है कि इस वक्त देश में बीएस-4 एमिशन नॉर्म्स पर आधारित कारें बिक रही हैं. पहले बीएस-6 नॉर्म्स लागू करने की तारीख 1 अप्रैल 2024 थी, जिसे पहले एडवांस करके अप्रैल 2021 किया गया और फिर अप्रैल 2020 कर दिया गया है.

बीएस यानी भारत स्टेज एमिशन नॉर्म्स सरकार समय-समय पर जारी करती है जिसके मुताबिक, हवा को दूषित करने वाले तत्वों को नियंत्रित किया जाता है, ताकि वायु प्रदूषण पर लगाम लग सके. इन नॉर्म्स के दायरे में इंटरनल कम्बस्चन (आंतरिक दहन) इंजन इक्विपमेंट्स आते हैं, जिनमें मोटर व्हीकल भी शामिल हैं.

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नए एमिशन नॉर्म्स से कार कंपनियों को क्या फर्क पड़ेगा?

कार कंपनियों के लिए बीएस-6 नॉर्म्स के मुताबिक, डीजल इंजन को अपग्रेड करने की लागत काफी ज्यादा होगी. फिलहाल कार के एक ही मॉडल के पेट्रोल और डीजल वर्जन की कीमतों में औसत करीब 1 लाख रुपये का अंतर आता है, जो बीएस-6 नॉर्म्स के बाद बढ़कर ढाई लाख रुपये हो जाने का अनुमान है. कार कंपनियों की स्टडी के मुताबिक, इतना ज्यादा अंतर होने के बाद लोगों के लिए डीजल कारें चलाना सस्ता सौदा नहीं रहेगा और इनकी बिक्री में और गिरावट आ जाएगी.

ऐसा नहीं है कि पेट्रोल कारों को नए नॉर्म्स के मुताबिक, अपग्रेड नहीं करना होगा, लेकिन कार कंपनियों के मुताबिक पेट्रोल कारों का अपग्रेडेशन आसान और सस्ता है, जबकि डीजल कारों का अपग्रेडेशन प्रोसेस जटिल होने के साथ-साथ महंगा भी है.

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विदेशों में भी डीजल कारों को लेकर बदला है रुख

यूरोप दुनिया में डीजल कारों का सबसे बड़ा बाजार है, और वहां भी इन्हें लेकर कंज्यूमर का रुख काफी बदल चुका है. अब वहां ‘क्लीन’ एनर्जी सोर्स से चलने वाले वाहनों की लोकप्रियता बढ़ने लगी है. इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के मुताबिक, यूरोपीय यूनियन में डीजल कारों की बिक्री 2017 की पहली छमाही में कुल कार बिक्री का 42.5 फीसदी थी, जो साल भर में ही यानी 2018 की पहली छमाही में घटकर 36.5 फीसदी रह गई. बर्लिन, लंदन और पेरिस जैसे शहरों में तो प्रदूषण कम करने के लिए डीजल कारों पर रोक लगाने जैसे कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं.

विदेश की कई बड़ी कार निर्माता कंपनियों ने भी डीजल कारें बनाना या बेचना बंद करने का ऐलान कर दिया है. जर्मनी की पोर्शे ने तो सितंबर 2018 में ही ये एलान कर दिया था. इसके अलावा टोयोटा, निसान, बेंटली और मित्सुबिशी जैसी कंपनियां भी यूरोपीय देशों में या तो डीजल कारें बेचना बंद कर चुकी हैं या निकट भविष्य में ऐसा करने का मन बना रही हैं.

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