UIDAI अपने यूजर्स के सत्यापन के लिए 15 सितंबर को चेहरे की पहचान शुरू करने जा रहा है. इस तकनीक का इस्तेमाल मौजूदा बायोमेट्रिक पहचान के तरीकों के साथ किया जाएगा. इसे चरणबद्ध तरीके से लागू किया जा रहा है. इसकी शुरुआत टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर के जरिये हो रही है.
आधार के लीक होने, हैक होने और धोखाधड़ी की रिपोर्ट के बीच यह पहल हो रही है. और, यह पहल ऐसे समय पर हो रही है जब सुप्रीम कोर्ट इस आधार प्रोजेक्ट की संवैधानिक वैधता पर ही फैसला देने वाला है.
UIDAI क्यों मेरा चेहरा क्लिक करना चाहता है ?
UIDAI ने तय किया है कि वह यूजर को सत्यापित करने के लिए चेहरे को प्रमाणित करने का अतिरिक्त तरीका अपनाएगा. यह वर्तमान फिंगर प्रिंट/आंखों की पुतली आधारित सत्यापन के साथ-साथ होगा. सीधे शब्दों में कहें तो UIDAI के केन्द्रीय भंडार में पहले से हमारी तस्वीरें हैं. इलेक्ट्रॉनिक केवाईसी के दौरान फोटो लेकर यह उसके पास डाटा बेस में मौजूद तस्वीरों से उसका मिलान करेगा ताकि यूजर को सत्यापित किया जा सके. टेलीकॉम कम्पनियों से इसकी शुरुआत होगी, जो यूजर को सिम कार्ड उपलब्ध कराते हैं.
लेकिन मैंने पहले ही अपना फिंगरप्रिंट और आंखों की पुतली की तस्वीरें दे रखी हैं?
यह सच है. लेकिन, UIDAI का कहना है कि चेहरे के पहचान के जरिये वह एक और स्तर पर व्यक्ति की पहचान को सत्यापित करना चाहता है खासकर तब जब किसी का फिंगरप्रिन्ट मैच नहीं करता हो. ऐसे कई मामले हैं कि यूजर का फिंगर प्रिन्ट घिस जाता है और इस वजह से आधार का सत्यापन फेल हो जाता है.
UIDAI के सर्कुलर में कहा गया है कि चेहरे की पहचान की “अनुमति तभी होगी जब किसी और तरीके से सत्यापन में भ्रम होगा”. इसका उपयोग या तो आंखों की पुतली के साथ या फिर फिंगरप्रिंट अथवा OTP के जरिये किसी यूजर को सत्यापित करने के लिए होगा.
क्या यह सभी आधार सत्यापनों पर लागू होगा?
नहीं, अभी नहीं. UIDAI चरणों में इसे लागू करने जा रहा है. मतलब ये है कि वे इस नई व्यवस्था को टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर्स के साथ शुरू करने जा रहा है. दूसरे संस्थान, जो आधार आधारित सत्यापनों और इलेक्ट्रॉनिक केवाईसी का इस्तेमाल करते हैं, वे इस पर बाद में अमल करेंगे.
छोटे स्तर पर इसे लागू करने का प्रमुख कारण ये है कि सभी सत्यापन यूजर एजेंसियों के पास चेहरे की पहचान से जुड़े उपकरण नहीं हैं. फिंगरप्रिंट और आंखों की पुतली की साथ चेहरे की पहचान को भी बायोमेट्रिक सूचना की श्रेणी में रखा गया है.
एपल फेस आईडी नष्ट हो गई है क्या UIDAI मुझे बेहतर सुरक्षा का भरोसा दे सकता है?
वियतनाम की सुरक्षा फर्म बीकेएवी ने दावा किया था कि उसने 3 नवंबर 2013 को आईफोन एक्स के लॉन्च के एक हफ्ते के भीतर एपल के फेस आईडी के सत्यापन को तोड़ दिया था. इसका महत्व इसलिए और ज्यादा था क्योंकि एपल ने बहुत अधिक परिष्कृत तकनीक का इस्तेमाल किया था और इन्फ्रारेड किरणों के जरिये चेहरे की 3डी तस्वीरें ली थीं.
इसके मुकाबले UIDAI 2डी तस्वीरें लेगा. इसमें छेड़छाड़ या धोखाधड़ी करना और भी आसान होगा.
फेस मैपिंग के लिए मेरी सहमति के बारे में क्या कहना है?
शानदार सवाल. इस मामले में UIDAI हमारी सहमति मानता है. चेहरे की पहचान की अनिवार्यता चिंता का विषय है. UIDAI यूजर्स को उसकी पसंद का मौका नहीं देता और इसे अनिवार्य बनाकर वह उन्हें और अधिक असुरक्षित बनाता है.
टेलीकॉम सेवाओं के लिए चेहरे की पहचान की अनिवार्यता का एक बुरा पहलू यह है कि अगर फिंगरप्रिन्ट स्कैन का परंपरागत तरीका फेल हो जाता है, तो उसका मतलब होगा कि नया तरीका भी सुरक्षा देने में विफल रहा.अगर सत्यापन का पहला रूप, जैसे कि फिंगर प्रिंट सफल हो जाता है तो सत्यापन के लिए चेहरे की पहचान कराने की आवश्यकता क्यों रह जाती है?
क्या मुझे सम्भावित निगरानी को लेकर चिन्तित होना चाहिए?
हालांकि, UIDAI सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश हो चुका है और यह कह चुका है कि आधार का इस्तेमाल निगरानी के लिए नहीं किया जा सकता, मौजूदा सबूत कुछ और कहते हैं. नागरिकों के 360 डिग्री डाटा बेस में अपने निवासी को जानें (know Your Resident) यानी केवाईआर+ के जरिए स्टेट रेजिडेन्ट्स डाटा हब ने बारंबार निगरानी से जुड़ी चिन्ता की ओर ध्यान खींचा है. इसके अलावा अनिवार्य रूप से चेहरे की पहचान कराते समय हर बार यूजर को खुद को सत्यापित करना होता है. यूआईएडीआई समय-समय पर अपने डाटा बेस में तस्वीरों को अपडेट कर सकेगा.
चेहरे के सत्यापन की हर कोशिश के दौरान ली गयी तस्वीरों से निश्चित रूप से निगरानी की सम्भावना से जुड़ी चिन्ता बढ़ेगी. तस्वीरें भी बायोमेट्रिक सूचना के तहत आती हैं और आधार कानून कहता है कि बायोमेट्रिक डाटा का इस्तेमाल सत्यापन के अलावा किसी और काम में नहीं किया जा सकता है. बहरहाल, टेली कम्पनियों के लिए इन तस्वीरों को जमा रखने की जरूरत होगी और वे इसका दुरुपयोग कर सकती हैं.
क्या चेहरे का सत्यापन फिंगरप्रिंट और आंखों की पुतली के स्कैन से बेहतर विकल्प है?
चिंता का यह एक और क्षेत्र है. आधार कार्ड में मौजूद तस्वीरों की गुणवत्ता बहुत अच्छी नहीं होती, जिससे चेहरे की पहचान सही तरीके से की जा सके. कई लोगों के लिए UIDAI डाटाबेस की तस्वीरें कई साल पुरानी हैं और उनका मिलान मौजूदा चेहरे से नहीं भी हो सकता है.
अधिक संभावना है कि बच्चों को सत्यापन के दौरान विफलताओं का सामना करना पड़े क्योंकि जब UIDAI ने फोटो क्लिक किए थे, तब के मुकाबले उनके चेहरे बदल गये हैं. इसके अलावा कई तस्वीरें तो खराब रोशनी में क्लिक की गयी थीं और सत्यापन के लिए उपयोग में नहीं लायी जा सकेंगी. तो ये है सत्यापन का तरीका, जो ठीक उसी तरह विफल हो सकता है जैसे फिंगर प्रिंट के सत्यापन के दौरान विफलताएं देखने को मिली हैं.
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