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मोदी सरकार की GDP ज्यादा या मनमोहन की, छिड़ गई है जोरदार बहस  

विकास दर के लिए सबसे जरूरी होता है निवेश और बचत. दोनों दरों में पिछले कुछ सालों में लगातार कमी आई है

Updated
कुंजी
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बुधवार को नई रिपोर्ट आई जिसके हिसाब से मोदी सरकार के कार्यकाल में विकास दर यूपीए के समय से ज्यादा रही. इससे पहले एक और रिपोर्ट आई थी, वो भी सरकारी, जिसके हिसाब से यूपीए के समय में विकास दर जितनी बताई गई थी उससे कहीं ज्यादा रही.

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नई रिपोर्ट में क्या-क्या है

नीति आयोग की तरफ से जारी ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि 2005-06 से 2013-14 के बीच औसत विकास दर 6.7 परसेंट रही. इसकी तुलना में 2014 के बाद से औसत विकास दर 7.3 रही है. और ऐसा नोटबंदी के बाद आई सुस्ती के बावजूद हुआ है. इस रिपोर्ट के हिसाब से यूपीए के समय में उतनी तेजी से ग्रोथ नहीं हुआ था जितना अब तक माना जाता रहा है. दलील यह दी गई है कि रिविजन की जरूरत नए आंकड़ों के आने की वजह से हुआ है. सबसे ज्यादा रिविजन सर्विस सेक्टर के विकास दर में किया गया हैय चूंकि सर्विस सेक्टर का जीडीपी में योगदान काफी ज्यादा है, इसीलिए विकास दर के आंकड़े भी कम हो गए हैं.

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लेकिन एक सरकारी रिपोर्ट ने तो अलग ही बात कही थी

नेशनल स्टेटिसटिकल कमीशन ने कुछ महीने पहले एक रिपोर्ट जारी की थी जिसके मुताबिक यूपीए के समय में विकास दर काफी ज्यादा थी. कमेटी ने बताया था कि 2007-08 और 2010-11 में विकास दर 10 परसेंट से भी ज्यादा रही थी. उस रिपोर्ट को सरकार ने मानने से इंकार कर दिया था. अब ताजा रिपोर्ट के 2010-11 में विकास दर 10.3 परसेंट नही बल्कि सिर्फ 8.5 परसेंट ही रही थी.

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क्या-क्या बदला है

  • 2008-09 में विकास दर 3.9 परसेंट नहीं बल्कि 3.1 परसेंट थी
  • 2009-10 में विकास दर 8.5 परसेंट नहीं बल्कि 7.9 परसेंट रही
  • 2010-11 में विकास दर 10.3 परसेंट नहीं बल्कि 8.5 रही

इस बदलाव के पीछे तर्क दी गई है कि वैश्विक आर्थिक मंदी के भारत पर होने वाले असर को कम करके आंका गया और उससे उबरने की रफ्तार को भी बढ़ा चढ़ा कर पेश किया गया.

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रिविजन के पीछे तर्क

रिपोर्ट जारी करते वक्त यह कहा गया कि नए आंकड़े लिए गए है, असंगठित क्षेत्र के लिए नए सर्वे के नतीजे आए हैं. साथ ही, विक्री के लिए विक्री कर के आंकड़ों को तरजीह दी गई है. उसी तरह टेलीकॉम सेक्टर के ग्रोथ के आकलन के लिए पहले ग्राहकों की संख्या में बढ़ोतरी के आंकड़े से ग्रोथ का आकलन होता था. अब उसे बदल कर मिनट्स ऑफ यूज यानी ग्राहकों की कितनी बात की, इसको ग्रोथ का पैमाना बना दिया गया है.

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नए आंकड़ों से फिर भी कई जवाब नहीं मिलते

विकास दर के लिए सबसे जरूरी होता है निवेश और बचत. दोनों दरों में पिछले कुछ सालों में लगातार कमी आई है. 2010-11 में निवेश की दर 39.8 परसेंट थी जो 2017-18 में घटकर 30.6 परसेंट रह गई. उसी तरह जो बचत की दर 2010-11 में 36.2 परसेंट थी वो 2016-17 में घटकर 29.6 परसेंट ही रह गया. निवेश बढ़ नहीं रहा है, बचत में कमी आई है. फिर भी जीडीपी पहले से ज्यादा तेज, नई रिपोर्ट में इसका कोई जवाब नहीं है. साथ ही पूर्व आर्थिक सलाहकार ने साफ शब्दों में कहा है कि नोटबंदी ने अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका दिया है और उसके बाद विकास दर रिकवर नहीं कर पाया है. तो फिर औसत विकास दर ज्यादा. आखिर कैसे?

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