भारत और अमेरिका के बीच 2+2 की बातचीत 6 सितंबर को नई दिल्ली में होगी. बातचीत को भारत-अमेरिका के सामरिक और आर्थिक रिश्तों को काफी अहम बताया जा रहा है. हालांकि राजनयिक हलकों में इसे लेकर कोई खास उम्मीद नहीं है. इस नाउम्मीदी की सबसे बड़ी वजह है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का रवैया. आइए देखते हैं कि इस बातचीत के मुद्दे क्या हैं और रिश्तों को आगे बढ़ाने में कहां अड़चनें आ रही हैं.
क्या हैं बातचीत के मुद्दे ?
भारत और अमेरिका के बीच पिछले कुछ सालों से सामरिक (स्ट्रेटजिक) रिश्ता गहराता जा रहा है. दोनों के बीच सैन्य समझौते और अभ्यास तो बढ़ रहे हैं लेकिन डिप्लोमटिक बातचीत रफ्तार नहीं पकड़ रही है. इसलिए फैसला हुआ कि नई दिल्ली में दोनों देशों के रक्षा और विदेश मंत्रियों की मुलाकात हो. इस मुलाकात में अमेरिका की साउथ एशिया पॉलिसी पर चर्चा होगी. अफगानिस्तान और एशिया प्रशांत रणनीति पर भी चर्चा होगी, जिसके केंद्र में भारत है. भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड को अब स्ट्रेटजिक इश्यू के तौर पर देखा जा रहा है.
भारत और अमेरिका के बीच एक दूसरे के खिलाफ एक हल्का टैरिफ युद्ध छिड़ा हुआ है. दूसरी ओर ट्रंप भी लगातार डब्ल्यूटीओ से हटने की बात कर रहे हैं. बातचीत में डब्ल्यूटीओ में भारत के खिलाफ अमेरिका की कार्रवाई, रिजर्व बैंक डाटा लोकलाइजेशन आदेश और मेडिकल उपकरणों पर प्राइस कैप का मुद्दा उठ सकता है. इसलिए यह बातचीत बेहद अहम है.
क्या होगा इस बातचीत में?
2+2 डायलॉग में इस बात पर चर्चा होगी कि अमेरिका भारत के साथ एक प्रमुख रक्षा पार्टनर के तौर आगे किस तरह से काम करे. मिसाइल सिस्टम (NASAMS-II), हेलिकॉप्टर (24 सिकोरोस्की MH-60 Romeo समुद्री हेलीकॉप्टर) और ड्रोन (predator-B) सौदे के अलावा Communications Compatibility and Security Agreement (COMCASA) पर दस्तख्त हो सकते हैं. यह काफी वक्त से लटका हुआ था.
अमेरिकी CAATSA law पर भी बातचीत हो सकती है जिसके दायरे में अमेरिकी उन देशों के साथ सहयोग नहीं करता जब रूस से हथियार खरीदते हैं. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की पर्मानेंट सीट और जैश-ए-मोहम्मद चीफ मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित करने पर चर्चा हो सकती है. अमेरिका ईरान के मुद्दे पर भारत पर दबाव बनाएगा. हालांकि दबाव के बावजूद भारत ने ईरान से तेल की खरीद में ज्यादा कटौती नहीं की है.
ट्रंप का रवैया क्यों बन रहा है रिश्तों में अड़चन?
हाल में मोदी के बोलने के लहजे का मजाक उड़ाता वीडियो वायरल हुआ था और इसके बाद अमेरिका और भारत के बीच रिश्तों को मजबूत करने की कोशिश कर रहे ट्रंप प्रशासन के मंत्रियों और राजनयिकों ने माथा पीट लिया था. बताया जाता है कि ट्रंप अपनी इंटरनल मीटिंग्स अक्सर मोदी का मजाक उड़ाते हैं. मोदी को लेकर ट्रंप के रवैये की वजह से भारत में अमेरिका के साथ रिश्तों को मजबूत करने के प्रति निराशा है. द हिंदू की फॉरन अफेयर्स एडिटर सुहासिनी हैदर ने इस बातचीत से पहले न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा, मोदी ये मान कर चल रहे हैं कि वह ट्रंप के साथ मिल कर काम नहीं कर सकते. लोग इस बात पर सहमत हैं कि मोदी को ऐसा ही लग रहा है.
पूर्व विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन भारत के साथ रिश्तों के लेकर काफी उत्साहित थे. रक्षा मंत्री मेटिस भी एशिया में भारत के महत्व पर जोर देते रहे हैं. पेंटागन ने तो हवाई द्वीप में तैनात अमेरिकी कमान को हिंद-प्रशांत कमान नाम दे दिया ताकि भारत इस क्षेत्र में अमेरिका और सहयोगी देशों के साथ गठबंधन मजबूत करे. लेकिन ट्रंप के आने के साथ इन अरमानों पर पानी फिरता दिख रहा है. ट्रंप की ट्रेड नीतियों की वजह से भारत के साथ कारोबार बढ़ाने में मुश्किल आ रही है. रूस को सजा देने से उससे मिसाइल और विमान खरीदने के भारत का प्लान चौपट हो रहा है. अब मोदी को नहीं लगता है कि वह ट्रंप की नीतियों की वजह से कारोबार और सामरिक सहयोग को आगे बढ़ा पाएंगे. नवंबर में दोनों के बीच बैठक का नतीजा बेहद खराब रहा था. ट्रंप हार्ले डेविडसन पर भारत में ऊंची इम्पोर्ट ड्यूटी से उखड़े हुए थे. उन्होंने भारत को चेतावनी दी थी अगर ड्यूटी घटाई नहीं गई तो भारतीय निर्यात पर और टैरिफ लगाया जाएगा.
भारत का रुख क्यों बदला?
ट्रंप के इस रवैये ने 2+2 की बातचीत के लिए भारत आ रहे अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो का काम मुश्किल कर दिया है. मोदी के प्रति ट्रंप इस रवैये के साथ रिश्तों को मजबूत करने की राह में कई चुनौतियां हैं. एक दूसरे के सामानों पर टैरिफ लगाने की वजह से कारोबारी रिश्तों में तनाव के साथ ही ईरान से तेल खरीदने के मामले को लेकर भी खींचतान चल रही है. अमेरिका चाहता है कि भारत सीधे ईरान से तेल न खरीदे. साथ ही उसने रूस से रक्षा उपकरणों की खरीद पर भी पाबंदी लगाने की चेतावनी दी है. जबकि भारत रूस से कई दशकों से रूस से रक्षा सौदे करता रहा है. ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद यह उम्मीद लगाई जा रही थी कि मोदी उनके साथ भारत-अमेरिका रिश्तों को आगे बढ़ा सकेंगे लेकिन उनके व्यवहार में अनिश्चितता को देख कर भारत रूस और चीन के साथ अपने रिश्तों पर और ध्यान देने लगा है.
फिर भी बाकी हैं उम्मीदें
ट्रंप के रवैये की वजह से भारत-अमेरिकी रिश्तों में ज्यादा उम्मीद न होने के बावजूद सबकुछ खत्म नहीं हुआ है. हाल में कुछ ऐसे कारोबारी सौदे हुए हैं जिनसे आपसी व्यापार को रफ्तार मिल सकती है. अमेरिकी कंपनियों वॉलमार्ट और अमेजन ने भारतीय रिटेल सेक्टर में अरबों डॉलर का निवेश किया है. अगले साल तक भारत अमेरिका से 18 अरब डॉलर के डिफेंस सिस्टम खरीद सकता है. दोनों देशों के बीच 2017 तक आपसी कारोबार 126 बिलियन डॉलर तक पहुंच चुका है. अमेरिका में भारतीय स्टूडेंट्स की संख्या पिछले साल बढ़ कर 1,86,000 तक पहुंच चुकी है. तमाम खींचतान के बावजूद अमेरिका एशिया में चीन की विस्तारवादी नीतियों को लेकर सतर्क है और भारत के साथ सामरिक रिश्तों को मजबूत करना चाहता है.
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