देश में दवा दुकानों पर इस वक्त विटामिन सी को छोड़कर सभी दवाइयां पर्याप्त मात्रा में मौजूद हैं. लेकिन पिछले कुछ वक्त से कई जरूरी दवाओं की सप्लाई चेन में दिक्कत महसूस की जा रही है और आशंका है अगले कुछ महीनों के दौरान लोगों को भारी दवा संकट का सामना करना पड़ सकता है. जरूरी दवाओं, एंटीबायोटिक और विटामिन की सप्लाई में कमी की आशंका के पीछे कई वजहें हैं. आइए जानते हैं कि देश के दवा मार्केट में यह संकट क्यों पैदा होने जा रहा है.
दवा सप्लाई का चीन फैक्टर?
दरअसल देश में दवा बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले 60 फीसदी से अधिक बल्क ड्रग्स चीन से आयात होते हैं. इस वक्त बल्क ड्रग्स सप्लाई करने वाली चीन की ज्यादातर कंपनियां अपने प्लांट अपग्रेड कर रही हैं या पर्यावरण मानकों का पालन न करने की वजह से बंद की जा रही हैं. हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि एपीआई (Active pharmaceutical ingredients - APIs ) में इस्तेमाल होने वाले बल्क ड्रग्स के आयात में गिरावट आई है और कुछ तो भारतीय बाजार में उपलब्ध ही नहीं हैं. ऐसे में दवा मैन्यूफैक्चरर्स के लिए आने वाले दिनों में प्रोडक्शन मुश्किल हो जाएगा.
क्यों घट रही लगातार दवाओं की सप्लाई ? कितना बड़ा है संकट?
दरअसल बल्क ड्रग्स की कमी की वजह से बड़ी तादाद में दवा मैन्यूफैक्चरिंग पर संकट छाया हुआ है. बल्क ड्रग्स सप्लाई की कमी का असर कोलेस्ट्रॉल कम करने वाली, स्टेरॉयड्स, चिंता और हाइपरटेंशन की दवाओं पर पड़ सकता है. दवा मैन्यूफैक्चरर्स का कहना है कि उनका पाइपलाइन स्टॉक भी अब खत्म हो रहा है. बल्क ड्रग्स की कमी की वजह से इसके दाम 20 से 90 फीसदी बढ़ चुके हैं. साथ ही दवा मैन्यूफैक्चरिंग में भी कमी आई है.
मसलन बुखार और दर्द में काम आने वाली पैरासिटामोल के एपीआई की कीमत पिछले छह महीने में दोगुने हो चुके हैं. चूंकि कई दवाइयां सरकार के प्राइस कंट्रोल के तहत आती हैं इसलिए मैन्यूफैक्चरर्स इसके दाम तो नहीं बढ़ा सकते लेकिन इसकी मैन्यूफैक्चरिंग में उन्होंने कटौती कर दी है. इसलिए मार्केट में दवाइयों की कमी महसूस की जा रही है.
प्राइस कंट्रोल के तहत ज्यादा दवाओं को रखने का भी है असर?
सरकार ने इस साल मार्च में बताया कि पिछले दो साल के दौरान 851 ड्रग्स फॉर्म्यूलेशन की कीमत 5 से 40 फीसदी कम की जा चुकी है. रसायन और उर्वरक राज्य मंत्री ने लोकसभा में जानकारी दी कि लगभग 234 आवश्यक दवाओं की कीमत 5 फीसदी तक कम कर दी गई है. इसके अलावा नेशनल फार्मास्यूटिकल्स अथॉरिटी (NPPA) ने 65 प्रोडक्ट्स के दाम 25-30 फीसदी और 46 प्रोडक्ट के दाम 30-35 फीसदी. इसका नतीजा यह हुआ है कि ज्यादातर दवा निर्माताओं ने मैन्यूफैक्चरिंग में कटौती कर दी. इससे मार्केट में दवाओं की सप्लाई घट गई है.
क्या है ऑक्सिटोसिन संकट और क्या है असर?
ऑक्सिटोसिन इंजेक्शन का इस्तेमाल गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी के दौरान इस्तेमाल किया जाता है. यह इंजेक्शन डिलीवरी के दौरान हैमरेज (अधिक खून बहने की समस्या) के बचाव के लिए दिया जाता है. प्रसव के दौरान हैमरेज से बड़ी तादाद में गर्भवती महिलाओं की जान चली जाती है. लेकिन सरकार ने ऑक्सिटोसिन का निर्माण इस आधार पर लगभग रुकवा दिया है कि मवेशियों खास कर गाय, भैंसों का दूध निकालने में इसका इस्तेमाल किया जाता है. इस दूध का इस्तेमाल बड़ी तादाद में लोगों को टीबी, कैंसर का शिकार बना रहा है. साथ ही यह बच्चों में ब्लाइंडनेस भी बढ़ा रहा है.
हालांकि सरकार इसे अभी साबित नहीं कर सकी है. बहरहाल ऑक्सिटोसिन की मैन्यूफैक्चरिंग को नियंत्रित कर देने से यह दवा बाजार में लगभग गायब हो गई और बड़ी मुश्किल से मिल रही है. इससे बड़ी तादाद में गर्भवती महिलाओं की जान पर संकट छा गया है. सरकार के आदेश के अदालत में चुनौती दी गई है. लेकिन अदालत ने नवंबर तक ऑक्सिटोसिन के निर्माण पर नियंत्रण का आदेश बरकरार रखा है.
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