एक रिपोर्ट के मुताबिक हमारे देश में हर 6 में से 1 व्यक्ति अर्थराइटिस से पीड़ित है. वहीं घुटने की अर्थराइटिस शारीरिक विकलांगता के प्रमुख कारण के रूप में उभर रही है.
नोएडा स्थित फोर्टिस हॉस्पिटल के ऑर्थोपेडिक एवं ज्वाइंट रिप्लेसमेंट विभाग के निदेशक डॉ अतुल मिश्रा बताते हैं कि भारत में 15 करोड़ से अधिक लोग घुटने की समस्याओं से पीड़ित हैं, जिनमें से 4 करोड़ लोगों को घुटना बदलवाने (टोटल नी रिप्लेसमेंट) की जरूरत है.
हमारे देश में घुटने की अर्थराइटिस का प्रकोप चीन की तुलना में दोगुना और पश्चिमी देशों की तुलना में 15 गुना है. इसकी वजह ये है कि भारतीय लोगों में जेनेटिक एवं अन्य कारणों से घुटने की अर्थराइटिस से पीड़ित होने का खतरा अधिक होता है.डॉ अतुल मिश्रा, हेड, ऑर्थोपेडिक एवं ज्वाइंट रिप्लेसमेंट डिपार्टमेंट, फोर्टिस हॉस्पिटल, नोएडा
घुटने की अर्थराइटिस ज्यादा क्यों?
डॉ अतुल के मुताबिक घुटने की अर्थराइटिस के लिए हमारी जीवन शैली भी जिम्मेदार है, जिसके तहत उठने-बैठने में घुटने की जोड़ का अधिक इस्तेमाल होता है. इस कारण शरीर के अन्य जोड़ों की तुलना में घुटने जल्दी खराब होते हैं.
हमारे देश में लोग पूजा करने, खाना खाने, खाना बनाने, बैठने आदि के दौरान पालथी मारकर बैठते हैं. इसके अलावा परंपरागत शैली के शौचालयों में घुटने के बल बैठने की जरूरत होती है.
दर्द, जकड़न और जोड़ों से आवाज
डॉ मिश्रा ने बताया कि शरीर के किसी भी जोड़ में दर्द और जकड़न और जोड़ों से आवाज आना अर्थराइटिस के शुरुआती लक्षण हैं. बाद के चरणों में चलने-फिरने में कठिनाई होती है और जोड़ों में विकृतियां भी आ सकती हैं.
घुटने की अर्थराइटिस के शुरुआती चरण के इलाज के लिए सुरक्षित एनाल्जेसिक जैसी दवाएं, इंट्रा-आर्टिकुलर इंजेक्शन और फिजियोथेरेपी का उपयोग किया जाता है. विकसित चरणों में, सबसे सफल उपचार टोटल नी रिप्लेसमेंट है.
कब पड़ती है घुटने बदलने की जरूरत?
डॉ अतुल मिश्रा के बताते हैं कि जब घुटने के जोड़ बहुत अधिक खराब हो जाते हैं और मरीज का चलना-फिरना दूभर हो जाता है, तब घुटने को बदलने की जरूरत पड़ती है, जिसे टोटल नी रिप्लेसमेंट कहा जाता है.
यह एक बहुत ही सफल प्रक्रिया है जो आधी सदी से भी अधिक पुरानी है. इसकी सफलता दर 95 प्रतिशत है और इससे रोगियों के जीवन की गुणवत्ता में आश्चर्यजनक रूप से बदलाव आता है.
घुटने की अर्थराइटिस की आरंभिक अवस्था में घुटने के व्यायाम, साइकिल चलाना और तैराकी रोग को बढ़ने से रोकने का सबसे बेहतर तरीका है.
डॉ मिश्रा ने कहा कि अर्थराइटिस से बचाव के लिए पैर मोड़कर बैठने से बचें, आलथी-पालथी मार कर नहीं बैठें, भारतीय शौचालयों का उपयोग जहां तक हो सके कम करें और लंबे समय तक खड़े होने से बचें.
इसके अलावा हमें दूध और अन्य डेयरी उत्पाद, मौसमी फल और सब्जियों का सेवन करना चाहिए. विटामिन डी की कमी से बचने के लिए पर्याप्त समय तक धूप में रहना चाहिए.
अर्थराइटिस की समस्या महिलाओं में ज्यादा
अर्थराइटिस की समस्या पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक सामान्य है. पुरुषों की तुलना में महिलाओं के घुटने भी जल्दी खराब होते हैं.
भारतीय महिलाओं में घुटने की समस्याओं की शुरुआत के लिए औसत उम्र 50 साल है, जबकि भारतीय पुरुषों में यह 60 साल है. महिलाओं में घुटने की समस्याओं के जल्द शुरू होने का कारण मोटापा, व्यायाम नहीं करना, धूप में कम रहना और खराब पोषण है.डॉ अतुल मिश्रा
विटामिन डी की कमी है बड़ी वजह
डॉ मिश्रा ने बताया कि करीब 90 प्रतिशत भारतीय महिलाओं में विटामिन-डी की कमी है, जो बोन मेटाबॉलिज्म को नियंत्रित करने के लिए महत्वपूर्ण है. शरीर में विटामिन-डी की कमी सीधे या परोक्ष रूप से घुटने को प्रभावित करती है.
इसलिए कमजोर हो रही हैं हड्डियां
गलत खान-पान एवं जीवन शैली के कारण युवाओं में अर्थराइटिस एवं ऑस्टियोअर्थराइटिस की समस्या भी तेजी से बढ़ रही है. आज देश में घुटने की अर्थराइटिस से पीड़ित लगभग 30 प्रतिशत रोगी 45 से 50 साल के हैं, जबकि 18 से 20 प्रतिशत रोगी 35 से 45 साल के हैं.
मौजूदा समय में जंक फूड एवं फास्ट फूड के बढ़ते इस्तेमाल और खान-पान की गलत आदतों के कारण शरीर की हड्डियों को कैल्शियम व जरूरी खनिज नहीं मिल पा रहे हैं, जिससे कम उम्र में ही हड्डियों का घनत्व कम होने लगा है. हड्डियां घिसने और कमजोर होने लगी हैं.
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