कोरोना वायरस का दौर लंबा चलने वाला है. सुरक्षा के लिए अपनाए जाने वाले प्रोडक्ट अब 'फैशन एक्सेसरी' में तब्दील हो रहे हैं.
मार्च में ब्रिटिश सुपर मॉडल नाओमी कैंपबेल ने कोरोना वायरस को ध्यान में रखते हुए अपने एयरपोर्ट लुक को चुना था, जिसने काफी सुर्खियां बटोरी थी. नाओमी एयरपोर्ट पर कस्टमाइज्ड हैजमैट सूट, गॉगल्स, एक सर्जिकल मास्क और रबर ग्लव्स पहनकर पहुंची थीं.
मार्केट में मास्क भी कई तरह के रंगों और फैब्रिक में आने लगे हैं. हाल के दिनों में हवाई यात्रा शुरू किए जाने के बाद हैजमैट सूट पहनकर यात्रा करने का ट्रेंड नजर आ रहा है. भारत में भी कई टीवी स्टार, सेलिब्रिटी की फोटो सोशल मीडिया पर तैरती नजर आई हैं, जिसमें उन्होंने ये सूट पहन रखा है.
अब कनाडा में पर्सनल प्रोटेक्टिव गियर बनाने वाली कंपनी वाइजर(VYZR) टेक्नोलॉजीज ने बायोवाइजर (BioVYZR) नाम से एक नया प्रोडक्ट लॉन्च किया है. ये एक हैजमैट सूट है जिसका आधा ऊपरी हिस्सा एस्ट्रोनॉट यूनिफॉर्म की तरह दिखता है. इसमें एंटी-फॉगिंग 'विंडो' और एयर प्यूरिफाइंग डिवाइस भी होगा.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कनाडा में 50,000 लोग इसे खरीदने के लिए ऑर्डर कर चुके हैं. इस सूट की कीमत 250 डॉलर होगी और पहली खेप कंपनी जुलाई के अंत तक डिलीवर करेगी.
हालांकि कंपनी ने कहा है कि उन्हें नहीं पता कि एयरपोर्ट पर यात्रियों की स्क्रीनिंग, चेकिंग करने वाली ट्रांसपोर्टेशन सिक्योरिटी एडमिनिस्ट्रेशन या एयरपोर्ट स्टाफ की इसे लेकर क्या प्रतिक्रिया होगी.
क्या है हैजमैट सूट?
हैजमैट सूट- हैजार्डस मटीरियल सूट (Hazardous material suit) होते हैं, जो एक तरह का पीपीई किट है. ये सर से पैर तक ढंका हुआ एक गारमेंट होता है. इसे खतरनाक सामग्रियों या पदार्थों, केमिकल्स या बायोलॉजिकल एजेंट्स से बचाव के लिए पहना जाता है. इसके साथ ही गॉगल्स, ग्लव्स, हेड गियर भी इस्तेमाल किए जाते हैं.
हॉस्पिटल्स और एजेंसियों में पीपीई और हैजमैट सूट के इस्तेमाल के लिए अलग-अलग प्रोटोकॉल और प्रक्रियाएं हैं. ये अस्पताल, क्लिनीक और जगह के आधार पर अलग-अलग हो सकती हैं.
ये ज्यादातर डॉक्टर्स इस्तेमाल करते हैं लेकिन कोरोना वायरस संकट के दौरान इसकी डिमांड काफी बढ़ गई है. हवाई यात्रा के दौरान इसका इस्तेमाल किया जा रहा है. यात्रा के दौरान कुछ विमान कंपनियां यात्रियों को एयरपोर्ट पर उपलब्ध भी करा रही हैं.
क्या ये सूट कोरोना से बचाव में कारगर है?
दिल्ली, वसंतकुंज फोर्टिस हॉस्पिटल में पल्मोनोलॉजी और क्रिटिकल केयर मेडिसीन कंसल्टेंट डॉ. ऋचा सरीन ने फिट से इस बारे में बातचीत की.
वो कहती हैं- हैजमैट सूट का इस्तेमाल सुरक्षा की दष्टिकोण से कम और फैशन के लिए ज्यादा हो रहा है. सेलिब्रिटी जिस तरह से इसे पहन कर फोटो डाल रहे हैं, ये सूट पहनने का सही तरीका नहीं है. अगर आप इसे सही तरीके से नहीं पहनते तो ये किसी काम का नहीं है.
एक आम आदमी और एक डॉक्टर की जरूरतों में बहुत बड़ा अंतर है. सेलिब्रिटी की तस्वीरें और डॉक्टर को किट में देखेंगे तो बहुत अंतर दिखेगा.
ये सूट नॉन-परमिएबल होना चाहिए यानी खून या कोई फ्लूएड(तरल पदार्थ) इसके अंदर न जा सके. ये डॉक्टरों की जरूरत है क्योंकि वो मरीजों के नजदीकी संपर्क में रहते हैं. लेकिन सफर के दौरान ऐसा नहीं होता इसलिए आम यात्रियों के लिए इसका कोई उपयोग नहीं है.
साथ ही वो कहती हैं कि इसे तरीके से पहने जाने पर 2-3 घंटे ही बर्दाश्त किया जा सकता है. इन सूट में नॉन-वुवन(Non-Woven) पॉलीइथाइलीन, पोलीप्रोपाइलीन, पोलीएस्टर मटीरियल का इस्तेमाल होता है. इसमें ब्रीदिंग स्पेस(सांस लेने की सहूलियत) काफी कम होती है.
जिस सूट का इस्तेमाल डॉक्टर करते हैं वो 3 लेयर से ढंका होता है. उन्हें इसे तरीके से पहनने की आदत होती है. लेकिन आम लोगों को इसकी जानकारी नहीं होती. तरीके से हैजमैट सूट या कवर-ऑल पहनने का मतलब है सिर्फ आंखें दिखें और कुछ नहीं. अगर आप सूट को एडजस्ट कर रहे हैं, छू रहे हैं तो पहनने का कोई फायदा नहीं. ऐसे में पहनना न पहनना बराबर है. बल्कि छूने से रिस्क बढ़ जाता है. पहनने और उतारने के अलग-अलग स्टेप होते हैं. अगर आप सही से पहने रहे हैं, बिना एसी के आप आराम महसूस कर सकते हैं तो बेशक इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन ये आसान नहीं है.
WHO या ICMR ने इसे पहनने की कोई सलाह नहीं दी है.
कंपनी के मुताबिक वाइजर का नया हैजमेट सूट सिलिकॉन, न्योप्रीन और विनाइल से बना है और इसका वजन तीन पाउंड से कम है. इसे डिसइंफेक्ट करना आसान है. ये व्यस्कों और बच्चों के लिए उपलब्ध होगा. ये आसानी से फिट हो सकता है क्योंकि इसमें एडजस्टेबल स्ट्रैप लगे होंगे. ये कुछ-कुछ लाइफ जैकेट से मिलता-जुलता है.
इसमें फेस शील्ड की जगह टाइट, सील्ड एंटी फॉगिंग हेलमेट होगा ताकि भाप/धुंध की वजह से देखने में कोई दिक्कत नहीं होगी.
हालांकि इसमें एक दिक्कत ये हो सकती है कि सूट का हेलमेट पहनने से 4 से 5 इंच तक ऊंचाई बढ़ जाएगी जिससे सीट पर बैठने में परेशानी हो सकती है.
वहीं किसी भी संक्रमण को ब्लॉक करने के लिए इसमें एक तकनीक इस्तेमाल की गई है जिससे इसे पहनने वाले यात्री फ्लाइट अटेंडेंट को सुन सकते हैं लेकिन अटेंडेंट को उनकी आवाज नहीं सुनाई देगी.
भारत में बढ़ी हैजमैट सूट की मांग
भारत में भी हैजमैट सूट की डिमांड बढ़ गई है. भले ही सेलिब्रिटी के बीच ये एक ‘फैशन ट्रेंड’ बनता जा रहा हो लेकिन आम लोगों के बीच फिलहाल ये कोरोना वायरस से सुरक्षा देने वाले एक इक्वीपमेंट के तौर पर पहचाने जाने तक सीमित है.
ऑनलाइन मार्केटप्लेस इंडियामार्ट पर कई स्वदेशी मैन्यूफैक्चरर्स और सप्लायर्स की लिस्ट है जो इसे बेच रहे हैं.
दिल्ली के एक मैन्यूफैक्चरर ने बताया कि इसकी मांग काफी बढ़ गई है. जुलाई में 40% तक बिक्री में बढ़त हुई है. एक अन्य मैन्यूफैक्चरर ने बताया कि वो एयरलाइंस कंपनियों को सप्लाई करते हैं. 6 महीने में 500 ऑर्डर आते थे अब एक महीने में 500 ऑर्डर आ रहे हैं.
डिस्पोजेबल हैजमैट सूट, कवरऑल, पीपीई ऑनलाइन 200 से लेकर 1000 रुपये तक की रेंज में, 2-3 रंगों और स्मॉल, मीडियम, लार्ज साइज के ऑप्शन के साथ उपलब्ध हैं. साथ ही मटीरियल के बारे में जानकारी दी गई है. ये बताया जाता है कि ये साउथ इंडिया टेक्सटाइल्स रिसर्च एसोसिएशन (SITRA) से प्रमाणित है या नहीं.
इनका इस्तेमाल फैक्ट्री में हो सकता है, मेडिकल यूज के लिए किया जा सकता है, इसकी जानकारी भी कंपनी के प्रोडक्ट के साथ दी जाती है. ये पॉलिस्टर, कॉटन, पॉली विस्कोस, पॉली कॉटन, नन-वुवन(Non-Woven) फैब्रिक से बनते हैं. वॉटर प्रूफ होते हैं. कोरोना वायरस से बचाव के लिए जिन सूट का इस्तेमाल हो रहा है उसमें पोलीप्रोपाइलीन या नन-वुवन(Non Woven) फैब्रिक का इस्तेमाल होता है और ये ब्रिदेबल(Breathable) होते हैं यानी जिसमें आसानी से सांस लिया जा सके. किट में सूट, शू कवर, फेस शील्ड, ग्लव्स, डिस्पोजेबल बैग भी शामिल होते हैं. फैक्टरी और इंडस्ट्री में केमिकल्स से बचने के लिए पहने जाने वाले हैजमैट सूट की कीमत ज्यादा है और वो नॉन-डिस्पोजेबल होते हैं. इनकी कीमत 8000 रुपये तक हैं.
महाराष्ट्र में किर्तीकुमार एंड कंपनी के मालिक पद्मेशवर नारंगेकर बताते हैं कि इसकी मांग बढ़ गई है. ये सस्ते रेंज में उपलब्ध है. पहले 1500 कीमत होती थी अब ये 200 रुपये में भी उपलब्ध है क्योंकि कोरोना वायरस के शुरू होते ही इसकी मांग काफी बढ़ गई. एयर ट्रैवल के अलावा खेती के दौरान, सैलूनों में भी इसका इस्तेमाल हो रहा है.
उन्होंने बताया कि हम बिना अप्रूवल वाले नॉर्मल हैजमैट सूट बनाते हैं क्योंकि डॉक्टर जिन सूट का इस्तेमाल करते हैं, उसे पहनना मुश्किल होता है. फर्क ये होता है कि इसमें वाटर रेसिस्टेंसी नहीं होती है. लोग एक बार इस्तेमाल कर के फेंकना चाहते हैं. उसकी क्वॉलिटी में अंतर होता है.
क्या कोई भी कंपनी हैजमैट सूट का निर्माण कर उसे मार्केट में बेच सकती है?
भारत में कंपनियों को हैजमैट सूट बनाने के लिए तमिलनाडु के कोयंबटूर स्थित साउथ इंडिया टेक्सटाइल्स रिसर्च एसोसिएशन (SITRA) की सर्टिफिकेशन चाहिए होती है. ये भारत की टेक्सटाइल मंत्रालय से जुड़ा है. इससे मान्यता प्राप्त लैब में फैब्रिक प्रोटो-टाइप की टेस्टिंग के बाद ही मैन्यूफैक्चरिंग की इजाजत मिलती है.
SITRA के एक ऑफिसर ने फिट को बताया कि फिलहाल SITRA समेत देश के 9 लैब पहले इसके लिए सर्टिफिकेशन दे रहे थे. 1 जुलाई से इसे बंद किया गया है. अगले महीने से मिनिस्ट्री ऑफ टेक्सटाइल ने ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड एजेंसी को कंपनियों की सर्टिफेकेशन की जिम्मेदारी सौंपी है. इसके तहत 5 लैब सूट फैब्रिक सैंपल रिसीव करेंगे. 5 लैब टेस्टिंग करेंगे. कंपनियों को सर्टिफिकेशन और लाइसेंसिंग ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड एजेंसी ही देगी.
हालांकि SITRA टेस्टिंग कर रही है लेकिन किसी मैन्यूफैक्चरर को मान्यता नहीं दे रही.
उनके मुताबिक टेस्टिंग के दौरान फैब्रिक पर सिंथेटिक ब्लड पेनिट्रेशन चेक किया जाता है. ये चेक किया जाता है कि कोई पैथोजन, बैक्टीरिया पेनिट्रेट न कर सके. ये 5 अलग-अलग प्रेशर लेवल पर देखा जाता है. उन्होंने बताया कि ये पैमाने हेल्थकेयर वर्कर्स के कामकाज के तरीके को ध्यान में रखकर तय किए गए हैं.
साफ जाहिर होता है कि इसे आम लोगों के द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले प्रोडक्ट के तौर पर नहीं देखा जाता.
अमेरिका की सेंटर्स ऑफ डिजीज कंट्रोल के मुताबिक, सूटों को लेवल ए, बी, सी या डी में बांटा जाता है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि वे सूट कितनी सुरक्षा प्रदान करते हैं.
डॉ. सरीन कहती हैं कि ऑनलाइन कंपनियां इसका फायदा उठा रही हैं कि लोग बीमारी से डरे हुए हैं तो वो प्रोडक्ट खरीदेंगे.
आम लोगों को मटीरियल की जानकारी नहीं होती. हैजमैट सूट के अप्रूवल के लिए 2 चीजें अहम होती हैं. ये बायो हजार्ड प्रूफ होना चाहिए यानी इससे खून या वायरस, बैक्टीरिया अंदर तक न जा सके. इसमें ग्रेडिंग होती है और दूसरा टेंसाइल स्ट्रेंथ जो GSM(ग्राम पर स्कवायर मीटर) के जरिये मापा जाता है. WHO के मुताबिक ये 90 GSM से ऊपर होना चाहिए.
इसे पहनने में आधा घंटा लगता है. कपड़े और त्वचा को संक्रमण से बचाते हुए बाहरी हिस्सा छुए बिना इसे उतारना भी चुनौती भरा है.
वो कहती हैं कि फिलहाल यात्रा के दौरान 3 लेयर सर्जिकल मास्क और फेस शील्ड पहनना सही है. ये एयरोसोल से एक्सपोजर कम करता है. गलव्स की भी जरूरत नहीं है क्योंकि अगर आपने किसी इंफेक्टेड चीज को छू दी तो वो वायरस के संपर्क में आ जाता है इसके बाद वो किसी काम का नहीं है. हैंड सैनिटाइजर का लगातार इस्तेमाल ज्यादा बेहतर है. सोशल डिस्टेंसिंग का फॉर्मूला बेस्ट है.
अगर हैजमैट सूट सही तरीके से पहन रहे हैं, बिना एसी के कुछ घंटे रह सकते हैं तो कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन क्या ये बचाव के लिए जरूरी है- तो इसका जवाब होगा नहीं.
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)