सुप्रीम कोर्ट ने 23 अक्टूबर को पारंपरिक पटाखों की देश भर में बिक्री पर पाबंदी लगाने से इनकार कर दिया लेकिन यह जरूर कहा कि अब से ग्रीन और सेफ पटाखे ही फोड़े जाएं. शीर्ष अदालत ने पटाखों की ऑनलाइन बिक्री पर प्रतिबंध लगाते हुए कहा कि दीवाली के दिन पटाखों को रात 8 बजे से लेकर 10 बजे तक ही फोड़ा जा सकता है. क्रिसमस और नए साल पर पटाखे रात 11:45 बजे से सुबह 12:45 तक, सिर्फ एक घंटे ही फोड़े जा सकते हैं.
यहां हम उन पांच ठोस कारणों के बारे में बता रहे हैं कि क्यों पटाखे फोड़ना सबसे खराब है. क्यों आपको इससे बचना चाहिए. आप कुछ ऐसा करें जिससे दिवाली पर आपको गर्व हो.
1.आपकी हृदय गति रुक सकती है, आप बहरे हो सकते हैं, आपका अस्थमा बढ़ सकता है
अलविदा। आपको दीपावली की शुभकामनाएं!
मैं तो अभी यहां पटाखों की धरती पर पड़ने वाले प्रभावों की बात ही नहीं कर रही हूं. दिवाली पर होने वाले धमाकों की आवाजें और शोर आपके कानों पर नुकसान से कहीं अधिक असर डाल सकता है. साल 2013 में विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्टडी में पाया गया कि अचानक ध्वनि प्रदूषण दिल की बीमारी में नुकसानदायक हो सकता है. हाइपरटेंशन, अनिद्रा और यहां तक कि बच्चों में संज्ञानात्मक (cognitive) विकास को भी प्रभावित कर सकता है.
बहुत अधिक शोर के बढ़ने से पहले से बीमार लोगों में हार्ट अटैक की आशंका 30 फीसदी तक बढ़ जाती है. एक रात में 70 डेसिबल से अधिक ध्वनि का होना अस्पतालों में स्ट्रोक्स वाले लोगों के भर्ती दर के बढ़ने से जुड़ा है. इसमें 25 से 74 आयु वर्ग के लोगों की संख्या 5 फीसदी अधिक हो जाती है. जबकि 75 साल से अधिक के लोगों की संख्या 10 फीसदी से अधिक होती है.
दिवाली की तरह तेज ध्वनि वाली रातों में कुल मृत्यु दर का जोखिम 4 फीसदी तक बढ़ जाता है. एक स्टडी यूरोपियन हार्ट जर्नल में प्रकाशित हुई थी. इसमें उम्र, लिंग, सामाजिक आर्थिक कारकों, जातीयता, धूम्रपान और वायु प्रदूषण को शामिल किया गया था. इसमें इस बात की तसदीक की गई है कि तेज शोर वाली रातों में मृत्यु दर बढ़ने का जोखिम रहता है.
(आपकी जानकारी के लिए बता दें कि दिवाली के बाद वायु प्रदूषण कम से कम 30 फीसदी तक बढ़ जाता है.)
2.पालतू जानवर डर जाते हैं!
जो लोग पटाखों से पालतू जानवरों को डराते हैं, वह सबसे खराब है. उन्हें तत्काल इसे बंद करना चाहिए क्योंकि डरे हुए जानवरों की आवाज सबसे परेशान करती है.
3. बेवकूफ! ये खूबसूरत नाम से बिकने वाले खतरनाक पटाखे हैं
पटाखों में ये शामिल होता है.
- लीड
- चारकोल
- मैग्नेशियम
- पोटेशियम क्लोरेट
- सल्फरडाइऑक्साइड
- स्ट्रोनटियम
- कॉपर
- बारियम ग्रीन
- सोडियम येलो
- टाइटेनियम
- एल्यूमीनियम
पटाखों में भरे विषाक्त पदार्थ सेहत पर कहर ढाते हैं
पारंपरिक मान्यता है कि चीनियों ने दुर्घटनावश पटाखों का आविष्कार किया था. वे चंद्र नव वर्ष को चिह्नित करने के लिए बांस जलाते थे. जैसे ही बांस में आग लगी, इसमें हवा फैली और यह फट गया. अचानक जो धमाके की आवाज निकली, यही पहला पटाखा था.
बेहरहाल इस साल खूबसूरत नाम से पटाखे बिक रहे हैं. नाम भले ही खूबसूरत हों लेकिन ये बेहद घातक हैं. इस साल, 'फनी बनी', 'कूल चिक्स' के साथ मुकाबला कर रही है. 'चिली फर्स्ट', 'पटाखा मस्का', 'बेबी गुड़िया' और 'भाईजान' की गरज को चुराने की कोशिश करेगी. लेकिन ये सभी पटाखे मिलकर अपने हानिकारक विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आने के बाद नवजात बच्चों को कमजोर करते हैं और उन्हें मानसिक रूप से नुकसान पहुंचाते हैं.
पटाखों में अधिक मैग्नीशियम सांस की तकलीफ, घरघराहट और गर्भवती महिलाओं की सेंट्रल नर्वस सिस्टम को भी प्रभावित कर सकता है. इससे बुजुर्गों की सुनने की क्षमता खत्म हो जाती है. साथ ही जानवर भी इससे बुरी तरह से डर जाते हैं.
4. कानों में घंटी सी बजने लगती है.
आप कुछ देर वहां खड़े हो जाएं जहां लड़ी वाले पटाखें फूट रहे हों. थोड़ी देर बाद आप नोटिस करेंगे कि आपके कान में हल्की-हल्की आवाज सी आ रही है- यह वास्तव में अस्थायी रूप से कानों में आने वाली आवाज है.
ध्वनि के सुनने की मानक क्षमता 85 डेसिबल है. लंबे समय तक तेज ध्वनि के संपर्क में रहने से बहरापन भी हो सकता है. दिवाली की रात को राजधानी में औसत ध्वनि स्तर 100 से 120 डेसिबल को पार कर जाता है. यह आपके सुनने की क्षमता को स्थायी रूप से खत्म कर सकता है.
ऐसे में आप अपने आप को कैसे सुरक्षित रखेंगे?
आप एयर प्लग का प्रयोग कर सकते हैं. यदि आपको कान संबंधी कोई दिक्कत या परेशानी है तो बेहतर होगा कि आप अपने बच्चों के साथ घर के भीतर ही रहें. साथ ही अपने पालतू जानवरों को भी घर से बाहर ना निकलने दें.
5. लोग हमेशा जल जाते हैं!
हमेशा कुछ न कुछ नुकसान होता है.
सरकार हर साल दिवाली के दौरान जलने से घायल हुए लोगों की निगरानी के लिए तीन दिन का आपदा प्रबंधन प्रोटोकॉल स्थापित करती है. दिवाली की रात को पटाखों से जलने के कई मामले आने के कारण डॉक्टरों और नर्सों की स्पेशल टीम पूरी रात काम करती है.
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