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दिल्ली में घट रहे कोरोना के नए केस, क्या सबसे बुरा दौर गुजर गया?

दिल्ली में 23 जून को कोरोना के मामलों में तेज उछाल दिखा था.

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भारत में कोरोना वायरस के मामले 10 लाख का आंकड़ा छूने को तैयार है. वहीं, 23 जून को दिल्ली में तेज स्पाइक दर्ज किया गया. करीब 4000 नए केस सामने आए थे. हालांकि इसके बाद 6 जुलाई को सिर्फ 1379 मामले दिखे.

इस उतार-चढ़ाव को देखने के बाद लोगों ने अनुमान लगाया कि राजधानी ने कोरोना वायरस का पीक पार कर लिया है? लेकिन क्या ऐसा अनुमान लगाना सही है?

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भारत बनाम दिल्ली: ग्राफ क्या कहता है?

दिल्ली में 23 जून को कोरोना के मामलों में तेज उछाल दिखा था.
फिगर 1 (फोटो: फिट)  

भारत और दिल्ली में दिन पर दिन दर्ज होते COVID-19 मामलों की संख्या पर नजर डालने पर दिखता है कि दिल्ली में जुलाई के महीने में मामलों में गिरावट आई है. जून के पहले सप्ताह में, दिल्ली में मामलों और मौतों की संख्या में बढ़त दिख रही थी.

15 जून के बाद शहर में हर दिन 2,500 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए. कई बार मामलों की संख्या 3,000 पार कर गई. सबसे ज्यादा उछाल 23 जून को दर्ज किया गया.

जबकि उसके बाद कंफर्म केसों की संख्या 2,000 से 2,500 के बीच रही. करीब 1 महीने बाद 6 जुलाई को दिल्ली में 24 घंटे में सिर्फ 1,379 मामले दिखे. इसके अलावा, रिकवरी में भी सुधार देखी गई. जो लोग दो से तीन सप्ताह पहले, जब दिल्ली में मामले तेजी से बढ़ रहे थे, संक्रमित पाए गए थे, वो ठीक होने लगे.

इस बीच, भारत में केसेज का ग्राफ ऊपर की ओर बढ़ता दिखा.

दिल्ली में 23 जून को कोरोना के मामलों में तेज उछाल दिखा था.
फिगर 2 (फोटो: फिट)  

क्या टेस्ट की संख्या का इससे कुछ संबंध है?

असल में किसी इलाके में सुधार हो रहा है या नहीं, इसका आकलन करने के लिए टेस्ट की संख्या एक अहम फैक्टर है. कम संख्या कम टेस्ट की वजह से आ रहे हों तब ये चिंता की बात है. ऐसे में पॉजिटिविटी रेट एक महत्वपूर्ण मानदंड बन जाता है.

दिल्ली में अन्य सभी राज्यों (फिगर 3) की तुलना में प्रति मिलियन सबसे ज्यादा टेस्टिंग हो रही है. जून से पहले भी, दिल्ली में 31 मई को प्रति मिलियन करीब 10,500 टेस्ट दर्ज हुए.

10 जुलाई को, शहर ने RT-PCR टेस्ट और 12,832 रैपिड एंटीजन टेस्ट के जरिये 10,129 सैंपल का टेस्ट किया था - कुल 22,961 सैंपल की जांच हुई.

दिल्ली में 23 जून को कोरोना के मामलों में तेज उछाल दिखा था.
फिगर 3 (फोटो: फिट)  
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18 जून के बाद से, दिल्ली में रोजाना होने वाले टेस्टिंग की संख्या बताई जाने लगी. 22 जून तक हर दिन पॉजिटिव पाए जाने वाले लोगों का प्रतिशत 16% से 21% तक था. 22 जून तक कुल 384,696 टेस्ट में से, 62,655 पॉजिटिव पाए गए. प्रदेश में पॉजिटिविटी रेट 16.2% दर्ज की गई.

क्या 23 जून को सामने आए आंकड़े असाधारण थे? दिल्ली ने उस दिन सबसे ज्यादा 3,947 मामले दर्ज किए, उस दिन 16,952 सैंपल टेस्ट किए गए थे. 21 जून को 18,105 सैंपल टेस्ट किए गए, जिसमें 3,000 सैंपल पॉजिटिव थे. भले ही टेस्ट की संख्या अधिकतम नहीं थी, लेकिन पॉजिटिव पाए गए लोगों का प्रतिशत अधिक रहा.

हालांकि, इसके बाद ये दर लगातार गिरी. 6 जुलाई को, मामलों में सबसे कम छलांग देखी गई. उस दिन 1379 केस मिले. एक दिन में किए गए कुल टेस्ट में से सिर्फ 9.9% पॉजिटिव पाए गए. 6 जुलाई तक किए गए 657383 टेस्ट में से, 100,823 पॉजिटिव मिले. पॉजिटिविटी रेट 15.33% रही. 11 जुलाई तक किए गए 401,648 टेस्ट में से, 66,602 (16.21%) पॉजिटिव पाए गए.

बता दें, ज्यादा टेस्टिंग के साथ ही 16 जून से एक्टिव केस कम होने लगे और 23 जून से नए मामलों में तेजी से गिरावट शुरू हुई.

किन चीजों ने दिल्ली के पक्ष में काम किया?

मई की शुरुआत में, दिल्ली सरकार ने होम आइसोलेशन के लिए प्रोटोकॉल जारी किया था. हल्के लक्षणों वाले मरीजों को घर पर रहने की इजाजत दी गई ताकि टेस्टिंग को बढ़ावा मिले, लोग टेस्टिंग से न भागें. इससे बीमार और उनके कॉन्टैक्ट्स की ज्यादा से ज्यादा ट्रेसिंग की गुंजाइश बनी.

दूसरा, पहले भी आपने पढ़ा कि दिल्ली लगातार ज्यादा से ज्यादा टेस्ट कर रही है. मध्य जून में रैपिड एंटीजन टेस्ट किट की शुरुआत के साथ, टेस्टिंग का विस्तार किया गया और इससे तुरंत रिजल्ट मिलने लगे (भले ही इन टेस्ट की सटीकता संदिग्ध है). बढ़ते टेस्ट से मामलों की संख्या में बढ़त दिखी. इसका मतलब था कि COVID पॉजिटिव मरीजों का पता लगाया जा रहा था और उन्हें समय पर ढंग से आइसोलेट किया जा रहा था. समय पर डायग्नॉसिस से हर दिन होने वाली रिकवरी में भी बढ़त हुई. द वायर के मुताबिक 8 जून तक औसतन एक दिन में 400 रिकवरी हो रही थी वहीं 17 जून तक एक दिन में औसतन 3,000 की संख्या तक रिकवरी हुई. नतीजतन, कुल मामलों में रिकवरी का रेशियो 31 मई के 42.7% से बढ़कर 30 जून को 66.5% हो गया, यानी हर दिन औसतन 0.71% .

दिल्ली में इंफ्रास्ट्रक्चर और बेड की उपलब्धता भी बढ़ा दी गई है. सरकार के एक आदेश में 50 से ज्यादा बेड वाले सभी प्राइवेट अस्पतालों को COVID मरीजों के इलाज के लिए 40% बेड आरक्षित करने के लिए कहा गया है. होटलों को लिंक करने से, प्राइवेट अस्पतालों में बेड की संख्या 5000 से बढ़कर 7000 हो गई. आज, दिल्ली में 15,000 से ज्यादा COVID बेड हैं - जिनमें से सिर्फ 38% ऑक्यूपाइड हैं. हल्के लक्षण वाले 10,000 से ज्यादा लोगों के लिए क्वॉरंटीन व्यवस्था भी की गई है.

पहले 'प्लाज्मा बैंक’ की स्थापना दिल्ली सरकार द्वारा की गई है ताकि मरीजों को COVID-19 का एक्सपेरिमेंटल ट्रीटमेंट कॉन्वल्सेंट प्लाज्मा थेरेपी आसानी से मिल सके.

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दिल्ली पीक पार कर चुकी है?

एक सप्ताह से शहर में नए संक्रमण से ज्यादा रिकवरी की संख्या दिख रही है. अगर ये सिलसिला जारी रहा तो हो सकता है दिल्ली ने पीक पार कर लिया हो. बाकी राज्य जिसमें संक्रमण की तुलना में ज्यादा रिकवरी दिखी, वहां ये ट्रेंड 2-3 दिनों से ज्यादा नहीं दिखा है. द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यों में, नए संक्रमण अभी भी रोज हो रही रिकवरी से ज्यादा हैं, और सामान्य रूप से पूरे देश में भी ऐसा ही दिख रहा है.

फिट से बात करते हुए, वेलकम ट्रस्ट डीबीटी इंडिया एलायंस के वायरोलॉजिस्ट और सीईओ डॉ. शाहिद जमील ने रैपिड एंटीजन टेस्ट की विश्वसनीयता के बारे में बात की.

वो कहते हैं- इसमें हम सेंसिटिविटी (संक्रमित मामलों को पहचानने की क्षमता) और स्पेसिफिसिटी (गैर संक्रमित मामलों को बाहर करने की क्षमता) की तलाश करते हैं. एंटीजन टेस्ट की स्पेसिफिसिटी करीब 99% है. इसका मतलब है कि पॉजिटिव टेस्ट रिजल्ट काफी हद तक संक्रमण को डायग्नॉस करने पर आधारित हो सकता है. दूसरी ओर सेंसिटिविटी, 50-80% के बीच होती है. इसका मतलब है कि एंटीजन टेस्ट कई COVID-19 मामलों को मिस कर देता है.

“दिल्ली निश्चित रूप से ग्राफ नीचे की ओर दिखा रहा है, जबकि कुछ दूसरे राज्य समस्या बन रहे हैं. लेकिन जब तक मामले करीब दो हफ्ते तक कम नहीं होते, मैं नहीं कहूंगा कि पीक पार हो चुका है. इस प्रोग्रेस को बनाए रखने की जरूरत है.”
डॉ. शाहिद जमील

दिल्ली ने पिछले महीने तक अनियमित फैसलों और मामलों के मिसमैनेजमेंट को देखा - जहां लोगों को बेड की तलाश में एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भागना पड़ा. दिल्लीवासियों के लिए बेड को आरक्षित करने का सरकार का फैसला, या सिर्फ सिम्पटम वाले मरीजों के टेस्ट के फैसले (हालांकि इसे बाद में पलट दिया गया था) की कड़ी आलोचना की गई. समय पर इलाज नहीं मिलने की वजह से अपनी जान गंवाने वाले अत्यंत गंभीर मरीजों या केसेज की संख्या की रिपोर्ट पर सवाल- सभी को सरकार ने संदेह के घेरे में ला दिया है.

नई व्यवस्था और टेस्टिंग की संख्या में बढ़त से स्थिति में सुधार होने की उम्मीद है - जैसा कि एक सप्ताह से दिख रहा है. लेकिन कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग को जारी रखने के एक ठोस प्रयास को बनाए रखने की जरूरत होगी.

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