यह 2018 है. बहुत मुमकिन है कि आपका पांच साल का बच्चा आपके फोन के बारे में आपसे ज्यादा जानता हो. स्मार्टफोन, टैबलेट और लैपटॉप बच्चों के हाथ में इन्हें चला पाने की उम्र से भी पहले आ जा रहे हैं.
दस साल पहले किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि टेक्नोलॉजी हमारी जिंदगी के हर पहलू को इस कदर नियंत्रित करेगी. शायद इस टेक्नोलॉजी को बनाने वाले टेक्नोलॉजी दिग्गजों ने भी ऐसा नहीं सोचा होगा. ऐसे में यह देखना रोचक है कि इन्हीं कंपनियों के निवेशक अब टेक्नोलॉजी एडिक्शन को लेकर सावधान कर रहे हैं.
एप्पल के दो बड़े निवेशकों ने आईफोन निर्माताओं से कहा है कि बच्चों में स्मार्टफोन एडिक्शन को लेकर कुछ कदम उठाएं.
इसके जवाब में, एप्पल ने कहा है कि इसकी पैरेंटल कंट्रोल टूल्स को अधिक प्रभावशाली बनाने की योजना है.
(बाल मनोचिकित्सक के साथ हमारा लाइव देखिए.)
एडिक्शन समस्या के समाधान के लिए एप्पल क्या कर सकता है?
टेक्नोलॉजी कंपनी अपने उत्पाद को इस तरह तैयार करती हैं कि इन्हें इस्तेमाल करने वाला अपने गैजेट, सॉफ्टवेयर या सोशल मीडिया साइट पर जितना मुमकिन हो, ज्यादा से ज्यादा समय खर्च करे.
फिर भी अपने आधिकारिक वक्तव्य में एप्पल ने कहा है कि आईफोन और इसके अन्य डिवाइस पहले से ही कई किस्म के कंट्रोल मुहैया कराते हैं, जिनसे अभिभावक बच्चे को “ऑनलाइन कुछ भी देखने या डाउनलोड करने में प्रभावी रूप से सीमित या ब्लॉक कर सकते हैं.” एसोसिएट प्रेस (एपी) की रिपोर्ट.
लेकिन एडिक्शन की समस्या सिर्फ पेंरेंटल कंट्रोल या बच्चा फोन पर क्या करता है, से ज्यादा आगे की समस्या है. सबसे पहली बात यह है कि बच्चा कितनी देर फोन के साथ रहता है.
एपी ने कॉमन सेंस मीडिया के सीईओ जेम्स स्टेयर को उद्धृत करते हुए लिखा है कि एप्पल इस स्थिति में है कि कुछ और ज्यादा कर सकती है. वह कहते हैं कि अन्य चीजों के अलावा, एप्पल मोबाइल फोन के इस्तेमाल के प्रभाव पर स्वतंत्र शोध की फंडिंग कर सकती है, और सार्वजनिक जागरूकता अभियान के लिए भुगतान कर सकती है, जिसमें अभिभावक और बच्चे को जिम्मेदार टेक्नोलॉजी उपभोक्ता के बारे में शिक्षित किया जाए.
वह कहते हैं कि एप्पल एडिक्शन-प्रिवेंशन फीचर तैयार कर सकती है, जैसे कि एक घंटे बाद ऑटोमेटिक शट-ऑफ फीचर.
एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स का एक रोचक उदाहरण इन चीजों को सही परिप्रेक्ष्य में पेश करता है, 2010 में, जब एक रिपोर्टर ने उनसे पूछा था क्या उनके बच्चे आईपैड को पसंद करते हैं, उन्होंने कहा था. “हमारे घर में आईपैड की इजाजत नहीं है. हमें लगता है यह बच्चों के लिए बहुत ज्यादा खतरनाक है.
”उन्होंने जो कहा, वह इसलिए कहा,क्योंकि वह इस हकीकत को जानते थे कि स्मार्टफोन और टैबलेट कितने एडिक्टिव हो सकते हैं.
कैसे जानें कि यह एडिक्शन है?
हम टेक्नोलॉजी के महत्व को देखते हुए बच्चों को इससे दूर नहीं रख सकते, क्योंकि हम जानते हैं कि यह हमें कई तरह से फायदा पहुंचाती है.
उनकी पढ़ाई से लेकर मनोरंजन तक सब कुछ डिजिटल बनाया जा रहा है. लेकिन हमें कहां लक्ष्मण रेखा खींचनी चाहिए? कितना ज्यादा, बहुत ज्यादा है? सामान्य इस्तेमाल कब एडिक्शन बन जाता है?
आइए इसका मुकाबला करते हैं. टेक एडिक्शन एक हकीकत है. ऐसे वैज्ञानिक साक्ष्य हैं जो बताते हैं कि किसी ड्रग्स की तरह गैजेट, गेमिंग और सोशल मीडिया से आपको डोपामाइन किक मिलती है. और इसमें किसी भी नशे की चीज जैसी ही लत लगने के लक्षण होते हैं.डॉ. अमित सेन, बाल मनोवैज्ञानिक
डॉ. अमित सेन कहते हैं, जैसा कि किसी भी अन्य एडिक्शन में होता है, जिस घड़ी आपका गैजेट आपकी जिंदगी पर असर डालना शुरू करता है, मामला गंभीर हो जाता है.
इसमें खुद बता देने वाले कुछ लक्षण होते हैं. इसमें बच्चे की नींद कम हो जाती है, वह खाना छोड़ देता है और कई बार स्क्रीन में व्यस्त होने के चलते पूरी तरह खाना भूल जाता है इसके साथ ही उसमें तेज जज्बाती उफान उठता है, वह नहाना या ब्रश करना छोड़ देता है और जागने के फौरन बाद लैपटॉप या फोन की तरफ भागता है. अगर ऐसा होता है तो यह फिक्रमंद होने की बात है.
बहुत ज्यादा इस्तेमाल बच्चे पर कैसे असर डालता है?
बटन दबाने भर से आप हर चीज पा सकते हैं और बाहर जाकर खेलने या अन्य गतिविधियों में शामिल होने के बजाय बच्चे फोन पर लगे हुए हैं.
इस आसान पहुंच के कारण बच्चों के लिए अन्य चीजों पर ध्यान केंद्रित करना मुश्किल होता है, जिससे अधीरता पैदा होती है और वह आसानी से कुंठा का शिकार हो जाते हैं. आपने, बढ़ने की उम्र में जब आप बाहर जाते थे और खेलते थे, सामाजिक कौशल सीखा था. लेकिन अब धैर्य के साथ ही सामाजिक कौशल और भावनात्मक नियंत्रण भी खत्म हो गए हैं.डॉ. अमित सेन
कोई शख्स सोशल मीडिया पर हर कदम पर एक लाइक या थम्स अप पाता है तो वह यह नहीं सीख पाता कि कैसे हारा जाता है और धैर्य रखा जाता है.
तो माता-पिता को क्या करना चाहिए?
यह पूरी तरह बच्चे की गलती नहीं है. अक्सर वह मां-बाप ही होते हैं जो बच्चे का थोड़ा सा नखरा देखते ही उन्हें अपना फोन थमा देते हैं. बच्चे अपने माता-पिता को घंटों फोन पर स्क्रोलिंग करते, टैपिंग करते, बातें करते देखते हैं.
घर में हमेशा टीवी का एक तय समय होता है, जो आप बच्चों को देते हैं. “यह अंतिम शो है और इसके बाद टीवी बंद हो जाएगा.” यही बात गैजेट पर भी लागू की जानी चाहिए.
स्क्रीन पर समय का दो हिस्सों में बंटवारा करें- पढ़ाई पर खर्च किया जाने वाला समय और इसकी तुलना में मनोरंजन पर खर्च किया जाने वाला समय. दोनों में संतुलन होना चाहिए.
डॉ. सेन की तरफ से माता-पिता के लिए यहां कुछ टिप्स दिए गए हैं
अपने बच्चों को सिर्फ व्यस्त रखने के लिए अपना फोन मत थमा दें.
उन्हें अन्य गतिविधियों में व्यस्त रखें, उन्हें खेलने के लिए बाहर भेजें. संतुलन रखें.
टेक्नोलॉजी जरूरी है, लेकिन विकास की और भी मंजिलें हैं, जिन्हें उन्हें हासिल करना है.
सहयोगात्मक रवैया रखें. अपने नियम बच्चों पर ना थोपें. उन्हें बातचीत का हिस्सा बनाएं.
पढ़ने वाले बच्चे के लिए स्क्रीन पर मनोरंजन का समय एक घंटे से ज्यादा नहीं होना चाहिए
एक बच्चे की परवरिश मुश्किल काम है. इसलिए आप खुद तय कीजिए कि आपके लिए बेहतर क्या है और टेक्नोलॉजी कंपनियों को हिसाब-किताब लगाने दीजिए कि उनके लिए बेहतर क्या है.
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