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चमगादड़ या लैब से लीक: COVID की शुरुआत कहां से हुई? जरूरी है जानना

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महामारी को एक साल से ज्यादा हो गया है और अब तक ये 35 लाख से ज्यादा लोगों की जान ले चुका है और 17 करोड़ से ज्यादा लोगों को संक्रमित कर चुका है, फिर भी हम अभी भी निश्चित रूप से नहीं जानते कि कोरोनावायरस(Coronavirus) कहां से आया है. कोई भी नहीं जानता.

ये वायरस पहली बार 2019 के अंत में चीन के वुहान में पाया गया था, 2 विपरीत सिद्धांतों पर आधारित इसकी उत्पत्ति की जांच की मांग जोर पकड़ रही है- क्या वायरस चमगादड़ से इंसानों में किसी जानवर के जरिये आया या ये वुहान में एक लैब से गलती से लीक हुआ था?

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इस साल की शुरुआत में चीन को लेकर एक अंतरराष्ट्रीय मिशन के किसी नतीजे पर नहीं पहुंचने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने वायरस की शुरुआत की गहराई से जांच के आदेश दिए हैं.

ये किसी जानवर से फैला या दुर्घटनावश लैब से- महामारी की शुरुआत की जांच करना कितना खास है? भविष्य में किसी महामारी को टालने के लिए यह कितना जरूरी है?

"आपको मान कर चलना होगा कि कुछ भी हो सकता है"

जाने-माने वायरोलॉजिस्ट डॉ. जैकब जॉन कहते हैं, “इंसान भविष्य को प्रभावित कर सकता है. इसलिए महामारी की शुरुआत की स्टडी करना बेहद जरूरी है.” .

एपिडेमियोलॉजिस्ट डॉ. जेपी मुलियिल का मानना है कि बेहतर जांच की मांग करना या सबूतों की फिक्र करना उतना जरूरी नहीं है जितना कि धारणा बनाना.

“आपको हर चीज में धारणा बनानी पड़ती है.”

अगर ये स्वाभाविक रूप से फैला है तो कुछ नहीं किया जा सकता क्योंकि वैज्ञानिक समुदाय जानता है कि हमेशा म्यूटेशन होता रहता है और वे भविष्य की महामारियों का मुकाबला करने के लिए व्यवस्था बनाने पर जोर दे रहे हैं.

“कल्पना कीजिए कि ये एक लैब वायरस है. एक दुर्घटना हुई... अब आप सवालों पर आगे बढ़ें. अगर ऐसा हुआ है और इसकी कीमत पूरी दुनिया को चुकानी पड़ी है, तो हम इसे रोकने के लिए व्यवस्था कैसे बना सकते हैं?”
डॉ. जेपी मुलियिल, एपिडेमियोलॉजिस्ट
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डॉ. मुलियिल का कहना है, लेकिन ये जानना भी जरूरी है कि हम महामारी से मुकाबला करने की सुविधाएं किस देश में बनाएंगे. ये संकेत देते हुए कि इस सवाल का एक खास राजनीतिक पहलू है, वो कहते हैं, “अगर ये पारदर्शी प्रशासन वाला देश नहीं है, तो हमें उस व्यवस्था में शामिल होने से इनकार कर देना चाहिए.”

डॉ. जॉन कहते हैं कि सोच में सांस्कृतिक फर्क महामारी की जांच करने की हमारी क्षमता पर असर डालता है. अगर कोई ये जानना चाहता है कि इस महामारी को लेकर क्या हुआ और भविष्य में किसी महामारी को कैसे टालना है, तो हमें पश्चिमी संस्कृति को अपनाना जरूरी है.


“भारतीय संस्कृति में, अगर कुछ होता है तो हम इसके बारे में भूल जाते हैं. कोई मर जाता, तो इसकी वजह जानने की किसे परवाह है? लेकिन विकसित संसार में ये मायने रखता है. अगर किसी शख्स की संक्रामक बीमारी से मौत हो जाती है, तो इसका मतलब है कि दूसरे लोग भी जोखिम में हैं. हमें ये जानने की जरूरत है कि कौन लोग खतरे में हैं और सावधानी बरती जाए. डॉ जॉन कहते हैं, “ये पश्चिमी सोच है, भारतीय नहीं.”

"गलतियों को स्वीकार करें, उसे सुधारें"

डॉ. जॉन को सभी संभावनाओं में से लैब से वायरस लीक होने की परिकल्पना सबसे ज्यादा दिलचस्प लगती है- कि ये एक “गुप्त, वायरोलॉजी अनुसंधान, वायरस में हेरफेर और लापरवाही से हुई गलती थी और इस वायरस ने लैब में किसी को संक्रमित किया और फिर ज्यादा लोग संक्रमित हुए.”

डॉ. जॉन कहते हैं, “ये विचार कि वायरस लैब से लीक हुआ हो सकता है, मेरा पसंदीदा सिद्धांत है और ये डरावना है.”

वो कहते हैं यहां 2 चीजें ध्यान देने वाली हैं: “अगर ये लैब से लीक नहीं होता, तो दुनिया को इसके बारे में कुछ पता नहीं चलता. अगर उन्होंने इस वायरस में हेरफेर कर इसे हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया होता... मान लीजिए कि वे इसे चुपचाप उस देश में ले जाते, जिसे चीन नुकसान पहुंचाना चाहता और वापस आ जाते तो कोई भी चीनी मूल को नहीं जान पाता. उस देश में महामारी फैल जाती."

इस तरह इस महामारी की शुरुआत को जानना बहुत जरूरी है क्योंकि अगर यह अभी नहीं हुई होती, तो बाद में होती. डॉ जॉन कहते हैं, “और अगर यह वायरस लैब में हेरफेर से तैयार किया गया है, तो क्या लैब में हेरफेर से तैयार और भी वायरस हैं?”
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दूसरी ओर डॉ. मुलियिल को लगता है कि लैब का प्रयोग किसी बुरे इरादे से नहीं बल्कि भविष्य की समस्याओं का अंदाजा लगाने और इसे रोकने के लिए किया गया था. उनका कहना है कि वैसे ये लैब में हुई गलती की तरह दिखता है.

“जब आप इस तरह के प्रयोग करते हैं, तो हालात काबू से बाहर जा सकते हैं. लैब में काम करने वाला शख्स संक्रमित हो सकता है…”

लेकिन इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि लैब से पैदा हुए संक्रमण को कैसे रोका जाए.

“दुनिया में हर जगह लोग गलतियां करते हैं. जब कोई गलती करता है तो वो इसे छिपाने के बजाय कुबूल कर लेता है. यह मानने में साफगोई होनी चाहिए कि मैंने गलती की है… ताकि हम इसे सुधार सकें, छिपाएं नहीं.”

विशेषज्ञों का कहना है, वायरस की प्राकृतिक उत्पत्ति थी या ये किसी लैब से लीक हुआ था, इसका सुबूत चीन में है. लेकिन चीन ने बार-बार किसी भी दुर्घटना से लीक की संभावना से इनकार किया है, अपने यहां कोरोनावायरस महामारी की गंभीरता को छिपाया है, व्हिसलब्लोअर का मुंह बंद कर दिया है और चीन की मदद के बिना इसका पता लगाना बेहद मुश्किल है.

भारत के लिए इसका क्या मतलब है?

लेकिन इस पूरी चर्चा का भारत जैसे देश के लिए क्या मतलब है, जो महामारी से ठीक से नहीं निपटने, स्वास्थ्य सेवा पर बहुत कम पैसा खर्च करने के लिए आलोचना का सामना कर रहा है और जिसकी अचानक मरीजों की बड़ी संख्या की देखभाल की क्षमता सीमित है.

महामारी ने अमेरिका जैसे सबसे अमीर देशों, जो मजबूत स्वास्थ्य व्यवस्था का खर्च उठा सकते हैं, को भी तबाह कर दिया है. डॉ. मुलियिल कहते हैं कि भारत में स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे में बड़ी खामियां हैं जो मौजूदा महामारी में उभर कर सामने आ गई हैं. तो, क्या इससे कोई फर्क पड़ता है कि कोविड कहां से आया?

“हमें ऐसी व्यवस्था की जरूरत है जिसकी मदद से हम वायरोलॉजी को मजबूत करें, लेकिन एक बीमार शख्स को भर्ती करने के लिए बुनियादी सुविधाएं ज्यादा जरूरी हैं. हमारे पास इसकी कमी है.”

डॉ. मुलियिल कहते हैं कि भारत को समझना होगा कि वो ऐसी सुविधाओं के सहारे नहीं चल सकता जो इसकी आबादी के लिए नाकाफी हैं.

“अगर हम खुद के लिए ईमानदार हैं तो जो कुछ हुआ उसे हम ध्यान से देखेंगे और एक दूसरे को दोष देने के बजाय गंभीरता से स्थायी समाधान खोजने की कोशिश करेंगे.”

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