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स्विट्ज़रलैंड का नया यूथनेशिया उपकरण और इसके बारे में भारतीय क़ानून क्या कहता है

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स्विट्ज़रलैंड ने एक सारकोफ़ैगस, या 'सैक्रो', के उपयोग को मंजूरी दे दी है. यह एक 3 D प्रिंटेड उपकरण है, जिसका उपयोग असिस्टेड यूथनेशिया, यानी की दर्द-रहित इच्छामृत्यु, के लिए किया जा सकता है.

'सैक्रो' अपने ताबूत जैसे पॉड के अंदर ऑक्सिजन की जगह नाइट्रोजन भर देता है, जिससे अंदर इंसान को हाइपोक्सिया हो जाता है और उसकी शीघ्र और दर्द रहित मृत्यु हो जाती है.

लेकिन यह भविष्यवादी दिखने वाला कैपस्यूल, जो लगता है, जैसे ब्लैक मिरर के किसी एपिसोड से निकल कर आया हो, विवादों में घिरा है और पूरी दुनिया में उसने एक बहस छेड़ दी है – असिस्टेड सुसाइड एवं इच्छामृत्यु की नैतिकता पर.

इस उपकरण पर कई सवाल खड़े किए गए हैं – क्या यह अत्यधिक जल्दी (इसके निर्माताओं के अनुसार 1 मिनट से भी कम में मौत आती है) मृत्यु प्रदान करता है? क्या इससे आत्महत्या का ‘औद्योगीकरण’ हो जाएगा?

इच्छामृत्यु: सक्रिय तरीक़ा, निष्क्रिय तरीक़ा और इस पर उठे नैतिक सवाल

कानूनी तौर पर, एक डॉक्टर अनुरोध पर रोगी को घातक इंजेक्शन लिखित रूप में उपयोग का अधिकार दे सकता है   

(Photo: iStock)

यूथनेशिया का अर्थ होता है एक ऐसे मरीज़ की पीड़ा-रहित हत्या, जो की एक लाइलाज बीमारी का शिकार हो या अपरिवर्तनीय शिथिल अवस्था में हो.

इस अधिनियम को स्वयं स्वैच्छिक, या अनैच्छिक, और सक्रिय या निष्क्रिय के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।

डॉ अश्विनी सेत्या सक्रिय या निष्क्रिय इच्छामृत्यु के फ़र्क़ FIT को समझते हुए कहते हैं, “सक्रिय इच्छामृत्यु में मृत्यु दिलाने के लिए किसी विषैले पदार्थ का प्रयोग किया जाता है, जो कि किसी निर्धारित दवा का ओवरडोज़ भी हो सकता है.” सक्रिय इच्छामृत्यु में दवा आमतौर पर किसी और के द्वारा दी जाती है और यह अधिकतर देशों में ग़ैरक़ानूनी है.

दूसरी ओर, निष्क्रिय इच्छामृत्यु को अक्सर अधिक अनुकूल और नैतिक रूप से सही विकल्प माना जाता है. “यह मरीज़ के लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटा देने या देखभाल रोक देने के कारण होता है। यह उन कार्यों से परहेज़ करना है, जो मरीज़ को ज़िंदा रखने के लिए की जा रही थीं, ताकि मरीज़ की प्राकृतिक मृत्यु हो सके. इस तरह मृत्यु बीमारी से होती है ना कि किसी बाहरी कारकों से,” बताते हैं डॉ सेत्या.

निष्क्रिय इच्छामृत्यु में ये सब शामिल हो सकते हैं:

  • किसी व्यक्ति को लाइफ सपोर्ट मशीन से हटाना

  • जीवित रखने वाली दवा या सर्जरी रोक देना

  • फीडिंग ट्यूब्ज को हटा देना

अधिनियम की स्थायीता, संवेदनशील प्रकृति और इससे जुड़ी नैतिक दुविधाओं के कारण यूथनेशिया और पीएएस (फ़िज़िकली असिस्टेड सुसाइड) को क़ानूनी बनाने का सवाल तीखे विवादों में घिरा है.

‘स्विस मॉडल’

स्विट्ज़रलैंड ने एक सारकोफ़ैगस, या 'सैक्रो', के उपयोग को मंजूरी दे दी है.

(Photo: Exit International/altered by FIT)

असिस्टेड सुसाइड अब स्विट्ज़रलैंड में काफ़ी सालों से वैध है. कानूनी तौर पर, एक डॉक्टर अनुरोध पर रोगी को घातक इंजेक्शन प्रिस्क्राइब (लिखित रूप में उपयोग का अधिकार) कर सकता है, लेकिन इंजेक्शन मरीज़ को खुद लगानी होती है.

किसी को ये अधिकार दिए जाने के लिए यह ज़रूरी है कि इच्छामृत्यु का फ़ैसला उसका अपना हो, उसकी मानसिक हालत ठीक हो, वह यह कार्य खुद करे, और उसमें किसी और का निजी फ़ायदा ना हो.

“हम इस प्रक्रिया से किसी भी प्रकार का सायकीऐट्रिक रिव्यू (डॉक्टर द्वारा) हटा देना चाहते हैं ताकि इंसान स्वयं विधि का नियंत्रण कर सके. हमारा उद्देश्य एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस स्क्रीनिंग सिस्टम विकसित करना है, जो व्यक्ति की मानसिक क्षमता को स्थापित कर सके.”
फिलिप निट्स्के, सैक्रो कैप्सूल के आविष्कारक, ने स्विस इंफ़ो को बताया

इच्छामृत्यु पर भारत का क़ानून

हर मामले का एक स्टैंड-अलोन मामले की तरह कड़ाई से मूल्यांकन किया जाता है.

(Photo: FIT)

2011 में निष्क्रिय इच्छामृत्यु को, असाधारण परिस्थितियों के लिए, भारत में वैद्यता मिल गयी थी. साधारणतः यह सिर्फ़ उन पर लागू होता है, जो किसी लाइलाज बीमारी का शिकार हों या अपरिवर्तनीय शिथिल अवस्था में हों. सक्रिय इच्छामृत्यु और असिस्टेड सुसाइड दोनों भारत में ग़ैरक़ानूनी हैं.

किसी व्यक्ति को इच्छामृत्यु की अनुमति देने से पहले, हर मामले का एक स्टैंड-अलोन मामले की तरह कड़ाई से मूल्यांकन किया जाता है.

2011 के फैसले के अनुसार, डॉक्टरों को कुछ रोगियों के लाइफ़ सपोर्ट को वापस लेने के लिए अदालत का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा और याचिका दायर करनी पड़ी।

लेकिन मार्च 2018 में, सुप्रीम कोर्ट ने गरिमा के साथ मरने के अधिकार को एक मौलिक अधिकार घोषित कर दिया, जिससे निष्क्रिय इच्छामृत्यु का कानूनी प्रावधान और मज़बूत हो गया।

सुप्रीम कोर्ट ने एक कानून पारित किया, जिसमें लोगों को अपने जीवनकाल में 'लिविंग विल' तैयार करने की अनुमति दी गई ताकि अगर उन्हें कभी एक लाइलाज बीमारी हो गयी या वे एक अपरिवर्तनीय शिथिल अवस्था में चले गए, तो उन्हें, लिविंग विल अदालत में जमा कर के, निष्क्रिय इच्छामृत्यु दिया जा सके.

लिविंग विल क्या होता है

लिविंग विल के ऊपर कई विवाद हैं 

(Photo: iStockphoto)

लिविंग विल एक प्री-एमप्टिव दस्तावेज़ है, जो एक स्वस्थ दिमाग़ वाला व्यक्ति लिखता है ताकि अगर वह लाइलाज बीमारी के कारण शिथिल अवस्था में पहुंच जाए, तो उसे निष्क्रिय इच्छामृत्यु दी जा सके.

लिविंग विल लिखने में सक्षम होने के लिए किसी व्यक्ति को:

  • वयस्क होना चाहिए

  • स्वस्थ मानसिक स्थिति का होना चाहिए

  • दस्तावेज़ को निष्पादित करने का उद्देश्य और परिणाम समझने एवं संवाद करने में सक्षम होना चाहिए

  • यह एक स्वैच्छिक विकल्प होना चाहिए, जो बिना किसी मजबूरी, प्रलोभन या ज़बरदस्ती के लिया जाना चाहिए

  • दस्तावेज़ में विशिष्ट निर्देश होने चाहिए, जो स्पष्ट रूप से बताएँ कि किन परिस्थितियों में लाइफ़ सपोर्ट नहीं दिया जाए या हटा लिया जाए.

भारत में निष्क्रिय इच्छामृत्यु और लिविंग विल के ऊपर भी कई विवाद हैं.

देश में सक्रिय इच्छामृत्यु को वैध बनाने के अधिवक्ताओं का तर्क है कि निष्क्रिय इच्छामृत्यु में उस सम्मानजनक मृत्यु की गारंटी नहीं है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में एक मौलिक अधिकार घोषित किया था.

कुछ मामलों में, केवल लाइफ़ सपोर्ट जैसे उपचार वापस ले लेने से रोगी को कई दिनों तक अत्यंत दर्द और परेशानी का सामना करना पड़ सकता है.

इसके अलावा, इस बारे में कोई स्पष्टता नहीं है कि अदालत यह कैसे निर्धारित करेगा कि दस्तावेज़ बनाने वाले व्यक्ति ने सच में उसे बिना किसी ज़बरदस्ती के बनाया था.

भारत का क़ानून इच्छामृत्यु के प्रति क्या रुख़ लेता है, ये तो समय के साथ ही पता चलेगा. तब तक दुनिया के अन्य हिस्सों में सैक्रो जैसे उपकरणों के सफल कार्यान्वयन को देख कर शायद भारत के क़ानून बनाने वालों को, इच्छामृत्यु के इच्छुक लोगों को अधिक विकल्प प्रदान करने और अधिक स्वायत्तता देने हेतु, प्रोत्साहन मिले.

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