50 साल के राज* बीते दो दशकों से कोई भी भावनात्मक रिश्ता बनाने से परहेज कर रहे हैं. अपना दो साल का बच्चा गंवाने के बाद राज किसी और करीबी को गंवाने के डर से उन्होंने खुद को अपने खोल में समेट लिया है. कई सालों के बाद उन्होंने अपना पहला नया दोस्त बनाया तो यह एक रोएंदार मित्र था.
एक रिश्ते का टूटना, बुरा दिन, कोई बीमारी. इनसे उबरने में हममें से कई को हमारे पेट (पालतू जानवर) का साथ मिला है. वो हमेशा सुनने, प्यार करने और गर्माहट भरी झप्पी के लिए मौजूद रहे.
हमने हमेशा कंपेनियम पेट के बारे में सुना है- चाहे पारिवारिक पेट्स हों या थेरेपी एनिमल- यह इंसानों पर सकारात्मक असर डालते हैं. लेकिन क्या ‘पेट थेरेपी’, जैसा कि इसे कहा जाता है, क्या वास्तव में ऐसी कोई चीज है? क्या ये कारआमद है? क्या चिकित्सा विज्ञान इसको मान्यता देता है?
क्या विज्ञान पेट थेरेपी को मान्यता देता है?
सबसे पहले, एक बात साफ कर लीजिए. पेट थेरेपी एक व्यापक शब्दावली है जिसमें भावनात्मक, ज्ञानात्क और यहां तक शारीरिक स्वास्थ्य लाभ या तंदुरुस्त रहने के लिए जानवरों से संवाद करना शामिल है. यह दो तरह का होता है.
उदाहरण के लिए राज के मामले का चिकित्सीय आधार है. इसे एनिमल असिस्टेड थेरेपी (एएटी) कहते हैं. यह एक औपचारिक और तयशुदा तरीका है, जो स्वास्थ्य समस्या से जूझ रहे शख्स को ठीक होने या बीमारी की समस्याओं से उबरने में मदद के लिए एक थेरेपिस्ट की देखरेख में संपन्न होता है.
कॉस्मॉस इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड बिहेवियरल साइंस (सीआईएमबीएस) की मनोचिकित्सक डॉ. शोभना मित्तल ने हमें बताया कि राज अवसाद के विचारों से ग्रस्त थे, अपराध बोध से निकल नहीं पा रहे थे और निराशा के शिकार थे.
दवाएं दिए जाने के साथ ही नियमित थेरेपी के तहत उनके डॉक्टर ने थेरेपी सेशन के दौरान कमरे में एक डॉग रखना शुरू कर दिया. और धीरे-धीरे डॉग के प्रति अपनापन पैदा होने के बाद सामान्य होने पर आखिरकार मरीज ने दिल के राज खोले और अपनी भावनाएं बताईं, जिसके बाद उनके थेरेपिस्ट ने दुखों से निजात दिलाने के लिए उनकी थेरेपी शुरू की.
हालांकि, दूसरी किस्म, एनिमल असिस्टेड गतिविधियों का ज्यादा सामान्य मकसद है- पेट्स के साथ संवाद के माध्यम से आराम पहुंचाना और खुशी महसूस कराना.
पेट्स थेरेपी में सबसे ज्यादा डॉग्स का इस्तेमाल किया जाता है, क्योंकि ये बहुत ज्यादा सामाजिक होते हैं. अन्य जानवर हार्स, कैट्स, गिनी पिग्स, बर्ड्स और रैबिट भी मददगार होते हैं.
पेट्स हमें किस तरह अच्छा महसूस कराते हैं?
मेरे एक मित्र ने एक बार कहा था, “मेरा पेट तुम सब इंसानों से बेहतर है.” पेट थेरेपी के अपने फायदे हैं. पेट्स ना सिर्फ हमें खुश महसूस कराते हैं, बल्कि साथ ही स्वस्थ भी बनाते हैं. यही कारण है कि हम डॉग्स को इंसान का सबसे अच्छा दोस्त बताते हैं.
अध्ययन बताते हैं कि पेट्स के साथ समय गुजारने से दिमाग में डोपामाइन और एंडोरफाइंस के साथ ही कुछ न्यूरोट्रांसमिटर्स का स्राव होता, जो कि प्रसन्नता और तंदुरुस्ती के लिए जिम्मेदार है.
पेट्स के साथ जुड़ाव से ऑक्सीटोसिन का स्राव होता जो कि ‘“कडल हार्मोन” है और जो किसी को प्रेम का अहसास कराता है. यह प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण करने से साथ ही लंबी उम्र में भी भूमिका निभाता है.डॉ. शोभना मित्तल, मनोचिकित्सक, सीआईएमबीएस
इन केमिकल्स के रिसाव से ना सिर्फ तनाव से उबरने में मदद मिलती है, बल्कि इससे डिप्रेशन और एनजाइटी का भी खात्मा होता है. इसके अलावा पेट थेरेपी समानुभूति (इमपैथी), पोषण, सामाजिक व्यवहार के लिए जिम्मेदार ब्रेन एरिया को सक्रिय करती है. इससे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर के साथ ही इंटलेक्चुअल डिसएबिलीटीज में भी फायदा होता है, क्योंकि पेट थेरेपी सामाजिक और संवाद कौशल और आत्मसम्मान के निर्माण में मददगार होती है.
डॉ. मित्तल कहती हैं कि थेरेपी के शारीरिक लाभ भी हैं, क्योंकि यह व्यक्ति को शारीरिक रूप से सक्रिय रहने के लिए प्रेरित करती है. इससे ह्रदय से जुड़ा स्वास्थ्य, जोड़ों की कसरत और अंगों का संचालन अच्छा होता है.
आप चाहें उन्हें नजदीक से प्यार करें या दूर से, मुझे हम सब के लिए यकीन है कि हमारी खुशियों से जुड़ी यादों में एक याददाश्त रोएं वाले दोस्तों की भी होगी. इसमें एक और जोड़ लीजिए! फिलहाल मैं आपका दिन अच्छा बनाने के लिए आपको इस प्यारे पप्पी के साथ छोड़े जा रही हूं. शुक्रिया मुझे बाद में कह दीजिएगा.
(*पहचान छिपाने के लिए नाम बदल दिया गया है.)
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